एक युवक ने आकर अपने गुरु को कहा, अब बहुत हो गया, मैं जीवन छोड़ देना चाहता हूं !!

*मोह का ताना – बाना*
एक युवक ने आकर अपने गुरु को कहा,
अब बहुत हो गया, मैं जीवन छोड़ देना चाहता हूं।
लेकिन पत्नी है, बच्चा है, घर—द्वार है।
गुरु ने कहा, तेरे बिना वे न हो सकेंगे?

*उसने कहा कि ऐसा तो कुछ नहीं है,*
*सब सुविधा है, मेरे बिना हो सकेंगे।*
*लेकिन मुझे लगता है ऐसा कि*
*मैं मर जाऊंगा तो मेरी पत्नी जी न सकेगी,*

मेरे बच्चे मर जाएंगे। इतना उनका प्रेम है मेरे प्रति।
उस फकीर ने कहा,
फिर ऐसा कर, कुछ दिन यह श्वास की विधि है,
इसका अभ्यास कर, फिर आगे देखेंगे।

श्वास की विधि उसने अभ्यास की।
विधि ऐसी थी कि अगर तुम थोड़ी देर के
लिए श्वास साधकर पड़ जाओ, तो मरे हुए मालूम पड़ो।
फिर उस फकीर ने उसे भेजा घर

कि आज सुबह तू जाकर लेट जा और मर जा;
फिर आगे सोचेंगे। मैं आता हूं पीछे।
वह आदमी गया। लेट गया सांस साधकर,
मर गया। मर गया मालूम हुआ।

छाती पिटाई मच गयी, रोना— धोना हुआ,
बच्चे चिल्लाने लगे, पत्नी चिल्लाने
लगी कि मैं मर जाऊंगी।
तभी वह फकीर आया।

द्वार पर आकर उसने अपनी घंटी बजायी।
भीतर आया, उसने कहा, अरे! यह युवक मर गया?
यह बच सकता है अभी,
लेकिन कोई इसके बदले में मरने को राजी हो तो।
सन्नाटा हो गया।

न बेटा मरने को राजी, न बेटी मरने को राजी,
न मा मरने को राजी, न बाप मरने को राजी।
पत्नी, जो अभी तक चिल्ला रही थी मर जाऊंगी,
वह भी चुप हो गयी। अब वह भी नहीं चिल्लाती

कि मर जाऊंगी।
फकीर ने पूछा,
कोई भी तुममें से राजी हो इसकी
जगह मरने को तो यह बच सकता है।
अभी यह गया नहीं है, लौटाया जा सकता है।

अभी बहुत दूर नहीं निकला है,
बुलाया जा सकता है। मगर किसी को
तो जाना ही पड़ेगा। पत्नी ने कहा,
अब यह तो मर ही गया,

अब हमको और क्यों मारते हो!
अब जो हो गया सो हो गया।

गुरु ने उस युवक से कहा,
अब तू अपना सास—साधना छोड़ और उठ।
उसने सांस—साधना छोड़ी, उठा।
अब तेरा क्या खयाल है? उसने कहा,
जब ये लोग कहते हैं कि मर ही गए

और इनमें से कोई मेरे बदले मरने को राजी नहीं,
तो मैं मर ही गया। मैं आपके पीछे आता हूं।
स्वभावत:

उसे रोकना भी मुश्किल हुआ।
पत्नी के पास कहने को कोई कारण भी न बचा।
बुद्ध ने लोगों को समझाया कि तुम जिसे
जीवन कह रहे हो, तुम जिसे जीवन
का लगाव कहते हो,

तुमने जीवन में जो आसक्ति
के बहुत से घर बनाए हैं,
मोह के बहुत ताने—बाने बुने हैं,
तंबू लगाए हैं, उनको जरा गौर से तो देखो,

पानी के बबूले हैं। क्षणभंगुर हैं।
कोई यहां किसी का साथी नहीं,
कोई यहां किसी का संगी नहीं।
तुम ही अपनी देह का भरोसा
नहीं कर सकते और किसका भरोसा करोगे!

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