उल्हासनगर में अवैध ८५५ भवनों में से एक सतनाम साखी बिल्डिंग जो विद्यालय के लिए आरक्षित भूखंड पर बनाया गया था ,जिसे तत्कालीन आयुक्त रामनाथ सोनवणे ने पुलिस और मनपा के लावलश्कर के साथ जमीन दोज किया था।उसके बाद,भवन मालिक ने अबैध निर्माणों को नियमित करने के लिए प्रांत कार्यालय में 10 लाख रुपए भी भर दिए, और उसके बाद उसी प्रांत कार्यालय ने भोईर परिवार को इस भूमि का स्वामित्व दे दिया। इसलिए, राम वाधवा ने इस भूखंड बेचने के लिए दो अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की है।
बता दे कि उल्हासनगर कैंप ५ में शांतिप्रकाश आश्रम के सामने सतनाम साखी नामक एक इमारत थी। इस भवन का निर्माण अनाधिकृत रूप से किया गया था। उच्च न्यायालय के आदेश से ८५५ इमारतों को तोड़ने का आदेश दिया था,उसी में से यह एक इमारत थी। इस भवन का निर्माण १९९९ में राम वाधवा के चाचा घनश्याम वाधवा ने कराया था। इस भूमि पर जयपाल रोहरा का स्वामित्व था। इस इमारत को लेने से पहले, इस इमारत में १७ परिवार और ६ दुकानें थीं। वर्ष २००४ में, उच्च न्यायालय ने उल्हासनगर में अनधिकृत भवनों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया। उस समय, सतनाम साखी भवन पर महानगरपालिका का पहला हथौड़ा गिरा। भूखंड के ऊपर दो फुट का खंभा होने तक इमारत को ध्वस्त कर दिया गया था। सतनाम सखी इस इमारत में रहने वाले लोगों ने हार नहीं मानी थी। उन्होंने भवन मालिक जयपाल रोहरा और घनश्याम वाधवा की मदद से जमीन पर स्वामित्व के लिए प्रयत्न शुरू किया। वर्ष २००५ में, महाराष्ट्र सरकार द्वारा शहर में अनधिकृत निर्माणों को अधिकृत करने के लिए अध्यादेश पारित किया गया था। उस अध्यादेश की मदद से जयपाल रोहरा ने मनपा के तज्ञ लोगों से मालिकाना हक के लिए आवेदन किया। विशेषज्ञ समिति और प्रांतीय अधिकारियों द्वारा पूरे आवेदन की जांच करने के बाद, प्रांत के अधिकारियों ने प्रांत के कार्यालय को भूमि के स्वामित्व के लिए १० लाख ८ हजार ३२० रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया। ३ जुलाई २००७ को, जयपाल रोहरा ने इस राशि का भुगतान किया। उन्होंने मनपा में १ लाख ३७ हजार रुपए भी जमा कराए। उसके बाद, स्वामित्व का डी फॉर्म बन गया। यह डी फॉर्म ठाणे जिला कलेक्टर कार्यालय में पिछले १२ वर्षों से पड़ा हुआ है। १६ परिवारों में मंगलवार को त्रासदी हुई, जो उम्मीद लगाए बैठे थे कि हम सतनाम साखी में रहने के लिए जाएंगे मंगलवार को, एक निर्माणकर्ता सतपाल सिंह, सतनाम साखी के भूखंड पर कुछ गुंडे प्रवृत्ति के लोगों को लेकर आया और उसने सीधे कंपाउंड बनाकर प्लॉट पर कब्जा कर लिया।
सतनाम सखी के निवासियों और राम वाधवा के द्वारा उनका विरोध किया गया लेकिन पुलिस प्रशासन की मदद से, इस विरोध को सकपाल सिंह ने तोड़ दिया। जब पुलिस से इस बारे में पूछा गया, तो पुलिस ने बताया कि इस भूखंड का मालिकाना हक उप-विभागीय अधिकारी जगतसिंह गिरासे ने भोईर परिवार को दे दी है। जब राम वाधवा से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि सतनाम सखी की भूमि के स्वामित्व के लिए हमने ११ लाख रुपए मनपा में भरे हैं। यदि यह भूखंड २००७ में तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी ने हमें बेच दिया था, तो उपखंड अधिकारी जगत सिंह गिरासे इसे भोईर और सकपाल सिंह को कैसे बेच सकते है? अगर उन्होंने दूसरी बार भूखंड बेचा है, तो जगत सिंह गिरासे को धोखा देने के लिए दोषी माना जाएगा ? जब इस विषय पर उप-विभागीय अधिकारी जगतसिंह गिरासे का पक्ष जानने के लिए सेल फोन से संपर्क करने की कोशिश की गई परन्तु उन्होंने फोन उठाना मुनासिब नही समझा।
