हम बलात्कार की तो निंदा करते हैं, लेकिन हम यह नहीं पूछते कि बलात्कार पैदा ही क्यों होता है। हम जड़ में नहीं जाते। बस हम लक्षणों के ऊपर फिकर कर लेते हैं।
मैं भी विरोधी में हूं बलात्कार के, लेकिन मैं जड़ से विरोध में हूं। मैं चाहता हूं एक और ही तरह की समाजिक व्यवस्था होनी चाहिए, एक और ही तरह की मन की आयोजना होनी चाहिए। कुछ आदिवासी समाज हैं, जैसे बस्तर का आदिवासी समाज है, वहां बलात्कार कभी नहीं हुआ। कोई उल्लेख नहीं है। तुम पूछोगे: ‘क्यों?’ अगर बस्तर के आदिवासियों के बीच बलात्कार नहीं होता, तो तुम तो सभ्य हो, सुसंस्कृत हो, तुम्हारे बीच तो बलात्कार होना ही नहीं चाहिए। मगर जितने सभ्य, जितने सुसंस्कृत उतना ज्यादा बलात्कार। सच तो यह है कि बलात्कार के हिसाब से तुम पता लगा सकते हो कि कितने सुसंस्कृत हो और कितने सभ्य हो; वही मापदंड है। आदिवासी जंगली हैं, मगर बलात्कार नहीं करते। क्या कारण होगा?
मैं तो बस्तर गया इसे जांचने, देखने, रहा बस्तर कि क्या राज होगा, क्योंकि इस तरह के कबीले दुनिया से खो गए हैं। बस्तर का कबीला भी खोया जा रहा है, मिटा जा रहा है, क्योंकि हम उसको बचने नहीं देंगे। हम समझते हैं ये अशिष्ट हैं, असभ्य हैं। हम स्कूल खोल रहे हैं, अस्पताल खोल रहे हैं। ईसाई मिशनरी जा कर उनको शिक्षा दे रहे हैं। ये ही मूढ़, जिन्होंने तुम्हें बरबाद किया है, वे उनको बरबाद करने पहुंच रहे हैं। और बड़ी आशा से कि उनकी सहायता कर रहे हैं, सेवा कर रहे हैं। जल्दी मर जाएंगे ये लोग; बच नहीं सकते, कैसे बचेंगे? हमारे पास खूब साधन हैं और हम उनको प्रलोभित कर लेते हैं आसानी से। हम उनको पकड़ा देंगे रेडिओ और हम उनको पकड़ा देंगे ट्रांजिस्टर सेट और पकड़ा देंगे उनको साइकिलें और पकड़ा देंगे सारी बीमारियां, ताकि अस्पताल जरूरी हो जाएं। और पकड़ा देंगे उनको शिक्षा, स्कूल और महत्वाकांक्षाएं और अहंकार की दौड़ कि बस सब खत्म हो जाएगा। और वहां हमारे पादरी और मिशनरी और हिंदू पंडित और पुरोहित...क्योंकि वे भी पीछे नहीं रह सकते, उनको भी डर है कि ये सब कहीं ईसाई न हो जाएं। तो आर्य-समाजी भी पंहुच गए हैं।
मेरे एक आर्य-समाजी संन्यासी मित्र हैं, वे भी वहां अड्डा जमाए थे। मैंने पूछा: ‘तुम यहां क्या कर रहे हो?’
