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9 अगस्त 2019 को भारत छोड़ो आंदोलन के 77 वर्ष पूरे !

भारत छोड़ो आंदोलन के 77 वर्ष
  स्वतंत्रता आन्दोलन के मूल्यों के पुर्नस्थापना की जरूरत
. डाॅ सुनीलम
9 अगस्त 2019 को भारत छोड़ो आंदोलन के 77 वर्ष पूरे होंगे। भारत छोड़ो आंदोलन 9 अगस्त 1942 को अंगेजी हुकूमत के खिलाफ 8 अगस्त को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रस्ताव के आधार पर शुरू हुआ था। 8 अगस्त की रात को मुंबई की कांग्रेस कमेटी की मीटिंग के बाद कांग्रेस के लगभग सभी प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गये तथा अधिकतर नेता अगले तीन वर्ष जेल में रहे। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में समाजवादियों ने तय किया कि वे गिरफतारी नहीं देंगे तथा भूमिगत आंदोलन चलाएंगे। हालांकि यूसुुफ मेहरअली और अशोक मेहता गिरफ्तार कर लिये गये थे। जयप्रकाश जी, एनजी गोरे पहले से ही जेल में थे लेकिन डाॅ राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, पुरुषोत्तम त्रिकमदास, एस एम जोशी, शिरू लिमये, मधु लिमये, अरुणा आसफअली और उषा मेहता ने मिलकर आंदोलन चलाने का निर्णय किया। उधर एआईसीसी के गांधीवादी कांग्रेसी नेताओं ने भूमिगत एआईसीसी का गठन किया, जिसका नेतृत्व सुचेता कृपलानी, सादिक अली, गिरधर कृपलानी ने किया। समाजवादियों एवं एआईसीसी के बीच में डाॅ राममनोहर लोहिया संवाद कायम करने का कार्य नियमित रूप से करते रहे। हजारीबाग जेल से फरार होने के बाद जे पी भी उनके साथ जुड़ गये। अगस्त क्रांति के सभी दस्तावेज बतलाते हैं कि यह आंदोलन स्वतः स्फूर्त था। भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में यह उल्लेख करना जरूरी है कि यदि गांधीजी द्वारा भारत छोड़ो का आवाहन नहीं किया गया होता तथा स्वतः स्फूर्त तरीके से लाखों देशभक्त आजादी के लिए सब कुछ कुर्बान करने की मंशा से नहीं सामने आये होते तो देश को 15 अगस्त 1947 को आजादी नहीं मिली होती।
 इतिहासकारों के अनुसार इस आंदोलन में पचास हजार देशभक्त शहीद हुए। एक लाख से अधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने लंबी जेल काटी। यह आंदोलन 1757 से शुरू हुई अंग्रेजों के खिलाफ बगावतों के बाद सबसे बड़ा जनआंदोलन था। हांलाकि चर्चा 1857 के गदर की ज्यादा होती है।
 भारत छोड़ो आंदोलन का नाम युसुफ मेहरअली द्वारा दिया गया था। गांधी जी ने अपने आवाहन में करो या करो का नारा बुलंद किया था। यह जानना बहुत जरूरी है कि आखिरकार कौन सी परिस्थिति थी जिसके चलते गांधी जी ने यह अपील की थी। तब जापान ने फ्रेंच और डच साम्राज्य के दक्षिण पूर्व एशिया के हिस्से को बरबाद कर दिया था। अंग्रेजी फौज ने सिंगापुर में समर्पण कर दिया था। बर्मा जीता जा चुका था तथा जापान भारत के पूर्वोत्तर तक पहुंच चुका था। अंग्रेजों ने भारत से युद्ध में साथ लेने के लिए जो क्रिप्स मिशन भेजा था उसका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जर्मनी जा चुके थे तथा भारत को आजाद कराने के लिए जर्मनी और जापान के साथ मिलकर तैयारी कर रहे थे। लेकिन गांधीजी को लगता था कि जर्मनी और जापान के हथियारों से प्राप्त आजादी एक तरह से गुलामी की अदला.