सुखी आदमी का शोषण नहीं किया जा सकता

! सुखी आदमी का शोषण नहीं किया जा सकता !

सारे विज्ञापन इतना ही कह रहे हैं कि आदमी दुखी है।
और आदमी दुखी है तो उसे चीजें बेची जा सकती हैं।
व्यर्थ की चीजें बेची जा सकती हैं जिनकी कोई जरूरत नहीं है।
लेकिन इस आशा में आदमी खरीदने को तत्पर रहता है कि शायद सुख मिल जाए।
शायद ऐसे मिल जाए। शायद वैसे मिल जाए।

शायद ये कपड़े पहनने से स्त्रियां मोहित होने लगें।
देखते हैं कपड़ों के विज्ञापन? कि इस कपड़े को पहनने वाला आदमी हजारों में अलग ही दिखाई पड़ता है। सारी स्त्रियां चौंक कर उसकी तरफ देखती हैं।
आशा बंधती है कि शायद...मेरी तरफ तो कोई स्त्री चौंक कर नहीं देखती, और मैं अगर किसी की तरफ चौंक कर देखूं तो एकदम पुलिसवाले को बुलाती है,
शायद इस कपड़े के पहनने से... खूबसूरत सूरत मिल्स के कपड़े...शायद स्त्रियां देखने लगें चौंक कर!
शायद इंद्र अप्सराएं भेजने लगे!
तुम्हें आशाओं पर जिलाया जा रहा है।

सिगरेटों के विज्ञापन होते हैं कि इस सिगरेट को पीने में ही प्रतिष्ठा है।
प्रतिष्ठा?
सिगरेट को पीने में?
और सिगरेटें हैं, उनकी कीमतें इतनी ज्यादा हैं कि बहुत ही कम लोग पी सकते हैं।
वह सिगरेट तुम्हारे हाथ में है तो प्रतिष्ठा है।
जिसके हाथ में यह सिगरेट है, उसके चेहरे पर सफलता की शान है।
और हर तरह के उपाय खोजे जाते हैं।

एक आदमी सौ साल का हो गया था। पत्रकार उससे मिलने गए।
उन्होंने पूछा कि तुम्हारे सौ साल के होने का राज क्या है?
उसने कहा, जरा दो दिन रुकना पड़ेगा। अभी राज नहीं बता सकता, दो दिन बाद बताऊंगा।
उन्होंने कहा, यह बड़ी हैरानी की बात है! तुम सौ साल जी भी चुके, क्या राज का तुम्हें पता नहीं है? दो दिन में खोजबीन करोगे?
उसने कहा कि नहीं, राज का तो सब पता है, मगर दो दिन बाद बताऊंगा।
क्योंकि अभी मेरा कई विज्ञापन कंपनियों से सौदा चल रहा है।
जिससे तय हो जाएगा! ओवॅलटीन पीने से सौ साल जीया, कि बॉर्नविटा, कि पारले के बिस्कुट...
अभी कई कंपनियों से मेरा चल रहा है। जरा तय हो जाने दो। दो दिन के बाद ही पक्का कह सकता हूं कि किस कारण से मैं सौ साल जीया।

आदमी दुखी है, उसका शोषण किया जा सकता है। सुखी आदमी का शोषण नहीं किया जा सकता।

ओशो

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