उन्होंने कहा: ‘हम कैसे पीछे रह सकते हैं! ये सब ईसाई बनाए डाल रहे हैं, हम इनको आर्य समाजी बना कर रहेंगे।’
ये गरीब बच नहीं सकते। और इनका सबका हमला किस बात पर है? जिस बात पर हमला है, वही कारण है वहां बलात्कार के न होने का। तुम चकित होओगे जान कर। बस्तर के आदिवासियों में एक व्यवस्था है, उस व्यवस्था का नाम है--घोटूल। हर छोटे गांव में, छोटे-छोटे गांव हैं, जहां कहीं दो सौ आदमी रहते हैं, कहीं तीन सौ आदमी रहते हैं ज्यादा से ज्यादा एक घोटूल होता है। गांव के बीच में एक सार्वजनिक मकान होता है। जैसे ही बच्चे उम्र पर आ जाते हैं, काम की दृष्टि से, यौन की दृष्टि से प्रौढ़ होने लगते हैं-लड़कीयां तेरह साल की, लड़के चैदह साल के--बस उनको घोटूल में सोना पड़ता है। उनको फिर घर नहीं सूलाते। उनको घोटूल भेज देते हैं। दिन भर वे घर रहें, काम करें, लेकिन रात घोटूल में सोएं। तो सारे गांव की लड़कीयां और सारे गांव के लड़के रात घोटूल में सोते हैं। और उनको पूरी स्वतंत्रता है कि वे प्रेम करें, संबंध बनाएं। हालांकि कुछ नियम हैं, बड़े अद्भुत नियम हैं! एक नियम यह है कि कोई भी लड़का किसी स्त्री के साथ तीन दिन से ज्यादा न रहे, ताकि सारी स्त्रियों का अनुभव कर सके। स्वभावतः सारी स्त्रियां भी सारे पुरुषों का अनुभव कर लेंगी। गांव के सारे पुरुष और सारी स्त्रियां एक-दूसरे से परिचित हो जाएंगे। दो वर्ष घोटूल में रहने के बाद वे तय करेंगे कि तुम्हें कौन सी लड़की पंसद है, किस लड़की को कौन-सा लड़का पसंद है? फिर उनकी शादी की जाएगी। ये शादी बड़ी वैज्ञानिक मालूम होती है। इन्होंने गांव की सारी लड़कियां पहचान लीं, सारे लड़के पहचान लिए, तब निर्णय लिया है। अब आकर्षण आसान नहीं रहा। अब इनको भलीभांति पता है, हर लड़की पता है, हर लड़का पता है। इसलिए अब दूसरे की पत्नी इनको आकर्षित नहीं करेगी। इन्होंने सारे अनुभव के बाद निर्णय लिया है। निर्णय कोई जन्मपत्री देख कर नहीं लिया गया है और निर्णय किसी पंडित-पुरोहित ने, बाप-दादों ने नहीं लिया है; निर्णय खुद लिया है और अनुभव से लिया है। और अपनी पहचान से लिया है। कौन-सी लड़की ने किस लड़के को सर्वाधिक तृप्ति दी और कौन-से लड़के ने किस लड़की को सर्वाधिक आनंद दिया। कौन दो एक-दूसरे से मिल कर तालमेल हो गए।
और तीन दिन से ज्यादा एक साथ रहना नहीं है, ताकि मोह पैदा न हो, आसक्ति पैदा न हो। ये देखते हैं-अनासक्ति का प्रयोग! और अगर तीन दिन से ज्यादा रहोगे तो फिर और लड़कीयों से वंचित रह जाओगे। और फिर इर्ष्या भी पैदा होगी। समझ लो कि एक सुंदर लड़की है, उसके साथ एक लड़के का मेल बन गया, वह उसको छोड़े ही नहीं, तो गांव के दूसरे लड़के उस सुंदर लड़की के प्रति आतुर होने लगेंगे, इर्ष्या जन्मेगी, संघर्श पैदा होगा। नहीं तो तीन दिन के बाद लड़कियां-लड़के अपना संबंध बदल लेंगे। एक-एक लड़की से दो साल के भीतर कई बार संबंध आएगा, मगर तीन दिन से ज्यादा नहीं।
ये घोटूल की व्यवस्था को ईसाई मिशनरी भी कहता है पाप,
तुम भी कहोगे पाप, कि हद हो गयी पाप की!
और आर्य-समाजी भी कहता है महापाप!
