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जब बुरा करना हो, तो थोड़ा ठहराना। कल कर लेना, परसों कर लेना। जल्दी क्या है !

oडेल कारनेगी ने अपना एक संस्मरण लिखा है कि उसे एक पत्र मिला। डेल कारनेगी ने लिंकन के ऊपर एक व्याख्यान दिया था रेडियो पर और उसमें कुछ तारीख की भूल हो गई। तो लिंकन की भक्त किसी महिला ने उसे पत्र लिखा, खूब गालियां दीं--कि ‘तुम्हें जब तारीखों तक का पता नहीं है, तो तुमने यह जुर्रत कैसे की कि तुम रेडिओ पर व्याख्यान करने जाओ? पहले अपनी तारीखें ठीक करो। यह तो छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं। इतना भी तुम्हें पता नहीं है! तुम इसके लिए क्षमा मांगो--सामूहिक। यह लिंकन का अपमान है।’

ऐसा उसने कुछ-कुछ लिखा होगा। डेल कारनेगी भी गुस्से में आ गया पत्र को पढ़ कर। खून खौल गया। उसने भी उत्तर लिखा--उतना ही जहरीला। लेकिन रात हो गई थी। और उस वक्त तो नौकर भी जा चुका था, तो उसने सोचाः सुबह डाल देंगे। चिट्ठी रख कर टेबल पर, सो गया। गाली-गालौज जितनी देनी थी, वे उसने भी दे डाली।निश्चिंत, हलका मन हो कर सो गया। सुबह उठा, लिफाफे में बंद करते वक्त उसने फिर पत्र को पढ़ा। लगाः यह जरा ज्यादती है। बात तो स्त्री की ठीक ही है कि मुझसे भूल तो हुई है। बजाय क्षमा मांगने के मैं और उलटा नाराज हो रहा हूं!

पत्र उसने सरका कर रख दिया, दूसरा पत्र लिखा। दूसरा पत्र लिखते वक्त उसे खयाल आया कि अगर मैंने रात ही यह पत्र पोस्ट करवा दिया होता, अगर नौकर न गया होता, तो...? सुबह में इतना फर्क हो गया। उसने दोनों पत्र देखेः वह जमीन-आसमान का भेद है! तो उसने सोचाः यह दूसरा पत्र भी अभी नहीं डालूंगा। जल्दी तो कुछ है नहीं, सांझ को फिर एक दफा देखूंगा।
सांझ को देखा, तो तीसरा पत्र लिखा। अब तो बहुत फर्क हो गया। फिर तो उसे लगा कि अभी जल्दी क्या है; वह स्त्री कोई पागल नहीं हुई जा रही है मेरे पत्र के लिए! सात दिन रुका। रोज सुबह पढ़ता-बदलता; रोज शाम पढ़ता-बदलता। सातवें दिन जब वह निशिं्चत हो गया कि अब कुछ बदलने को नहीं बचा, लेकिन पत्र का पूरा रूप बदल गया। कहां वह घृणा और जहर से भरा पत्र था; कहां यह मैत्री और प्रेम से भरा पत्र हो गया।
इस पत्र में उसने लिखा था कि मैं अनुगृहीत हूं। और कभी अगर इस गांव आओ, मेरे गांव आओ, तो मेरे घर ठहरना। मिल कर मुझे खुशी होगी। मेरे ज्ञान में वर्धन होगा। लिंकन के संबंध में मैं ज्यादा नहीं जानता; और जानना चाहता हूं। और क्षमा मांगता हूं, जो भूल हो गई।

छह महिने बाद वह स्त्री उसके गांव आई। इस बीच पत्र-व्यवहार होता रहा। उसके घर ठहरी। और तुम हैरान होओगे कि हालत क्या हुई! वह उसकी पत्नी हो गई! ऐसे ही वह प्रेम में पड़ा। वह पहला पत्र... तो सारी संभावनाएं समाप्त हो जाती थीं दो आदमियों के बीच की। जब बुरा करना हो, तो थोड़ा ठहराना। कल कर लेना, परसों कर लेना। जल्दी क्या है........😍

❣ _*ओशो*_  ❣

🍁 *कहै कबीर मैं पूरा पाया (प्रवचन-4)*  🍁

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