- भारत देश में कई पुरुष धारा 498-A, के झूठे मुक़दमे को लड़ रहे हैं, और खुद के बचाव के लिए न्यायालयों के चक्कर भी काट रहे हैं, किन्तु उन्हें राहत नहीं मिल पा रही है। इस प्रकार के कुछ झूठे मामलों को ध्यान में रखते हुए माननीय सर्वोच्छ न्यायालय ने भी कुछ प्रकरणों में धारा 498-A के दुरुपयोग की बात पर विचार किया है। "सुशील कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य, 2005" के मुकदमे में सर्वोच्छ न्यायालय ने 498-ए, के दुरुपयोग को "लीगल टेरेरिज्म" या क़ानूनी आतंकवाद भी कहा है।
- भारत सरकार ने भी फर्जी मुकदमों की बढ़ती संख्या देखते हुए धारा 498-A, में संशोधन की आवश्यकता पर विचार किया है, लेकिन फिलहाल इस दिशा में अधिक ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, हालांकि हाल ही में भारत की सर्वोच्छ न्यायालय ने इस धारा के अंतर्गत सीधे गिरफ्तारी या बिना वारंट के गिरफ्तारी पर रोक लगाई है। इस के साथ ही सर्वोच्छ न्यायालय ने दहेज प्रताड़ना निरोधक कानून की धारा 498-A, के बहुत ज्यादा हो रहे दुरुपयोग को रोकने के लिए व्यापक दिशानिर्देश भी जारी किए। इन नए दिशानिर्देशों के अनुसार अब दहेज प्रताड़ना के मामले पीड़ित व्यक्ति या पीड़ित व्यक्ति का कोई रिश्तेदार अपराध की जानकारी देने के लिए पुलिस के पास न जाकर एक मोहल्ला कमेटी के पास जाएंगे, उसके बाद वह मोहल्ला कमेटी अपनी जांच पड़ताल के बाद एक रिपोर्ट तैयार करेगी, फिर यह रिपोर्ट पुलिस के पास भेजी जाएगी। कमेटी की रिपोर्ट के बाद ही पुलिस यह निर्णय करेगी की इस मामले में आगे की कार्यवाही करना आवश्यक है, अथवा नहीं।अभी हाल ही में जस्टिस ए. के. गोयल और जस्टिस यू. यू. ललित की पीठ ने उत्तर प्रदेश के एक मामले में दिए फैसले में कहा कि धारा 498-A, को कानून में रखने का (1983 का संशोधन) केवल उद्देश्य पत्नी को उसके पति या उसके परिजनों के हाथों होने वाले मानसिक और शारीरिक अत्याचार से बचाना था। वह भी तब जब ऐसी प्रताड़ना के कारण पत्नी के द्वारा आत्महत्या करने की आशंका हो।धारा 498-A, के मामले में आरोप के तथ्य अलग अलग हो सकते हैं। इन आरोपों से बचने के लिए निर्दोष व्यक्ति को अपने वकील के माध्यम से सभी सबूत सहित खुद पर लगे सभी आरोपों को झूठा साबित करना होगा। जब तक कि इस भारतीय कानून में पुरुषों के पक्ष को देखते हुए संशोधन नहीं किया जाता, तब तक कानून व्यवस्था की इस लंबी प्रक्रिया के तहत अपना पक्ष मज़बूती से रखें, और धैर्य रखते हुए खुद को निर्दोष साबित करें।
धारा 498-A में अग्रिम जमानत
- दहेज उत्पीड़न के एक मामले में सर्वोच्छ न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ, जिसमें, जस्टिस ए. एम. खानविलकर, और जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ भी शामिल थे। इस पीठ ने अपने फैसले में आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है, और साथ ही साथ अग्रिम जमानत लेने के रस्ते भी खोल दिए हैं।