यह घोटूल तो बंद होना चाहिए। ये तो वेश्यालय हैं।
*लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि ये घोटूल सारी दुनिया के हर गांव में होने चाहिए, तभी दुनिया से बलात्कार मिटेगा, नहीं तो नहीं मिट सकता।*
इसलिए मैं कहता हूं कि यश, तुमने प्रश्न तो पूछा है;
मेरा उत्तर पचा पाओगे कि नहीं, यह जरा मुश्किल है।
मैं भी बलात्कार का विरोधी हूं। लेकिन मेरे कारण और हैं।
यह बलात्कार जो चलता है दुनिया में इसके लिए जिम्मेवार तुम्हारे धर्मगुरु हैं।
आर्यसमाजी और ईसाई और जैन और बौद्ध और हिंदू--
ये सब इस उपद्रव के पीछे हैं। इन सब मूढ़ों ने तुम्हें आदमी की जो आज की विकृत दशा है, वह दी है।
मगर इन्होंने इतने तर्क इकट्ठे किए हैं सदियों में और तुम उन तर्कों को सुनते-सुनते इतने आदी हो गए हो कि तुमने पुनर्विचार करना बंद कर दिया है।
बस्तर में कभी बलात्कार नहीं हुआ है।
अंग्रेजों ने अपनी रपोर्टो में यह बात उल्लेख की है कि बस्तर में कभी कोई बलात्कार का उल्लेख नहीं आया है आज तक।
अंग्रेजों के इतने दिन के इतिहास में बस्तर में बलात्कार नहीं हुआ है।
बस्तर में बलात्कार होता ही नहीं, होने का कारण ही नहीं रहा।
बात ही समाप्त हो गयी। जीवन सहज हो गया, स्वाभाविक हो गया।
*अनुभव ही तुम्हें इस मूढ़ता से मुक्ति दिला सकता है।*
नहीं तो बात बहुत कठिन है। पशुओं में बलात्कार नहीं होता, क्योंकि पशु मुक्त हैं; एक दूसरे से संबंध बनाने को मुक्त हैं।
पुरुषों में, स्त्रियों में यह उपद्रव खड़ा होता है।
यह उपद्रव नैसर्गिक नहीं है, पाशविक नहीं है-धार्मिक है।
मत कहो यश कोहली कि यह पाशविक है।
कहो कि धार्मिक है, सांस्कृतिक है।
यह पतन धार्मिक और सांस्कृतिक है।
यह तुम्हारे तथाकथित आध्यात्मिक नेताओं की दी गयी वसीयत है।
यह जो तुम बोझ ढो रहे हो, यह तुम्हारी सदियों की सड़ी-गली परंपरा का परिणाम है।
और यह तुम्हें सड़ाएं डाल रहा है, तुम्हें मारे डाल रहा है।
ओशो
मैं भी विरोधी में हूं बलात्कार के, लेकिन मैं जड़ से विरोध में हूं। मैं चाहता हूं एक और ही तरह की समाजिक व्यवस्था होनी चाहिए, एक और ही तरह की मन की आयोजना होनी चाहिए। कुछ आदिवासी समाज हैं, जैसे बस्तर का आदिवासी समाज है, वहां बलात्कार कभी नहीं हुआ। कोई उल्लेख नहीं है। तुम पूछोगे: ‘क्यों?’ अगर बस्तर के आदिवासियों के बीच बलात्कार नहीं होता, तो तुम तो सभ्य हो, सुसंस्कृत हो, तुम्हारे बीच तो बलात्कार होना ही नहीं चाहिए। मगर जितने सभ्य, जितने सुसंस्कृत उतना ज्यादा बलात्कार। सच तो यह है कि बलात्कार के हिसाब से तुम पता लगा सकते हो कि कितने सुसंस्कृत हो और कितने सभ्य हो; वही मापदंड है। आदिवासी जंगली हैं, मगर बलात्कार नहीं करते। क्या कारण होगा?
