The removal of an illegally appointed worker, like layoffs, will be compensates

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि यदि किसी कर्मचारी को अवैध नियुक्ति के कारण हटाया जाता है तो उसे भी छंटनी माना जाएगा। वह औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 की धारा 25 एफ के तहत उचित रूप से मुआवजा का हकदार होगा।
जस्टिस अरुण मिश्रा और एमआर शाह की पीठ ने यह फैसला बिहार राज्य अनुसूचित जाति सहकारी विकास लिमटेड की अपील को खारिज करते हुए दिया। पीठ ने कहा कि इस मामले में धारा 2 (ओ ओ) का अपवाद लागू नहीं होगा। धारा 2 (ओ ओ) के अनुसार छंटनी का मतलब कर्मचारी को बर्खास्त करना है जो किसी सजा के रूप में नही है। लेकिन स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति, अनुबंध की समाप्ति और खराब स्वास्थ्य के कारण सेवा की समाप्ति छंटनी नहीं होगी। इस मामले में लेबर कोर्ट में संदर्भ दिया गया था कि बिहार एससी निगम के कर्मियों की बर्खास्तगी वैध थी या नहीं। क्या उन्हें पुन: बहाल करना चाहिए और मुआवजा देना चाहिए।
लेबर कोर्ट में दलील दी गई कि कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त करना धारा 25 एफ का उल्लंघन है। क्योंकि कर्मचारियों ने साल में 240 दिनों से ज्यादा काम किया है। उनकी सेवाएं समाप्त करना अवैध है और उन्हें सेवा में बहाल कर पूरा पिछला वेतन दिलवाया जाए। 
लेबर कोर्ट ने अवार्ड में कहा कि चूंकि श्रमिकों ने एक साल लगातार सेवा की है, उनकी सेवाएं धारा 25 एफ में दी गई प्रक्रिया के अनुसार ही समाप्त की जा सकती हैं। इसलिए उनकी छंटनी आईडी एक्ट की धारा 25 एफ का उल्लंघन है और यह अवैध है। हालांकि लेबर कोर्ट ने उन्हें पिछले वेतन के साथ सेवा पर बहाल करने को आदेश नहीं दिया लेकिन कहा कि उन्हें तीन साल के बराबर का वेतन और भत्ते दिए जाएं।

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