बदली होगी। भारत, जर्मनी और जापान का गुलाम हो जाएगा। मौलाना आजाद, राजाजी और जवाहरलाल नेहरू अंगेेजों से बातचीत कर राष्ट्रीय सरकार बनाकर सत्ता हस्तांतरण कराना चाहते थे। चर्चिल इसके लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने मुस्लिम लीग और विभिन्न राजाओं से संपर्क कर उन्हें कांगेेस के खिलाफ खड़ा करना शुरू कर दिया था। नेहरू और राजाजी चाहते थे कि राष्ट्रीय सरकार के माध्यम से प्रतिरोध तैयार किया जाय। राजाजी बार बार विभाजन को स्वीकार करके मुस्लिम लीग से आजादी के आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने की बात कर रहे थे। लेकिन अमरीकी फौजों के युद्ध में उतरने की घोषणा होते ही गांधीजी को खतरा दिखलाई देने लगा था। गांधीजी भारत को युद्ध में नहीं झोंकना चाहते थे। उन्हें लगता था कि यदि भारत पर युद्ध थोपा गया तो कुछ ही समय में हिंदू.मुसलमानों के बीच गृह युद्ध शुरू हो जाएगा। लेकिन जवाहरलाल नेहरू अमरीकी फौजों के शामिल होने के विरोध में नहीं थे। लेकिन वे जापानियों के साथ युद्ध के लिए तैयार थे। उन्हांेने यहां तक कहा कि यदि सुभाष बाबू जापानी फौजों के साथ भारत में प्रवेश करते हैं तो वे खुद तलवार हाथ में लेकर लड़ने को तैयार हैं। कांगे्रस के बड़े नेताओं की आपसी अलग अलग टकरावपूर्ण भूमिका के चलते गांधीजी की नींद उड़ गयी थी। गांधी जी ने 15 अप्रैल 1942 को जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर कहा कि उन्हें लगता है कि अमरीकी फौजों का भारत आना देश के लिए अच्छा नहीं होगा तथा गुरिल्ला युद्ध के रास्ते पर जाना भी ठीक नहीं होगा। राजाजी को तो उन्होंने सभा से इस्तीफा देने और कांग्रेस से रिश्ता समाप्त कर देने तक की सलाह दे दी थी।
 गांधी जी से जवाहर लाल नेहरू सहमत नहीं हुए। उन्होंने वर्किंग कमेटी से इस्तीफा देने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने मौलाना अब्दुल कलाम आजाद को भी अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए कहा और कमेटी का नया अध्यक्ष बनाने का सुझाव दिया ताकि वर्किंग कमेटी को एकजुट रखा जा सके। ऐसी परिस्थिति में गांधी जी ने राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन का मन बनाया था। गांधी जी किसी भी हालत में अंग्रेजी हुकुमत को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं थे। उन्हें यह स्पष्ट दिखलाई दे रहा था कि यदि अमरीकी फौजों को देश में बुलाया गया तो जापान हमला करेगा। गांधी जी अपने प्रस्तावों को लेकर इतने व्यग्र थे कि उन्होंने आमरण अनशन, यहां तक कि अपने साथियों के साथ आत्मदाह करने तक का प्रस्ताव रख दिया था। इस पूरी परिस्थिति को देखते हुए जवाहरलाल नेहरू पीछे हट गये। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे राजाजी के अभियान के साथ नहीं हैं। 30 जून 1942 को अपने लेख में जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि अंग्रेजी साम्राज्य को जाना ही होगा। केवल इसलिए नहीं कि वह पाप पूर्ण है बल्कि इसलिए भी कि वह दुनिया की प्रगतिशील ताकतों की जीत में सबसे बड़ी बाधा है।
