30 साल पुराना हिरासत में मौत का मामला : गुजरात के पूर्व IPS अफसर संजीव भट्ट को उम्रकैद गुजरात में 30 साल पुराने हिरासत में हुई मौत के मामले में गुजरात के जामनगर की अदालत ने पूर्व IPS अफसर संजीव भट्ट को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। जामनगर स्थित सत्र अदालत के जज डी एन व्यास ने भट्ट को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई। मामले में छह अन्य पुलिसकर्मियों को भी दोषी ठहराया गया है। दरअसल 1990 में जामनगर में भारत बंद के दौरान हिंसा हो गई थी। भट्ट उस समय पुलिस के सहायक अधीक्षक थे। करीब 133 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें से एक आरोपी की हिरासत से बाहर आने पर मौत हो गई थी। आरोप लगाया गया था कि हिरासत में उसके साथ मारपीट की गई थी। इसके बाद शिकायत के आधार पर भट्ट व अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। पहले मुकदमा चलाने की अनुमति ना देने के बाद 2011 में गुजरात सरकार ने ट्रायल की अनुमति दे दी। इससे पहले 12 जून को कुछ अतिरिक्त गवाहों को बुलाने की पूर्व IPS अफसर संजीव भट्ट की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। भट्ट ने 16 अप्रैल के गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें 14 की बजाए सिर्फ तीन अतिरिक्त गवाहों को जिरह के लिए बुलाने की अनुमति दी थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने इस याचिका को खारिज किया था और इसके साथ ही गुजरात के जामनगर की ट्रायल कोर्ट द्वारा 20 जून को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अपना फैसला सुनाने का रास्ता साफ हो गया था। सुनवाई के दौरान भट्ट के वकील ने कहा कि न्याय के लिए 11 गवाहों को परीक्षण के लिए वापस बुलाया जाना चाहिए। अभियोजन ने जानबूझकर 300 में से सिर्फ 32 गवाह ही बुलाए थे। वहीं गुजरात सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह द्वारा यह कहते हुए विरोध किया गया था कि ट्रायल कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है और सुप्रीम कोर्ट के 24 मई के फैसले के मुताबिक वो 20 जून को अपना फैसला सुनाएगा। तीन जजों की पीठ ने 24 मई को जामनगर ट्रायल कोर्ट को 20 जून तक ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया था क्योंकि यह केस 30 साल पुराना है। गुजरात ने SC को यह भी बताया था कि सभी गवाहों को अदालत में पेश किया गया था,लेकिन भट्ट ने उनसे जिरह नहीं की। सुनवाई के दौरान पीठ ने भट्ट के वकील से कहा था कि बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती पहले क्यों नहीं दी गई। पीठ ने कहा कि वह 24 मई के आदेश के साथ हस्तक्षेप नहीं करेगी क्योंकि यह तीन न्यायाधीशों द्वारा पारित किया गया था।
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