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न्यूज पोर्टल्स के आने से सबसे ज्यादा नुकसान चाटुकार पत्रकारों व भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों और अवैध व्यापार करने वालों को हुआ है !

आज के तकनिकी युग में हर क्षेत्र में क्रांति आयी। जिसमे पत्रकारिता भी पीछे नहीं रही। पत्रकारों को अपने विचारों व अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए एक नया क्रन्तिकारी मंच मिला जिसे आज हम “न्यूज पोर्टल” के नाम से जानते है।

दुनिया भर में न्यूज पोर्टल की शुरुआत बड़ी तेजी से हुई। न्यूज पोर्टल्स की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कई पुराने अख़बार व टीवी चैनलों ने भी अपना-अपना वेब पोर्टल शुरू किया, लेकिन जहाँ एक ओर न्यूज पोर्टल से पत्रकारिता में एक नयी क्रांति आ रही है वहीं दूसरी ओर कई बार ये खबर फैलती रहती है कि न्यूज पोर्टल फ़र्ज़ी है और न्यूज पोर्टल पर काम करने वाले संवाददाताओं /कार्यकर्ताओं को सरकार पत्रकार नहीं मानती।

इस तरह कि भ्रामक और झूठी खबरे आये दिन “सोशल मीडिया” में देखने को मिल जाती है। इतना ही नहीं कई सरकारी अधिकारी भी इन ख़बरों पर सही कि मुहर लगा बैठते है।

ये जो लोग या अधिकारीगण ये मानते और कहते हैं कि न्यूज पोर्टल फ़र्ज़ी है और इनमे कार्यरत संवाददाताओं को सरकार पत्रकार नहीं मानती है, दर असल इन लोगों/ अधिकारीयों को न ही पत्रकारिता के विषय में कोई ज्ञान है और न ही पत्रकारिता के संघर्ष कि जानकारी। ये पहली बार नहीं है जब किसी ऐसे मंच को मौन रखने कि साजिश रची जा रही है जिसका सम्बन्ध पत्रकारिता से हो।

न्यूज पोर्टल्स फर्जी है या नहीं

ये जानने से पहले एक नजर डालते है, भारत में पत्रकारिता के इतिहास पर

भारत में पत्रकारिता का इतिहास बहुत ही उपेक्षापूर्ण रहा है। अगर हम इतिहास को देखें तो पाएंगे कि अंग्रेजी शासकों ने पत्रकारों को दबाने का बहुत प्रयास किया है। अंग्रेजी हुक्मरानो ने पत्रकारों कि आवाज दबाने के लिए भारतीय प्रेस पर तरह तरह के एक्ट पारित किये। अंग्रेजों को सबसे ज्यादा तकलीफ हिंदी में प्रकाशित समाचार पत्रों से होती थी।
अंग्रेजी शासनकाल में प्रेस पर क़ानूनी नियंत्रण की शुरुआत सबसे पहले तब हुई जब लॉर्ड वेलेजली ने प्रेस नियंत्रण अधिनियम द्धारा सभी समाचार-पत्रों पर नियंत्रण (सेंसर) लगा दिया। इसे प्रेस नियंत्रण अधिनियम,1799 के नाम से जाना जाता है।

हिंदुस्तानी पत्रकारिता पर पूर्ण प्रतिबंध गवर्नर जरनल जॉन एडम्स ने सन् 1823 में भारतीय प्रेस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। इस नियम के अनुसार मुद्रक तथा प्रकाशक को मुद्रणालय स्थापना करने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था तथा मजिस्ट्रेट को मुद्रणालय जब्त करने का भी अधिकार था 1823 के इन नियमो कि वजह से राजा राम मोहन रॉय को अपनी पत्रिका ‘मिरात-उल-अख़बार’ का प्रकाशन बंद करना पड़ा।

“मुंह बन्द करने वाला अधिनियम या वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट”

1878 लॉर्ड लिटन ने वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू किया इस एक्ट के प्रमुख प्रावधान थे

प्रत्येक प्रेस को यह लिखित वचन देना होगा कि वह (अंग्रेजी) सरकार के विरुद्ध कोई लेख नहीं छापेगा।प्रत्येक मुद्रक तथा प्रकाशक के लिए जमानत राशि जमा करना आवश्यक होगा।इस संबंध में जिला मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा तथा उसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकेगी।ये कुछ ऐसे एक्ट थे जिनका मुख्य उद्देश्य भारतीय प्रेस को पूर्ण रूप से मौन करना था।