 गांधी जी ने जब कंाग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को निर्णायक संघर्ष के लिए तैयार कर लिया तब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक 7-8 अगस्त को बुलायी गयी। हालांकि गांधी जी ने पहले ही सत्याग्रहियों के लिए 4 अगस्त 1942 को निर्देश तैयार कर लिये थे। वे चाहते थे कि पूरे देश में हड़तालें हों। लोग सरकारी नौकरी छोड़ें। टैक्स देना बंद करें तथा राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी होने पर अपनी आत्मा की आवाज के अनुसार अंग्रेज साम्राज्यवाद का प्रतिरोध करें लेकिन किसी हालत में वे हिंसा नहीं चाहते थे। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि वे चोरीचैरा की तरह, इस आंदोलन से पीछे नहीं हटेंगे।
 अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में 8 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ। प्रस्ताव पारित होने के बाद ग्वालिया टैंक (अगस्त क्रांति मैदान) में गांधी जी ने ऐतिहासिक भाषण दिया। उन्होंने सबसे पहले उन 3 साथियों को बधाई दी जिन्होंने प्रस्ताव में संशोधन दिये थे तथा संशोधनों पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की मीटिंग में मत विभाजन कराया था। उन्होंने उन 13 मित्रों को भी बधाई दीए जिन्होंने प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया था। केवल इतना ही नहीं उन्होंने संशोधन और विपक्ष में वोट करने वालों की प्रशंसा करते हुए कहा था कि उन्हें खुशी है कि वे अपने विचारों के साथ दृढता से खड़े रहे और उन्होंने अपनी प्रतिबद्धताओं को बहादुरी से पेश किया। क्या आज किसी राजनैतिक दल में यह कल्पना की जा सकती है कि मुख्य नेता का विरोध करने वाले का वैसा सम्मान हो जैसा गांधीजी ने अपने विरोधियों का किया था ?
 अपने भाषण में गांधी जी ने कहा कि हिंदू.मुस्लिम की एकता तथा उनका आपसी भाईचारा अहम मुद्दा है। उन्होंने बताया कि बचपन से उन्होंने किस तरह मुस्लिम मित्र बनाने का प्रयास किया तथा यही प्रयास दक्षिण अफ्रीका में जारी रखा। खिलाफत आंदोलन में मुसलमानों द्वारा उन्हें अपना मित्र राष्ट्रीय तौर स्वीकार किये जाने का भी जिक्र उन्होंने किया। उन्होंने कहा कि मैं मानता हूं कि मुझे और मुसलमानों को एक ही ईश्वर ने पैदा किया है। हम हिन्दू.मुस्लिम में भेद नहीं कर सकते। उन्होंने सदियों पुराने हिन्दू.मुस्लिम भाईचारे की याद करते हुए हिन्दू और मुसलमानों से अपील की कि वे आपसी संदेह दूर करके समाज में भाईचारा और एकजुटता कायम करें। उन्होंने यहां तक कहा कि मैं किसी के साथ धोखा नहीं करना चाहता। मैं अपनी जिंदगी को उनके हवाले करने को तैयार हंू, वे जब चाहें मेरी जान ले सकते हैं। लेकिन यदि कोई मुझे यह सोच कर गोली मारता है कि मेरे जैसे मूर्ख से उसको मुक्ति मिल जाएगी, तो मैं उससे कहना चाहता हूं कि वह असली गांधी को नहीं मार पायेगा। उन्होंने मुसलमानों से कहा कि मोहम्मद पैगम्बर अपने दुश्मनों के साथ भी दया के साथ पेश आते थे। इस्लाम शत्रु को भी मारने में विश्वास नहीं करता। यदि मेरी हत्या होती है तो बाद में उन लोगों को पछताना पड़ेगा कि उन्होंने अपने एक सच्चे और प्रतिबद्ध मित्र की हत्या की।
