रोजाना औसतन दो लाख लीटर दूध नालों में बहाना पड़ रहा है !! डेयरी उद्योग को रोजाना 50 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ रहा है !!
!! ताजा दूध के कुल उत्पादन में से लगभग 60 फीसदी की खपत मिठाई की दुकानों में ही होती थी !!
!! डेयरी उद्योग को रोजाना 50 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ रहा है !!
कोरोना की वजह से मिठाई की दुकानें बंद हो जाने की वजह से जहां पहली बार रसगुल्ला और संदेश जैसी लोकप्रिय मिठाइयां बाजारों और आम बंगाली के घरों से गायब हो चुकी है वहीं इसके चलते रोजाना औसतन दो लाख लीटर दूध नालों में बहाना पड़ रहा है.
राज्य में आमतौर पर ताजा दूध के कुल उत्पादन में से लगभग 60 फीसदी की खपत मिठाई की दुकानों में ही होती थी. लेकिन लॉकडाउन के चलते इन दुकानों के बंद होने से डेयरी उद्योग को रोजाना 50 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ रहा है.
अब मिठाई निर्माताओं के संगठन पश्चिम बंग मिष्ठान व्यवसायी समिति ने राज्य सरकार को पत्र लिख कर मिठाई की दुकानों को लॉकडाउन से छूट देने की अपील की है.
दूध की बर्बादी के चलते मचे हाहाकार के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने मिठाई विक्रेताओं के अनुरोध पर मंगलवार को दोपहर 12 से चार बजे के बीच छोटी दुकानों को खोलने की अनुमति दे दी है. लेकिन इसके लिए दुकानादरों को सुरक्षा उपाय अपनाने होंगे और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना होगा.
खरीददार वहां से खरीद कर घर ले जा सकते हैं, दुकानों में या उनके बाहर खा नहीं सकते. सरकारी अधिसूचना में कहा गया है कि दुकानों में न्यूनतम कर्मचारियों को रखना होगा. लेकिन बड़ी दुकानें इस दौरान नहीं खुलेंगी.
पश्चिम बंग मिष्टान व्यवसायी समिति के प्रवक्ता धीमान दास कहते हैं, "हम सरकार से दुकानों का समय बदलने का अनुरोध करेंगे ताकि लोग सुबह बाजार जाते समय ही मिठाई खरीद सकें."
दूध का आखिर करें क्या?
बंगाल में मिठाई की लगभग एक लाख दुकानें हैं.
राज्य के मिठाई निर्माताओं की दिक्कत यह है कि उन्होंने दूध की सप्लाई करने वाली कई सहकारिता समितियों और स्वनिर्भर समूहों के साथ सालाना समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. ऐसे में उनको दूध तो मिल रहा है. लेकिन दुकानें बंद होने की वजह से उनको समझ में नहीं आ रहा है कि इस दूध का आखिर वे करें क्या?
नतीजतन रोजाना दो लाख लीटर दूध बर्बाद हो रहा है. इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में गाय-भैंस रख कर दूध की खुदरा बिक्री करने वाले लोगों की कमाई भी ठप हो गई है. मांग नहीं होने या फिर परिवहन की दिक्कतों के चलते उनको भी अपना दूध नालों में बहाना पड़ रहा है.
!! डेयरी उद्योग को रोजाना 50 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ रहा है !!
कोरोना की वजह से मिठाई की दुकानें बंद हो जाने की वजह से जहां पहली बार रसगुल्ला और संदेश जैसी लोकप्रिय मिठाइयां बाजारों और आम बंगाली के घरों से गायब हो चुकी है वहीं इसके चलते रोजाना औसतन दो लाख लीटर दूध नालों में बहाना पड़ रहा है.
राज्य में आमतौर पर ताजा दूध के कुल उत्पादन में से लगभग 60 फीसदी की खपत मिठाई की दुकानों में ही होती थी. लेकिन लॉकडाउन के चलते इन दुकानों के बंद होने से डेयरी उद्योग को रोजाना 50 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ रहा है.
अब मिठाई निर्माताओं के संगठन पश्चिम बंग मिष्ठान व्यवसायी समिति ने राज्य सरकार को पत्र लिख कर मिठाई की दुकानों को लॉकडाउन से छूट देने की अपील की है.
दूध की बर्बादी के चलते मचे हाहाकार के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने मिठाई विक्रेताओं के अनुरोध पर मंगलवार को दोपहर 12 से चार बजे के बीच छोटी दुकानों को खोलने की अनुमति दे दी है. लेकिन इसके लिए दुकानादरों को सुरक्षा उपाय अपनाने होंगे और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना होगा.
खरीददार वहां से खरीद कर घर ले जा सकते हैं, दुकानों में या उनके बाहर खा नहीं सकते. सरकारी अधिसूचना में कहा गया है कि दुकानों में न्यूनतम कर्मचारियों को रखना होगा. लेकिन बड़ी दुकानें इस दौरान नहीं खुलेंगी.
पश्चिम बंग मिष्टान व्यवसायी समिति के प्रवक्ता धीमान दास कहते हैं, "हम सरकार से दुकानों का समय बदलने का अनुरोध करेंगे ताकि लोग सुबह बाजार जाते समय ही मिठाई खरीद सकें."
दूध का आखिर करें क्या?
बंगाल में मिठाई की लगभग एक लाख दुकानें हैं.
राज्य के मिठाई निर्माताओं की दिक्कत यह है कि उन्होंने दूध की सप्लाई करने वाली कई सहकारिता समितियों और स्वनिर्भर समूहों के साथ सालाना समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. ऐसे में उनको दूध तो मिल रहा है. लेकिन दुकानें बंद होने की वजह से उनको समझ में नहीं आ रहा है कि इस दूध का आखिर वे करें क्या?
नतीजतन रोजाना दो लाख लीटर दूध बर्बाद हो रहा है. इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में गाय-भैंस रख कर दूध की खुदरा बिक्री करने वाले लोगों की कमाई भी ठप हो गई है. मांग नहीं होने या फिर परिवहन की दिक्कतों के चलते उनको भी अपना दूध नालों में बहाना पड़ रहा है.
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