मैं तो बस्तर गया इसे जांचने, देखने, रहा बस्तर कि क्या राज होगा, क्योंकि इस तरह के कबीले दुनिया से खो गए हैं। बस्तर का कबीला भी खोया जा रहा है, मिटा जा रहा है, क्योंकि हम उसको बचने नहीं देंगे। हम समझते हैं ये अशिष्ट हैं, असभ्य हैं। हम स्कूल खोल रहे हैं, अस्पताल खोल रहे हैं। ईसाई मिशनरी जा कर उनको शिक्षा दे रहे हैं। ये ही मूढ़, जिन्होंने तुम्हें बरबाद किया है, वे उनको बरबाद करने पहुंच रहे हैं। और बड़ी आशा से कि उनकी सहायता कर रहे हैं, सेवा कर रहे हैं। जल्दी मर जाएंगे ये लोग; बच नहीं सकते, कैसे बचेंगे? हमारे पास खूब साधन हैं और हम उनको प्रलोभित कर लेते हैं आसानी से। हम उनको पकड़ा देंगे रेडिओ और हम उनको पकड़ा देंगे ट्रांजिस्टर सेट और पकड़ा देंगे उनको साइकिलें और पकड़ा देंगे सारी बीमारियां, ताकि अस्पताल जरूरी हो जाएं। और पकड़ा देंगे उनको शिक्षा, स्कूल और महत्वाकांक्षाएं और अहंकार की दौड़ कि बस सब खत्म हो जाएगा। और वहां हमारे पादरी और मिशनरी और हिंदू पंडित और पुरोहित...क्योंकि वे भी पीछे नहीं रह सकते, उनको भी डर है कि ये सब कहीं ईसाई न हो जाएं। तो आर्य-समाजी भी पंहुच गए हैं।
मेरे एक आर्य-समाजी संन्यासी मित्र हैं, वे भी वहां अड्डा जमाए थे। मैंने पूछा: ‘तुम यहां क्या कर रहे हो?’
उन्होंने कहा: ‘हम कैसे पीछे रह सकते हैं! ये सब ईसाई बनाए डाल रहे हैं, हम इनको आर्य समाजी बना कर रहेंगे।’
ये गरीब बच नहीं सकते। और इनका सबका हमला किस बात पर है? जिस बात पर हमला है, वही कारण है वहां बलात्कार के न होने का। तुम चकित होओगे जान कर। बस्तर के आदिवासियों में एक व्यवस्था है, उस व्यवस्था का नाम है--घोटूल। हर छोटे गांव में, छोटे-छोटे गांव हैं, जहां कहीं दो सौ आदमी रहते हैं, कहीं तीन सौ आदमी रहते हैं ज्यादा से ज्यादा एक घोटूल होता है। गांव के बीच में एक सार्वजनिक मकान होता है। जैसे ही बच्चे उम्र पर आ जाते हैं, काम की दृष्टि से, यौन की दृष्टि से प्रौढ़ होने लगते हैं-लड़कीयां तेरह साल की, लड़के चैदह साल के--बस उनको घोटूल में सोना पड़ता है। उनको फिर घर नहीं सूलाते। उनको घोटूल भेज देते हैं। दिन भर वे घर रहें, काम करें, लेकिन रात घोटूल में सोएं। तो सारे गांव की लड़कीयां और सारे गांव के लड़के रात घोटूल में सोते हैं। और उनको पूरी स्वतंत्रता है कि वे प्रेम करें, संबंध बनाएं। हालांकि कुछ नियम हैं, बड़े अद्भुत नियम हैं! एक नियम यह है कि कोई भी लड़का किसी स्त्री के साथ तीन दिन से ज्यादा न रहे, ताकि सारी स्त्रियों का अनुभव कर सके। स्वभावतः सारी स्त्रियां भी सारे पुरुषों का अनुभव कर लेंगी। गांव के सारे पुरुष और सारी स्त्रियां एक-दूसरे से परिचित हो जाएंगे। दो वर्ष घोटूल में रहने के बाद वे तय करेंगे कि तुम्हें कौन सी लड़की पंसद है, किस लड़की को कौन-सा लड़का पसंद है? फिर उनकी शादी की जाएगी। ये शादी बड़ी वैज्ञानिक मालूम होती है। इन्होंने गांव की सारी लड़कियां पहचान लीं, सारे लड़के पहचान लिए, तब निर्णय लिया है। अब आकर्षण आसान नहीं रहा। अब इनको भलीभांति पता है, हर लड़की पता है, हर लड़का पता है। इसलिए अब दूसरे की पत्नी इनको आकर्षित नहीं करेगी। इन्होंने सारे अनुभव के बाद निर्णय लिया है। निर्णय कोई जन्मपत्री देख कर नहीं लिया गया है और निर्णय किसी पंडित-पुरोहित ने, बाप-दादों ने नहीं लिया है; निर्णय खुद लिया है और अनुभव से लिया है। और अपनी पहचान से लिया है। कौन-सी लड़की ने किस लड़के को सर्वाधिक तृप्ति दी और कौन-से लड़के ने किस लड़की को सर्वाधिक आनंद दिया। कौन दो एक-दूसरे से मिल कर तालमेल हो गए।