 उन्होंने कहा कि देश के लाखों मुसलमान पहले हिंदू थे। अपने सबसे बड़े लड़के का उल्लेख करते हुए उन्होंने पूछा कि उसने कुछ वर्ष पहले इस्लाम कबूल कर लिया था, तब उसकी मातृ.भूमि क्या होगी ? पोरबन्दर या पंजाब ? उन्होंने मुसलमानों से पूछा कि आप मेरे बेटे को कहां रखेंगे ? उन्होंने कहा कि क्या शराब पीते हुए भी कोई मुसलमान रह सकता है ? यदि वह शराब पीना छोड़ देता है और अच्छा इंसान बन जाता है तो यह धर्मांतरण उसके अच्छे के लिए होगा। और यदि वह नहीं छोड़ता है तो उसके साथ मेरा असहयोग जारी रहेगा।
 उन्होंने कहा कि भारत सबका है। हिंदू और मुसलमानों दोनों का है। कांग्रेस किसी एक वर्ग या समूह की पार्टी नहीं है। वह पूरे देश की पार्टी है। कांग्रेस हिंदुओं की तरफ से नहीं लड़ रही, पूरे देश की तरफ से लड़ रही है। मैंने कभी नहीं सुना कि किसी कांग्रेसी के द्वारा मुसलमान की हत्या की गयी, हां, मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में हिंदुओं के हमले से मुसलमानों को बचाने के लिए वह अपनी जान देने को तैयार रहेंगे। वे अहिंसा के सिद्धांत का पालन करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह अंग्रेजों द्वारा कांग्रेस से लड़ने के लिए संगठन पैदा किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सत्याग्रह में असत्य, फर्जीवाड़े और झूठ का कोई स्थान नहीं है। अंग्रेेजी हुकूमत झूठ और हिंसा की बुनियाद पर टिकी है, इस कारण उसे उखाड़ फेंकना जरूरी है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वे वाइसराय द्वारा कांग्रेस की मांग को स्वीकार करने के लिए दो.तीन हफ्तों का समय देने को तैयार हैं। उन्होंने 14 रचनात्मक कार्यों की घोषणा की तथा वाइसराय का उत्तर मिलने तक उन कार्यो को जारी रखने के लिए कांग्रेसियों से अपील की। उन्होंने कहा कि आज से हर व्यक्ति पुरुष और महिला खुद को स्वतंत्र माने तथा वैसा ही करे जैसा कि कोई भी स्वतंत्र व्यक्ति करता है, वह साम्राज्यवाद के अधीन न रहे। उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि यही स्वतंत्रता का सार है जब गुलाम खुद को स्वतंत्र मान लेता है तब उसी क्षण से वह स्वतंत्र हो जाता है। उन्होंने देशवासियों से अपील की कि वे खुद को बंधनों से मुक्त करें। उन्होंने यह भी विश्वास दिलाया कि वे वाइसराय के साथ कुछ मंत्रालयों के लिए वे समझौता नहीं करेंगे तथा पूर्ण स्वराज से कम पर तैयार नहीं होंगे। स्वतंत्रता से कम कुछ नहीं। उन्होंने मंत्र दिया ‘‘करो या मरो’’। गांधी जी के शब्दों में. हम या तो आजाद होंगे या आजादी की जंग में मारे जाएंगे। हम गुलामी की जिंदगी जीने के लिए जीवित नहीं रहेंगे। हम तब तक नहीं आराम करेंगे जब तक आजादी हासिल नहीं हो जाती।
 मोहम्मद अली जिन्ना के बयानों पर टिप्पणी करते हुए गांधीजी ने कहा कि अहिंसा के माध्यम से ही सच्चा लोकतंत्र लाया जा सकता है, इस कारण हिंदू.मुस्लिम का सवाल हिंसा से हल करने का प्रयास नहीं होना चाहिए। उन्होंने हिंदुओं के नेता सावरकर और डाॅ मुंजे से कहा कि यदि आपको लगता है कि मुसलमानों को तलवार की दम पर हिंदुओं के अधीनस्थ लाया जा सकता है तथा कांग्रेस को आप मारना चाहते हैं तो मैं आपसे कहना चाहता हूं कि आप देश को हिंदू और मुसलमानों को सतत युद्ध और खून.खराबे की दिशा में झोंकना चाहते हैं। मैं इसे देखने के लिए जिंदा नहीं रहूंगा। उन्होंने कहा कि यह सवाल मेरे लिए जीवन और मृत्यु का सवाल है। उन्होंने कहा कि सबसे पहला सवाल अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति होना चाहिए। इसलिए हिंदू और मुसलमानों दोनों को मिलकर पहले आजादी की लड़ाई लड़नी चाहिए।
