हाईकोर्ट ने बंधक बनाकर एक महिला से नौ माह तक दुष्कर्म करने के अपराध में 30 साल कैद की सजा काट रहे दोषी को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कई विरोधाभास व विसंगतियां है। कोई कैसे नौ माह तक किसी को बंधक बनाकर दुष्कर्म कर सकता है। निचली अदालत ने दोषी को 2014 में कैद की सजा सुनाई थी।
न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर ने याची शिवा की अपील पर फैसला सुनाते हुए निचली अदालत के फैसले को निरस्त कर दिर्या। कोर्ट ने कहा निचली अदालत के फैसले में खामी है और यह कही नहीं टिकता है। इसलिए इस फैसले को निरस्त किया जाता है।
अभियोजन के मुताबिक महिला का आरोप था कि वह अपने परिवार के साथ 2012 में रेल से यात्रा कर रही थी। जब वह शौचालय गई तो आरोपी ने उसका मुंह रूमाल से बंद कर दिया और शोर मचाने पर उसके परिवार को खत्म करने की धमकी दी।
मुंह बंद होने के बाद वह बेहोश हो गई। उसे जब होश आया तो उसने खुद को एक कमरे में पाया, जहां नशीला पदार्थ देकर आरोपी उससे दुष्कर्म करता था। उसके दो दोस्त भी अपना चेहरा छिपाकर उससे दुष्कर्म करते थे। इस तरह वह उससे नौ माह तक दुष्कर्म किया गया।
याची की ओर से जिरह करते हुए अधिवक्ता प्रमोद कुमार दुबे ने कहा कि केस की फोरेंसिक रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका सैंपल लैब में भेजने में दो सप्ताह का विलंब हुआ था। इसके अलावा किसी महिला की सहमति के बिना कोई भी उससे नौ माह तक शारीरिक संबंध नहीं बना सकता और इतने लंबे समय तक उसके साथ एक ही स्थान पर नहीं रह सकता।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर गौर किया कि केस में ऐसे कई सवाल हैं जो अनसुलझे ही रह गए। मसलन, भीड़ भाड़ वाली रेल से याची बेहोश पीड़िता को कैसे ले गया। उसे न किसी ने देखा है और न किसी ने शोर मचाया।
हाईकोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि याची के साथ पीड़िता एक दुकान पर गई थी और वहां से अपनी पसंद का टीवी खरीदा था। इसके अलावा याची ने पीड़िता को जहां रखा था वहां बहुत से कमरे थे और उनमें रहने वाले एक ही शौचालय का इस्तेमाल करते थे। नौ माह ही अवधि में पीड़िता कई बार शौचालय गई होगी, लेकिन तब उसने किसी से अपनी बात नहीं कही। इन बातों पर भरोसा करना संभव नहीं है।
न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर ने याची शिवा की अपील पर फैसला सुनाते हुए निचली अदालत के फैसले को निरस्त कर दिर्या। कोर्ट ने कहा निचली अदालत के फैसले में खामी है और यह कही नहीं टिकता है। इसलिए इस फैसले को निरस्त किया जाता है।
अभियोजन के मुताबिक महिला का आरोप था कि वह अपने परिवार के साथ 2012 में रेल से यात्रा कर रही थी। जब वह शौचालय गई तो आरोपी ने उसका मुंह रूमाल से बंद कर दिया और शोर मचाने पर उसके परिवार को खत्म करने की धमकी दी।
मुंह बंद होने के बाद वह बेहोश हो गई। उसे जब होश आया तो उसने खुद को एक कमरे में पाया, जहां नशीला पदार्थ देकर आरोपी उससे दुष्कर्म करता था। उसके दो दोस्त भी अपना चेहरा छिपाकर उससे दुष्कर्म करते थे। इस तरह वह उससे नौ माह तक दुष्कर्म किया गया।
याची की ओर से जिरह करते हुए अधिवक्ता प्रमोद कुमार दुबे ने कहा कि केस की फोरेंसिक रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका सैंपल लैब में भेजने में दो सप्ताह का विलंब हुआ था। इसके अलावा किसी महिला की सहमति के बिना कोई भी उससे नौ माह तक शारीरिक संबंध नहीं बना सकता और इतने लंबे समय तक उसके साथ एक ही स्थान पर नहीं रह सकता।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर गौर किया कि केस में ऐसे कई सवाल हैं जो अनसुलझे ही रह गए। मसलन, भीड़ भाड़ वाली रेल से याची बेहोश पीड़िता को कैसे ले गया। उसे न किसी ने देखा है और न किसी ने शोर मचाया।
हाईकोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि याची के साथ पीड़िता एक दुकान पर गई थी और वहां से अपनी पसंद का टीवी खरीदा था। इसके अलावा याची ने पीड़िता को जहां रखा था वहां बहुत से कमरे थे और उनमें रहने वाले एक ही शौचालय का इस्तेमाल करते थे। नौ माह ही अवधि में पीड़िता कई बार शौचालय गई होगी, लेकिन तब उसने किसी से अपनी बात नहीं कही। इन बातों पर भरोसा करना संभव नहीं है।
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