आजादी के बाद सन 1966 में भारतीय प्रेस परिषद् कि स्थापना हुई.जिसका उद्देश्य भारत में प्रेस के मानकों को बनाए रखने और सुधार की स्वतंत्रता का संरक्षण है। लेकिन भारत में एमर्जेन्सी के दौरान एक बार फिर से पत्रकारिता को काले दिन देखने पड़े। सरकारी तानाशाही कि वजह से बहुत से समाचारों पत्रों ने दम तोड़ दिया। फ़िलहाल किसी तरह से पत्रकारिता ने खुद को संभाला और तमाम सरकारी और कॉरपरेट दबाव के बावजूद भी पत्रकारों ने पत्रकारिता के वजूद को जिन्दा रखा। इस दौरान टीवी का युग आया और फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जन्म हुआ। शुरुआत में इलेक्ट्रिक मीडिया को भी तरह तरह कि उपेक्षाएँ सहनी पड़ीं, लेकिन धीरे धीरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने प्रिंट मीडिया को पीछे छोड़ दिया।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आने से भारत में जहाँ एक ओर नई क्रांति आई वहीँ दूसरी ओर निजी/व्यवसाई कंपनियों के हस्तक्षेप से पत्रकारिता का स्तर भी गिरा। इस सम्बन्ध में “प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया” के अध्यक्ष रहे जस्टिस काटजू ने कहा था कि, “भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकारिता कि गरिमा को भूल बैठा है। उसे जन-सरोकार से कोई मतलब नहीं बल्कि वो कॉपोरेट और सरकारी प्रचारक कि तरह काम कर रहा है। यह वह समय था जब भारतीय पत्रकारिता वाकई बुरे दौर से गुजर रही थी। इस समय हम एक नए युग में आ गए थे, जिसे आज हम इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी का युग के नाम से जानते है। इस तकनिकी युग के आने के कुछ ही वर्षों के बाद न्यूज पोर्टल्स कि शुरुआत हुई। न्यूज पोर्टल्स ने काफी हद तक पत्रकारिता से सरकारी व कॉर्पोरेट दबाव का कम किया।

क्यों उड़ती है न्यूज पोर्टल्स के सम्बन्ध में अफवाहें

सरकारी व कॉपोरेट दबाव न होने कि वजह से न्यूज पोर्टल के संवादाता व संपादक स्वतंत्र हो कर सरकारी व निजी कंपनियों कि खामियों को लिखते व दिखाते है। जिस वजह से न्यूज पोर्टल्स इन लोगों को नहीं भाता इसलिए समय समय पर न्यूज पोर्टल के सम्बन्ध में फ़र्ज़ी अफवाहें उड़ाई जाती है।

कौन उड़ाते है फर्जी अफवाह

न्यूज पोर्टल्स के आने से सबसे ज्यादा नुकसान चाटुकार पत्रकारों व भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों और अवैध व्यापार करने वालों को हुआ है। पहले भृष्टाचार, किसी विभाग की कमी या फिर किसी अवैध व्यापार की जानकारी किसी कलमचोर टाइप के पत्रकार को हो जाती थी तो वो खबर लिखने से पहले उस अधिकारी/व्यापारी से बात करके मोटी रकम वसूल लेते थे और खबर गायब कर जाते थे। लेकिन न्यूज पोर्टल के समय में इन दलाल पत्रकारों व भ्रष्ट अधिकारीयों की दाल नहीं गल पाती है क्यूंकि कलमचोर पत्रकारों की सेटिंग होने से पहले ही वह खबर न्यूज पोर्टल/सोशल मीडिया में वायरल हो जाती है।

सरकार ने कभी नहीं कहा कि न्यूज पोर्टल का संवाददाता पत्रकार नहीं है वैसे तो कई बार देखने को मिलता है बहुत से अधिकारीगण भी ये फरमान जारी कर देतें है कि न्यूज पोर्टल को सरकार फ़र्ज़ी मानती है। कई जनपदों में सूचना अधिकारी भी यही राग अलापते मिल जायेंगे; लेकिन यदि इनसे मांग कि जाय कि “क्या इनके पास “सरकार, मिनिस्ट्री ऑफ़ इनफार्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग, प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया या प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो” द्वारा जारी किया गया ऐसा कोई भी आदेश है जिसमे ये कहा गया हो कि सरकार न्यूज पोर्टल के संवाददाता को पत्रकार नहीं मानती, तो ये न तो आपको कोई लिखित आदेश दिखा पाएंगे और न ही कोई जिओ।

न्यूज पोर्टल्स पूर्णत: वैध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में दिए गए स्वतंत्रता के मूल अंधिकार को प्रेस की स्वतंत्रता के समकक्ष माना गया है। भारतीय नागरिक को न्यूज पोर्टल शुरू और संचालित करने कि स्वतंत्रता है।

सरकार जल्दी ही लागू करने वाली है न्यूज पोर्टल हेतु नियमावली न्यूज पोर्टल के पत्रकार भी असली पत्रकार है न्यूज पोर्टल कि बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 4 अप्रैल 2018 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया है कि देश में चलने वाले टीवी चैनल और अखबारों के लिए नियम कानून बने हुए हैं और यदि वह इन कानूनों का उल्लंघन करते हैं तो उससे निपटने के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) जैसी संस्थाएं भी हैं, लेकिन ऑनलाइन मीडिया के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन मीडिया के लिए नियामक ढांचा बनाने के लिए एक समिति का गठन किया जायेगा। दस लोगों की इस कमेटी के संयोजक सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव होंगे। इस कमेटी में “प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया” और एनबीए के सदस्य भी शामिल होंगे। गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के सचिव भी इस कमेटी का हिस्सा होंगे।

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