 उन्होंने कहा कि मैं तुरन्त आजादी चाहता हूं। सुबह होने के पहले आजादी चाहता हूं। आजादी साम्प्रदायिक सद्भाव होने तक इंतजार नहीं करेगी। कांग्रेस या तो आजादी हासिल करेगी या खत्म हो जाएगी। उन्होंने देशवासियों को यह भी याद दिलाया कि आजादी केवल कांग्रेसियों के लिए नहीं होगी भारत की 40 करोड़ जनता के लिए होगी तथा कांगे्रसजन उसके विनम्र सेवक रहेंगे।
 गांधीजी के आवाहन का देश पर जादुई असर हुआ। 9 अगस्त से लगातार देश में तिरंगे झंडे को लेकर देश भक्त, सरकारी इमारतों पर चढ़ने लगे, अंग्रेजों के झंडे को उतारने लगे। इस जद्दोजहद में हजारों देशभक्त हाथ में तिरंगा झंडा लेकर शहीद हो गये। अगस्त क्रांति के शहीदों को देशवासी आज कितना जानते हैं और याद करते हैंए यह हर राष्ट्रवादी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।
 डाॅ राममनोहर लोहिया ने डाॅ जी जी पारिख को लिखे गये पत्र में कहा था कि 9 अगस्त जनक्रांति दिवस के तौर पर मनाया जाना चाहिए। लेकिन देश के हुक्मरानों ने अगस्त क्रांति के शहीदों को देशवासियों के मानस पटल से भुला देने की कोशिश की। यदि ऐसा नहीं होता तो इस देश में 9 अगस्त जनक्रांति दिवस के तौर पर जरूर मनाया जाता तथा देश भर में अगस्त क्रांति के शहीदों की याद में कार्यक्रम आयोजित किये जाते। गांधी जी ने जब भारत छोडो तथा करो या मरो का नारा दिया था तब उन्होंने हिंदू.मुस्लिम एकजुटता के सवाल को सर्वोच्च अहमियत दी थी। लेकिन देश के सत्ताधीश यह भूल गये तथा आज फिर विभाजन के बाद देश में ऐसी परिस्थिति पैदा की जा रही है जिसमें हर मुसलमान को संदेह की नजर से देखा जा रहा है, हिंदू राष्ट्र के नाम पर संघ परिवार समाज में हिंसा फैलाने पर उतारू है, भीड़ द्वारा चुनचुन कर मुसलमानों की हत्या की जा रही है, जिससे यह साफ होता है कि जिस भावना के साथ भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया था, उसे पूरी तरह तिरोहित करने का काम दिल्ली में बैठी मोदी सरकार और संघ परिवार के द्वारा किया जा रहा है। यानी अगस्त क्रांति के दौरान संघ की जो भूमिका थी वह आज भी नहीं बदली है।
 आजादी के आंदोलन के मूल्य, जो भारत के संविधान का अभिन्न अंग हैं, जो आज खतरे में हैं। अगस्त क्रांति से प्रेरणा लेने वालों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वे आजादी के आंदोलन के मूल्यों पर हो रहे हर हमले का न केवल प्रतिकार करें, बल्कि आजादी के मूल्यों को पुनस्र्थापित करने का प्रयास करें। हालांकि इस प्रयास को जारी रखना लगातार कठिन होता जा रहा है। लेकिन अगस्त क्रांति के शहीदों की प्रेरणा से यह संभव है। जरूरत आजादी के आंदोलन के मूल्यों के लिए त्याग, बलिदान और कुर्बानी देने हेतु युवा पीढ़ी तैयार करने की है। यही हम सबका राष्ट्रीय धर्म और कर्तव्य होना चाहिए। भारत छोड़ों आंदोलन के शहीदों के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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