आकस्मिक नहीं है कि पंद्रह अगस्त को भारत को आजादी मिली !! श्री.अरविंद का जन्म दिन भी है !!

श्री अरविंद से किसी ने एक बार पूछा कि आप भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में अग्रणी सेनानी थे, फिर अचानक सब छोड़कर आप पांडिचेरी में आंख बंद करके कैसे बैठ गए। उनका जवाब था, मैं कुछ कर रहा हूं, जो पहले मैं कर रहा था वह अपर्याप्त था अब जो कर रहा हूं वह पर्याप्त है।जिसने पूछा, वह चौंका होगा। यह किस प्रकार का करना है कि आप अपने कमरे में आँख बंद किए बैठे है, इससे क्या होगा? तो अरविंद कहते है कि जब मैं करने में लगा था तब मुझे पता नहीं था कि कर्म तो बहुत ऊपर-ऊपर है, उससे दूसरों को नहीं बदला जा सकता।
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दूसरों को बदलना हो तो स्वयं के भीतर इतना प्रवेश कर जाना जरूरी है कि जहां से कि सूक्ष्म तरंगें उठती है, जहां से कि जीवन का आविर्भाव होता है, वह छू सकें। ये सब पलायन वादियों के ढंग और रूख मालूम पड़ते है। लाओत्से कहता है कि महान चरित्र हमेशा अपर्याप्त मालूम पड़ता है।
इसलिए हम पूजा जारी रखेंगे गांधी की,अरविंद को हम धीरे-धीरे छोड़ते जाएंगे। लेकिन भारत की आजादी में अरविंद का जितना हाथ है उतना किसी का भी नहीं है। पर वह चरित्र दिखाई नहीं पड़ सकता। आकस्मिक नहीं है कि पंद्रह अगस्त को भारत को आजादी मिली वह अरविंद का जन्म दिन है।
पर उसे देखना कठिन है। और उसे सिद्ध करना तो बिलकुल असंभव है। हम सोच भी नहीं सकते कि बुद्ध क्राइस्ट ने इतिहास में क्या किया। लेकिन हिटलर ने क्या किया वह हमें साफ है, जो परिधि पर घटता है वह हमें दिख जाता है।

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