मैं आपको कहना चाहता हूं कि जो लोग कहते हैं कि यह आम आदमी ने दुनिया का चरित्र बिगाड़ा है, वे गलत कहते हैं।
आम आदमी हमेशा ऐसा रहा है।
दुनिया का चरित्र ऊंचा था, कुछ थोड़े-से लोगों के आत्म-अनुभव की वजह से।
आम आदमी हमेशा ऐसा था।
आम आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ गया है। आम आदमी के बीच कुछ लोग थे जीवंत, और उसकी चेतना को सदा ऊपर उठाते रहे, सदा ऊपर खींचते रहे।
उनकी मौजूदगी, उनकी प्रेजेंस, कैटेलेटिक एजेंट का काम करती रही है और आदमी के जीवन को ऊपर खींचती रही है।
और अगर आज दुनिया में आदमी का चरित्र इतना नीचा है, तो जिम्मेवार हैं साधु, जिम्मेवार हैं महात्मा, जिम्मेवार हैं धर्म की बातें करने वाले झूठे लोग।
आम आदमी जिम्मेवार नहीं है।
उसकी कभी कोई रिस्पांसबिलिटी नहीं थी। पहले भी नहीं थी, आज भी नहीं है।
तो अगर दुनिया को बदलना हो, तो इस बकवास को छोड़ दें कि हम एक-एक आदमी का चरित्र सुधारेंगे, कि हम एक-एक आदमी को नैतिक शिक्षा का पाठ देंगे।
अगर दुनिया को बदलना चाहते हैं, तो कुछ थोड़े-से लोगों को अत्यंत इंटेंस इनर एक्सपेरिमेंट में से गुजरना पड़ेगा।
जो लोग बहुत भीतरी प्रयोग से गुजरने को राजी हैं। ज्यादा नहीं, सिर्फ एक मुल्क में सौ लोग आत्मा को जानने की स्थिति में पहुंच जाएं, और पूरे मुल्क का जीवन अपने आप ऊपर उठ जाएगा।
सौ दीये जीवित, और सारा मुल्क ऊपर उठ सकता है।
तो मैं तो राजी हो गया था इस बात पर बोलने के लिए
सिर्फ इसलिए हो सकता है कि कोई हिम्मत का आदमी आ जाए, तो उसको मैं निमंत्रण दूंगा कि मेरी तैयारी है भीतर ले चलने की, तुम्हारी तैयारी हो तो आ जाओ।
वहां बताया जा सकता है कि जीवन क्या है और मृत्यु क्या है।
ओशो
आम आदमी हमेशा ऐसा रहा है।
दुनिया का चरित्र ऊंचा था, कुछ थोड़े-से लोगों के आत्म-अनुभव की वजह से।
आम आदमी हमेशा ऐसा था।
आम आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ गया है। आम आदमी के बीच कुछ लोग थे जीवंत, और उसकी चेतना को सदा ऊपर उठाते रहे, सदा ऊपर खींचते रहे।
उनकी मौजूदगी, उनकी प्रेजेंस, कैटेलेटिक एजेंट का काम करती रही है और आदमी के जीवन को ऊपर खींचती रही है।
और अगर आज दुनिया में आदमी का चरित्र इतना नीचा है, तो जिम्मेवार हैं साधु, जिम्मेवार हैं महात्मा, जिम्मेवार हैं धर्म की बातें करने वाले झूठे लोग।
आम आदमी जिम्मेवार नहीं है।
उसकी कभी कोई रिस्पांसबिलिटी नहीं थी। पहले भी नहीं थी, आज भी नहीं है।
तो अगर दुनिया को बदलना हो, तो इस बकवास को छोड़ दें कि हम एक-एक आदमी का चरित्र सुधारेंगे, कि हम एक-एक आदमी को नैतिक शिक्षा का पाठ देंगे।
अगर दुनिया को बदलना चाहते हैं, तो कुछ थोड़े-से लोगों को अत्यंत इंटेंस इनर एक्सपेरिमेंट में से गुजरना पड़ेगा।
जो लोग बहुत भीतरी प्रयोग से गुजरने को राजी हैं। ज्यादा नहीं, सिर्फ एक मुल्क में सौ लोग आत्मा को जानने की स्थिति में पहुंच जाएं, और पूरे मुल्क का जीवन अपने आप ऊपर उठ जाएगा।
सौ दीये जीवित, और सारा मुल्क ऊपर उठ सकता है।
तो मैं तो राजी हो गया था इस बात पर बोलने के लिए
सिर्फ इसलिए हो सकता है कि कोई हिम्मत का आदमी आ जाए, तो उसको मैं निमंत्रण दूंगा कि मेरी तैयारी है भीतर ले चलने की, तुम्हारी तैयारी हो तो आ जाओ।
वहां बताया जा सकता है कि जीवन क्या है और मृत्यु क्या है।
ओशो
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