मंदिर में कृष्ण के साथ - -> *राधा*
राम के साथ --> *सीता*
शंकर के साथ --> *पार्वती*
सुबह से रात तक मनुष्य को
अपने हर काम में
*एक स्त्री की*
आवश्यकता होती ही है.
पढ़ते समय --> *विद्या*
फिर --> *लक्ष्मी*
और अंत में --> *शाँति*
दिन की शुरुआत --> *ऊषा* के साथ,
दिन की समाप्ति --> *संध्या* से होती है.
किन्तु काम तो --> *अन्नपूर्णा* के
लिये ही करना है.
रात यानी --> *निशा* के समय भी
*निंदिया रानी*
सोने के बाद --> *सपना*
मंत्रोच्चार के लिये --> *गायत्री*
ग्रंथ पढ़ें तो --> *गीता*
👇 मंदिर में भगवान के सामने 👇
*वंदना, पूजा, अर्चना*
*आरती, आराधना*
और ये सब भी ...
केवल --> *श्रद्धा* के साथ.
अंधेरा हो तो --> *ज्योति*
अकेलापन लग रहा हो तो -->
*प्रेमवती* एवं *स्नेहा*
लड़ाई लड़ने जायें तो -->
*जया* और *विजया*
बुढ़ापे में --> *करुणा* वो भी
--> *ममता* के साथ.
गुस्सा आ जाए, तब --> *क्षमा*
इसीलिए तो धन्य है --> स्त्री जाति👸
जिसके बगैर पुरुष🤵 अधूरा है.
नारी शक्ति को प्रणाम 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Comments