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13 अप्रैल 1919 जालियनवाला बाग अत्याचारी हैवानी अंग्रेजी हुकुमत ने,मासूम और बेकसूर लोगों आज के दिन मार डाला था !

13 अप्रैल 1919 जालियनवाला बाग अत्याचारी हैवानी अंग्रेजी हुकुमत ने मासूम और बेकसूर लोगों के किये हुए सामुहिक नृशंस निर्मम हत्याकांड के 101 वें स्मृति दिन के ऊपलक्ष में शैतानी अत्याचारी ब्रिटिश राज द्वारा किए गए सामुहिक नृशंस निर्मम हत्याकांड का तीव्र निषेध करते हुए ऊन सभी बलिदानी हुतात्माओं को हम धोपावकर बंधू-भगिनी एवम परिवार की ओर से कोटी-कोटी सादर प्रणाम।
आप सभी भारतीय बंधू- भगिनीओं के लिए "जलियांवाला बाग़ नृशंस निर्मम हत्याकाण्ड" का स्मृति दिवस "13 अप्रैल 1919" को अमृतसर में हुए अंग्रेजों (ब्रिटिश)की सेना द्वारा अत्याचार पर कुछ दर्द भरी काव्य पंक्तियाँ !
ये जलियांवाला बाग है !
कैसे मीठे गीत सुनाऊँ, 
कैसे सुन्दर छंद बनाऊँ, 
बेबस लोगों की मौतों का, दर्द भरा एक राग है!
ये जलियांवाला बाग है !
अमृतसर की खुशहाली को कोलाहल ने घेरा है। 
भारत माता की भूमि पर अंग्रेजों का डेरा है। 
सत्य अहिंसा की धरती पे ये काली परछाई है। 
मौन निहत्थे इंसानों पर क्यूं गोली चलवाई है। 
शर्मसार सारा संसार ये मानवता पर दाग है।
ये जलियांवाला बाग है !
मौत के सौदागर, ये देखो! तंग गली से आये है। 
हाथ में बंदूकें हैं जिनके, लगते मौत के साये है।
बारूद की गर्जन से ऊपर आसमान थर्राया है।
 नरसंहार की निर्ममता से सब का दिल भर आया है। 
कहीं लाल को लील गया, तो कहीं निढाल सुहाग है।*
ये जलियांवाला बाग है !
अफरा तफरी उस ज़ालिम ने चारों तरफ मचाई है। धर्म वेद सब शून्य हो गए, काँप रही सच्चाई है। रिश्तों के गहरे बन्धन भी एक वार में टूट गए। अपनी जान बचाने को अंधे कुँए में कूद गए। बाहर जनरल डायर है, अन्दर ज़हरीले नाग है।*
ये जलियांवाला बाग है !
.भरी भीड़ पर दुश्मन ने इतनी गोली चलवाई हैं। नन्हे-मुन्नों के हिस्से भी दस दस गोली आई हैं।नहीं सुन रही चीत्कारें भी, चारो तरफ अँधेरा है। ये कैसी सुबह है, जिस को अंधकार ने घेरा है।उजड़ गयी है कोख किसी की, बुझा कही पे चिराग है।
ये जलियांवाला बाग है।
भारत माँ लाशों पर बैठी खून के आँसूं रोती है। 
देश पे मर मिटने वालों की कैसी हालत होती है। 
दुश्मन की करतूतों पर क्यूँ बहा रही तू नीर है? 
तेरी गोद में माँ जननी अभी भगत सिंह से वीर हैं।
 जनरल डायर तू है कायर, दिल में दहकी आग है।
ये जलियांवाला बाग है !

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