बता दे कि उल्हासनगर कैंप ५ में शांतिप्रकाश आश्रम के सामने सतनाम साखी नामक एक इमारत थी। इस भवन का निर्माण अनाधिकृत रूप से किया गया था। उच्च न्यायालय के आदेश से ८५५ इमारतों को तोड़ने का आदेश दिया था,उसी में से यह एक इमारत थी। इस भवन का निर्माण १९९९ में राम वाधवा के चाचा घनश्याम वाधवा ने कराया था। इस भूमि पर जयपाल रोहरा का स्वामित्व था। इस इमारत को लेने से पहले, इस इमारत में १७ परिवार और ६ दुकानें थीं। वर्ष २००४ में, उच्च न्यायालय ने उल्हासनगर में अनधिकृत भवनों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया। उस समय, सतनाम साखी भवन पर महानगरपालिका का पहला हथौड़ा गिरा। भूखंड के ऊपर दो फुट का खंभा होने तक इमारत को ध्वस्त कर दिया गया था। सतनाम सखी इस इमारत में रहने वाले लोगों ने हार नहीं मानी थी। उन्होंने भवन मालिक जयपाल रोहरा और घनश्याम वाधवा की मदद से जमीन पर स्वामित्व के लिए प्रयत्न शुरू किया। वर्ष २००५ में, महाराष्ट्र सरकार द्वारा शहर में अनधिकृत निर्माणों को अधिकृत करने के लिए अध्यादेश पारित किया गया था। उस अध्यादेश की मदद से जयपाल रोहरा ने मनपा के तज्ञ लोगों से मालिकाना हक के लिए आवेदन किया। विशेषज्ञ समिति और प्रांतीय अधिकारियों द्वारा पूरे आवेदन की जांच करने के बाद, प्रांत के अधिकारियों ने प्रांत के कार्यालय को भूमि के स्वामित्व के लिए १० लाख ८ हजार ३२० रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया। ३ जुलाई २००७ को, जयपाल रोहरा ने इस राशि का भुगतान किया। उन्होंने मनपा में १ लाख ३७ हजार रुपए भी जमा कराए। उसके बाद, स्वामित्व का डी फॉर्म बन गया। यह डी फॉर्म ठाणे जिला कलेक्टर कार्यालय में पिछले १२ वर्षों से पड़ा हुआ है। १६ परिवारों में मंगलवार को त्रासदी हुई, जो उम्मीद लगाए बैठे थे कि हम सतनाम साखी में रहने के लिए जाएंगे मंगलवार को, एक निर्माणकर्ता सतपाल सिंह, सतनाम साखी के भूखंड पर कुछ गुंडे प्रवृत्ति के लोगों को लेकर आया और उसने सीधे कंपाउंड बनाकर प्लॉट पर कब्जा कर लिया।
सतनाम सखी के निवासियों और राम वाधवा के द्वारा उनका विरोध किया गया लेकिन पुलिस प्रशासन की मदद से, इस विरोध को सकपाल सिंह ने तोड़ दिया। जब पुलिस से इस बारे में पूछा गया, तो पुलिस ने बताया कि इस भूखंड का मालिकाना हक उप-विभागीय अधिकारी जगतसिंह गिरासे ने भोईर परिवार को दे दी है। जब राम वाधवा से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि सतनाम सखी की भूमि के स्वामित्व के लिए हमने ११ लाख रुपए मनपा में भरे हैं। यदि यह भूखंड २००७ में तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी ने हमें बेच दिया था, तो उपखंड अधिकारी जगत सिंह गिरासे इसे भोईर और सकपाल सिंह को कैसे बेच सकते है? अगर उन्होंने दूसरी बार भूखंड बेचा है, तो जगत सिंह गिरासे को धोखा देने के लिए दोषी माना जाएगा ? जब इस विषय पर उप-विभागीय अधिकारी जगतसिंह गिरासे का पक्ष जानने के लिए सेल फोन से संपर्क करने की कोशिश की गई परन्तु उन्होंने फोन उठाना मुनासिब नही समझा।
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