!!छिपाओ मत आंसुओं को !!
पुरुष दो गुना ज्यादा पागल होते हैं स्त्रियों की बजाय,
यह तुम्हें पता है? और पुरुष दो गुना आत्महत्या करते हैं स्त्रियों की बजाय, यह तुम्हें पता है? और मनोवैज्ञानिक कहते हैं कारण क्या होगा इतने बड़े भेद का? कारण सिर्फ यही है, स्त्री अभी भी रोना भूल नहीं गयी है। थोड़ा—सा रो लेती है। रो लेती है, हल्की हो जाती है। उसके रोने में कोई बड़ा अध्यात्म नहीं है, क्षुद्र बातों में रोती रहती है, मगर फिर भी हल्की तो हो ही जाती है। काश! उसके आंसुओ को ठीक दिशा मिल जाए, तो वह हल्की ही न हो उसे पंख लग जाएं।
पुरुष को रोना सीखना ही पड़ेगा। और गलत तुम्हें समझाया गया है कि रोना मत, तुम पुरुष हो। क्योंकि प्रकृति ने भेद नहीं किया है। जितने आंसुओ की ग्रंथि स्त्री की आंखों में हैं, उतने ही आंसुओ की ग्रंथि पुरुष की आंखों में हैं। इसलिए प्रकृति ने तो भेद बिलकुल नहीं किया है। तुम्हारी आंखें उतनी ही रोने को बनी हैं जितनी स्त्री की।
इस संबंध में कोई भेद नहीं है। स्त्री रो लेती है तो भार उतर जाता है। मगर भार ही उतारने का काम लिया इतनी महिमापूर्ण घटना से, आंसुओ से, तो कुछ ज्यादा काम नहीं लिया। आंसू तो परमात्मा की तरफ इशारा बन सकते हैं। क्षुद्र के लिए मत रोओ, विराट के लिए रोओ। और कंजूसी मत करो। और छिपाओ मत आंसुओ को। तुम्हारे पास हृदय है, इसमें कुछ अपमान नहीं है, सम्मान है।
ओशो 💞
पुरुष दो गुना ज्यादा पागल होते हैं स्त्रियों की बजाय,
यह तुम्हें पता है? और पुरुष दो गुना आत्महत्या करते हैं स्त्रियों की बजाय, यह तुम्हें पता है? और मनोवैज्ञानिक कहते हैं कारण क्या होगा इतने बड़े भेद का? कारण सिर्फ यही है, स्त्री अभी भी रोना भूल नहीं गयी है। थोड़ा—सा रो लेती है। रो लेती है, हल्की हो जाती है। उसके रोने में कोई बड़ा अध्यात्म नहीं है, क्षुद्र बातों में रोती रहती है, मगर फिर भी हल्की तो हो ही जाती है। काश! उसके आंसुओ को ठीक दिशा मिल जाए, तो वह हल्की ही न हो उसे पंख लग जाएं।
पुरुष को रोना सीखना ही पड़ेगा। और गलत तुम्हें समझाया गया है कि रोना मत, तुम पुरुष हो। क्योंकि प्रकृति ने भेद नहीं किया है। जितने आंसुओ की ग्रंथि स्त्री की आंखों में हैं, उतने ही आंसुओ की ग्रंथि पुरुष की आंखों में हैं। इसलिए प्रकृति ने तो भेद बिलकुल नहीं किया है। तुम्हारी आंखें उतनी ही रोने को बनी हैं जितनी स्त्री की।
इस संबंध में कोई भेद नहीं है। स्त्री रो लेती है तो भार उतर जाता है। मगर भार ही उतारने का काम लिया इतनी महिमापूर्ण घटना से, आंसुओ से, तो कुछ ज्यादा काम नहीं लिया। आंसू तो परमात्मा की तरफ इशारा बन सकते हैं। क्षुद्र के लिए मत रोओ, विराट के लिए रोओ। और कंजूसी मत करो। और छिपाओ मत आंसुओ को। तुम्हारे पास हृदय है, इसमें कुछ अपमान नहीं है, सम्मान है।
ओशो 💞
Comments