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IPC 307 Attempt to Murder !!

भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के अनुसार,

Offence : हत्या का प्रयास
Punishment : 10 साल + जुर्माना आजीवन कारावास या 10 साल +
Cognizance : संज्ञेय
Bail : गैर जमानतीय
जो भी कोई ऐसे किसी इरादे या बोध के साथ विभिन्न परिस्थितियों में कोई कार्य करता है, जो किसी की मृत्यु का कारण बन जाए, तो वह हत्या का दोषी होगा, और उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही वह आर्थिक दंड के लिए भी उत्तरदायी होगा।

और, यदि इस तरह के कृत्य से किसी व्यक्ति को चोट पहुँचती है, तो अपराधी को आजीवन कारावास या जिस तरह के दंड का यहाँ उल्लेख किया गया है।

आजीवन कारावासी अपराधी द्वारा प्रयास: अगर अपराधी जिसे इस धारा के तहत आजीवन कारावास की सजा दी गयी है, चोट पहुँचता है, तो उसे मृत्यु दंड दिया जा सकता है।

लागू अपराध
1. हत्या करने का प्रयत्न
सजा - 10 साल कारावास + आर्थिक दंड
यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है।

2. यदि इस तरह के कृत्य से किसी भी व्यक्ति को चोट पहुँचती है
सजा - आजीवन कारावास या 10 साल कारावास + आर्थिक दंड
यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है।

3. आजीवन कारावासी अपराधी द्वारा हत्या के प्रयास में किसी को चोट पहुँचना
सजा - मृत्यु दंड या 10 साल कारावास + आर्थिक दंड
यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

धारा 307 आई. पी. सी. (हत्या करने के प्रयास लिए दण्ड)

भारतीय दंड संहिता की कुछ धाराएं तो ऐसी हैं, जिनके बारे में हम अपने दैनिक जीवन की अपने आस पास के लोगो से सुनते ही रहते हैं, और ये धाराएं समाचार पत्रों और मीडिया में भी काफी प्रचलित रहती हैं। उनमें से ही एक है, भारीतय दंड संहिता, 1860 की धारा 307 इसमें एक आरोपी को किसी व्यक्ति की हत्या करने के प्रयास के लिए सजा का प्रावधान दिया गया है। यह भारतीय दंड संहिता यानि आई. पी. सी. की एक बहुत ही प्रचलित धारा है, फिर भी काफी लोगों को इस धारा के बारे में अधिक जानकारी नहीं है, तो आइये समझते हैं, भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 307 को।

इस धारा के प्रावधानों के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की हत्या करने की कोशिश करता है, और किसी भी कारण से वह उस व्यक्ति की हत्या करने में नाकाम रह जाता है, तो ऐसा अपराध करने वाले व्यक्ति को आई. पी. सी. की धारा 307 के तहत सजा का प्रावधान दिया गया है। यदि एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की हत्या कर देता है, तो भारतीय दंड संहिता की इस धारा का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह धारा केवल हत्या करने के प्रयास से ही मतलब रखती है। इसके स्थान पर यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की हत्या कर देता है, केवल तब ही ऐसी स्तिथि में उस व्यक्ति पर उसके द्वारा किये गए जुर्म के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 302 या धारा 304 का प्रयोग किया जा सकता है।

यदि और भी आसान लफ्जों में इस धारा के प्रावधानों की बात की जाये तो यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की हत्या की कोशिश करता है, लेकिन जिस शख्स पर हमला किया गया है, उसकी जान नहीं जाती तो इस तरह के मामले में हमला करने वाले शख्स पर धारा 307 के अनुसार मुकदमा चलाया जाता है।

धारा 307 के तहत सजा का प्रावधान

हत्या की कोशिश करने वाले आरोपी को आई. पी. सी. की धारा 307 में दोषी पाए जाने पर बहुत कठोर सजा का प्रावधान दिया गया है। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर जान से मारने के इरादे से आक्रमण करता है, और किसी वजह से वह व्यक्ति बच जाता है, तो आक्रमण करने वाले व्यक्ति को न्यायालय द्वारा कारावास की सजा सुनाई जा सकती है, जिसकी समय सीमा को 10 साल, तक बढ़ाया जा सकता है। केवल कारावास की सजा ही नहीं बल्कि ऐसे हत्या करने के प्रयास के दोषी को आर्थिक दंड से भी दण्डित किया जा सकता है, जिसमें आर्थिक दंड न्यायालय, जुर्म की गहराई और दोषी की हैसियत के अनुसार तय करती है। यदि जिस व्यक्ति की हत्या करने की कोशिश की गई है, और अगर उसे गंभीर चोट लगती है, तो दोषी को उम्रकैद तक की सजा सुनाई जा सकती है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के प्रावधानों में बाद में एक तथ्य और जोड़ा गया था, जिसके अनुसार यदि कोई ऐसा व्यक्ति हत्या करने का प्रयास करता है, जिसे पहले ही किसी अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी हो, तो ऐसे व्यक्ति को उसके इस अपराध के लिए न्यायालय से सजा - ए - मौत तक दी जा सकती है। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर इस प्रकार आक्रमण करता है, कि उसे काफी गंभीर चोट लग जाए, किन्तु मारने वाले व्यक्ति का इरादा उस व्यक्ति कि हत्या करने का नहीं हो, तो ऐसी स्तिथि में दोषी को धारा 307 के स्थान पर भारतीय दंड संहिता की धारा 325 के अनुसार सजा सुनाई जाती है।

धारा 307 के तहत जमानत का प्रावधान

आई. पी. सी. की धारा 307 में एक गैर जमानती अपराध की सजा का प्रावधान दिया गया है, इसका मतलब यह एक ऐसे अपराध का दंड है, जिसमें जमानत का मिलना बहुत ही कठिन हो जाता है, इस अपराध में एक आरोपी को पुलिस स्टेशन से तो किसी प्रकार से जमानत मिल ही नहीं सकती है, और गैर जमानती अपराध होने के कारण जिला न्यायालय या डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से भी जमानत की याचिका को निरस्त कर दिया जाता है, लेकिन ऐसे अपराध में जब एक आरोपी अपने प्रदेश की उच्च न्यायालय में जमानत के लिए याचिका दायर करता है, तो संभवतः उसे जमानत मिल सकती है। किन्तु उच्च न्यायालय में भी जमानत मिलने के अवसर काफी कम होते हैं, यदि उच्च न्यायालय को ऐसा प्रतीत होता है, कि शायद यह अपराध आरोपी ने नहीं किया है, या आरोपी के घर में कोई गंभीर आपात स्तिथि हो रही  है, तो ऐसी दशा में उच्च न्यायालय आरोपी की जमानत याचिका को मंजूरी दे देती है।

भारतीय दंड संहिता और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में धारा 307 के मामले में किसी भी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने का प्रावधान नहीं दिया गया है, यदि कोई व्यक्ति न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए अपनी याचिका दायर करता है, तो उसकी याचिका शीघ्र ही निरस्त कर दी जाती है, इसके लिए चाहे एक व्यक्ति जिला न्यायालय या उच्च न्यायालय में ही आवेदन कर रहा हो।

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