- अग्रिम जमानत देने के लिए न्यायाधीश आरोपी की सामाजिक स्थिति पर गौर डालेगा। कि आरोपी एक शरीफ इंसान है, या नहीं। न्यायालय में वकीलों द्वारा पेश किए गए सबूतों और गवाहों से न्यायाधीश आरोपी के चरित्र का परिक्षण करेगा। यदि न्यायाधीश की नजरों में आरोपी आवारा या बदनाम किस्म का व्यक्ति है, तो न्यायाधीश आरोपी को अग्रिम ज़मानत नहीं देगा।
- यदि आरोपी को भूत काल में किसी ऐसे जुर्म का दोषी ठहराया जा चुका है, जिसकी सज़ा 7 साल से अधिक हो, तो न्यायालय द्वारा उसे अग्रिम ज़मानत नहीं दी जा सकती।
- सामान्य रूप से अग्रिम ज़मानत उन लोगों को भी नहीं प्रदान की जा सकती, जो दो या दो से ज्यादा मौकों पर किसी संज्ञेय और गैर ज़मानती अपराधों के अंतर्गत चलाये गए मुकदमों में दोषी ठहराए गए हों। लेकिन न्यायाधीशों को यह अधिकार है, कि ऐसे लोगों को वे किन्ही विशेष लिखित कारणों में ही अग्रिम ज़मानत दें।
धारा 498-A में वकील की जरुरत क्यों होती है?
भारतीय दंड संहिता में धारा 498, 'ए' का अपराध एक संज्ञेय अपराध है, जिसमें कारावास की सजा का प्रावधान भी दिया गया है, जिसकी समय सीमा को 3 बर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। इस अपराध में कारावास के दंड के साथ - साथ आर्थिक दंड का भी प्रावधान दिया गया है। ऐसे अपराध से किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, इसमें आरोपी को निर्दोष साबित कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। ऐसी विकट परिस्तिथि से निपटने के लिए केवल एक अपराधिक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जो किसी भी आरोपी को बचाने के लिए उचित रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है, और अगर वह वकील अपने क्षेत्र में निपुण वकील है, तो वह आरोपी को उसके आरोप से मुक्त भी करा सकता है। और हत्या जैसे बड़े मामलों में ऐसे किसी वकील को नियुक्त करना चाहिए जो कि ऐसे मामलों में पहले से ही पारंगत हो, और धारा 498, 'ए' जैसे मामलों को उचित तरीके से सुलझा सकता हो। जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।
क्या मर्द और क्या औरत, सभी की उत्सुकता इस बात को लेकर होती है कि पहली बार सेक्स कैसे हुआ और इसकी अनुभूति कैसी रही। ...हालांकि इस मामले में महिलाओं को लेकर उत्सुकता ज्यादा होती है क्योंकि उनके साथ 'कौमार्य' जैसी विशेषता जुड़ी होती है। दक्षिण एशिया के देशों में तो इसे बहुत अहमियत दी जाती है। इस मामले में पश्चिम के देश बहुत उदार हैं। वहां न सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाओं के लिए भी कौमार्य अधिक मायने नहीं रखता। महिला ने कहा- मैं चाहती थी कि एक बार यह भी करके देख लिया जाए और जब तक मैंने सेक्स नहीं किया था तब तो सब कुछ ठीक था। पहली बार सेक्स करते समय मैं बस इतना ही सोच सकी- 'हे भगवान, कितनी खुशकिस्मती की बात है कि मुझे फिर कभी ऐसा नहीं करना पड़ेगा।' उनका यह भी कहना था कि इसमें कोई भी तकलीफ नहीं हुई, लेकिन इसमें कुछ अच्छा भी नहीं था। पहली बार कुछ ठीक नहीं लगा, लेकिन वर्जीनिया की एक महिला का कहना था कि उसने अपना कौमार्य एक ट्रैम्पोलाइन पर खोया। ट्रैम्पोलाइन वह मजबूत और सख्त कैनवास होता है, जिसे स्प्रिंग के सहारे कि
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