मनुष्य को छोड़ कर सारा जगत आनंदित है !

लियो टाल्सटाय के संबंध में मैंने सुना है, एक संध्या जब सूरज डूबता था और आकाश डूबते सूरज के रंगों से भरा था, सांझ की शीतल हवा बहती थी, और एक वृक्ष की छाया में टाल्सटाय ने एक सर्प को विश्राम करते देखा; चट्टान पर, काई जमी हुई चट्टान पर परिपूर्ण विश्राम की अवस्था में लेटे हुए देखा। टाल्सटाय सर्प के पास पहुंचा। और ऐसा कहा जाता है कि उसने सर्प से कहा कि सूरज की डूबती हुई किरणों के नृत्य के बीच ठंडी बहती हवा में तुम जीवित हो, श्वास ले रहे हो, और इतना ही तुम्हारे आनंदित होने के लिए काफी है; तुम आनंदित हो। लेकिन मैं, मैं आनंदित नहीं हूं। सूरज की किरणें काफी नहीं, सांझ की शीतल हवा काफी नहीं, चलती हुई श्वास, जीवन का वरदान काफी नहीं। तुम आनंदित हो और मैं आनंदित नहीं हूं।
मनुष्य को छोड़ कर सारा जगत आनंदित है। मनुष्य किस रोग से ग्रस्त है कि आनंदित नहीं है? और ऐसा अगर किसी एक मनुष्य के साथ होता तो हम कहते कि वह बीमार है, और उसका इलाज कर लेते। ऐसा पूरी मनुष्यता के साथ है। इसलिए आसान नहीं कहना कि पूरी मनुष्यता ही बीमार है। तब तो उचित होगा यह कहना कि मनुष्य का गुणधर्म ही दुखी होना है। मनुष्य जैसा है वैसा दुखी ही हो सकता है। मनुष्य के लिए आनंद का द्वार खुल सकता है, मनुष्य जैसा है उसके अतिक्रमण से, उसके ट्रांसेंडेंस से, उसके पार जाने से।
लाओत्से ने सुनी होती यह घटना टाल्सटाय की तो वह राजी हुआ होता। क्योंकि लाओत्से तो सर्प जैसा मनुष्य था। श्वास लेना काफी आनंद है। जीवन अपने आप में इतना बड़ा वरदान है कि कुछ और मांगने की जरूरत नहीं। होना ही बड़ी अनुकंपा है। 💐💐ओशो 💐💐

Comments

Popular posts from this blog

Torrent Power Thane Diva Helpline & Customer Care 24x7 No : 02522677099 / 02522286099 !!

न्यूड फोटो देकर सुर्खियों मे आई Sherlyn chopra एक बार फिर से चर्चाओं में .