और तीन दिन से ज्यादा एक साथ रहना नहीं है, ताकि मोह पैदा न हो, आसक्ति पैदा न हो। ये देखते हैं-अनासक्ति का प्रयोग! और अगर तीन दिन से ज्यादा रहोगे तो फिर और लड़कीयों से वंचित रह जाओगे। और फिर इर्ष्या भी पैदा होगी। समझ लो कि एक सुंदर लड़की है, उसके साथ एक लड़के का मेल बन गया, वह उसको छोड़े ही नहीं, तो गांव के दूसरे लड़के उस सुंदर लड़की के प्रति आतुर होने लगेंगे, इर्ष्या जन्मेगी, संघर्श पैदा होगा। नहीं तो तीन दिन के बाद लड़कियां-लड़के अपना संबंध बदल लेंगे। एक-एक लड़की से दो साल के भीतर कई बार संबंध आएगा, मगर तीन दिन से ज्यादा नहीं।
ये घोटूल की व्यवस्था को ईसाई मिशनरी भी कहता है पाप,
तुम भी कहोगे पाप, कि हद हो गयी पाप की!
और आर्य-समाजी भी कहता है महापाप!
यह घोटूल तो बंद होना चाहिए। ये तो वेश्यालय हैं।
*लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि ये घोटूल सारी दुनिया के हर गांव में होने चाहिए, तभी दुनिया से बलात्कार मिटेगा, नहीं तो नहीं मिट सकता।*
इसलिए मैं कहता हूं कि यश, तुमने प्रश्न तो पूछा है;
मेरा उत्तर पचा पाओगे कि नहीं, यह जरा मुश्किल है।
मैं भी बलात्कार का विरोधी हूं। लेकिन मेरे कारण और हैं।
यह बलात्कार जो चलता है दुनिया में इसके लिए जिम्मेवार तुम्हारे धर्मगुरु हैं।
आर्यसमाजी और ईसाई और जैन और बौद्ध और हिंदू--
ये सब इस उपद्रव के पीछे हैं। इन सब मूढ़ों ने तुम्हें आदमी की जो आज की विकृत दशा है, वह दी है।
मगर इन्होंने इतने तर्क इकट्ठे किए हैं सदियों में और तुम उन तर्कों को सुनते-सुनते इतने आदी हो गए हो कि तुमने पुनर्विचार करना बंद कर दिया है।
बस्तर में कभी बलात्कार नहीं हुआ है।
अंग्रेजों ने अपनी रपोर्टो में यह बात उल्लेख की है कि बस्तर में कभी कोई बलात्कार का उल्लेख नहीं आया है आज तक।
अंग्रेजों के इतने दिन के इतिहास में बस्तर में बलात्कार नहीं हुआ है।
बस्तर में बलात्कार होता ही नहीं, होने का कारण ही नहीं रहा।
बात ही समाप्त हो गयी। जीवन सहज हो गया, स्वाभाविक हो गया।
*अनुभव ही तुम्हें इस मूढ़ता से मुक्ति दिला सकता है।*
नहीं तो बात बहुत कठिन है। पशुओं में बलात्कार नहीं होता, क्योंकि पशु मुक्त हैं; एक दूसरे से संबंध बनाने को मुक्त हैं।
पुरुषों में, स्त्रियों में यह उपद्रव खड़ा होता है।
यह उपद्रव नैसर्गिक नहीं है, पाशविक नहीं है-धार्मिक है।
मत कहो यश कोहली कि यह पाशविक है।
कहो कि धार्मिक है, सांस्कृतिक है।
यह पतन धार्मिक और सांस्कृतिक है।
यह तुम्हारे तथाकथित आध्यात्मिक नेताओं की दी गयी वसीयत है।
यह जो तुम बोझ ढो रहे हो, यह तुम्हारी सदियों की सड़ी-गली परंपरा का परिणाम है।
और यह तुम्हें सड़ाएं डाल रहा है, तुम्हें मारे डाल रहा है।
ओशो
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