सब बड़े आदमियों ने दुनिया को नुकसान पहुंचाया है !! क्योंकि दूसरों को छोटा बनाए बिना, बड़ा होना असंभव है !! तो दूसरों को छोटा बनाना ही पड़ेगा,बड़े होने के लिए !! Osho !!
तुलना करना ये भी मनुष्य का स्वभाव है ।
लेकिन मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूं और मैं मानता हूं कि सब बड़े आदमियों ने दुनिया को नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि दूसरों को छोटा बनाए बिना, बड़ा होना असंभव है। तो दूसरों को छोटा बनाना ही पड़ेगा, बड़े होने के लिए। मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूं और मैं मानता हूं कि बड़े आदमी होने की जो आकांक्षा है, वही दूसरे को प्रभावित करने का रूप लेती है और बड़े आदमी होने की जो आकांक्षा है, वही दूसरे को प्रभावित करने का रूप लेती है और बड़े आदमी की जो आकांक्षा है, वह बहुत गहरे में किसी इंफिरिआरिटी कांप्लेक्स से, किसी हीनता की ग्रंथि से पैदा होती है। इसलिए सब बड़े आदमी, बहुत भीतर, हीन-ग्रंथि से पीड़ित होते हैं। वे दूसरे को प्रभावित करके, अंततः अपने को प्रभावित करना चाहते हैं कि मैं बड़ा आदमी हूं। इतने लोग मुझसे प्रभावित हैं, तो मैं बड़ा आदमी होना ही चाहिए। यह बहुत वाया मीडिया, दूसरों के जरिए, वे अपने को विश्वास दिलाना चाहते हैं।
मैं राजी हूं, उससे राजी हूं। आपको प्रभावित करके, मैं अपने को कोई विश्वास नहीं दिलाना चाहता कि मैं कौन हूं? मैं जो हूं, उससे मैं राजी हूं और छोटे और बड़े दोनों की परिभाषा के बाहर खड़ा हूं, क्योंकि छोटे और बड़े की परिभाषा, दूसरों से तुलना करने से पैदा होती है, कंपेरिजन करने से पैदा होती है और मेरी ऐसी समझ है कि एक-एक आदमी इतना अपने जैसा है कि कंपेरिजन असंभव है। तुलना हो नहीं सकती। आप मुझसे बड़े हैं या छोटे, यह सवाल असंगत है, क्योंकि मैं मैं हूं, आप आप हैं। इसमें कोई तुलना का उपाय नहीं है।
ओशो
लेकिन मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूं और मैं मानता हूं कि सब बड़े आदमियों ने दुनिया को नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि दूसरों को छोटा बनाए बिना, बड़ा होना असंभव है। तो दूसरों को छोटा बनाना ही पड़ेगा, बड़े होने के लिए। मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूं और मैं मानता हूं कि बड़े आदमी होने की जो आकांक्षा है, वही दूसरे को प्रभावित करने का रूप लेती है और बड़े आदमी होने की जो आकांक्षा है, वही दूसरे को प्रभावित करने का रूप लेती है और बड़े आदमी की जो आकांक्षा है, वह बहुत गहरे में किसी इंफिरिआरिटी कांप्लेक्स से, किसी हीनता की ग्रंथि से पैदा होती है। इसलिए सब बड़े आदमी, बहुत भीतर, हीन-ग्रंथि से पीड़ित होते हैं। वे दूसरे को प्रभावित करके, अंततः अपने को प्रभावित करना चाहते हैं कि मैं बड़ा आदमी हूं। इतने लोग मुझसे प्रभावित हैं, तो मैं बड़ा आदमी होना ही चाहिए। यह बहुत वाया मीडिया, दूसरों के जरिए, वे अपने को विश्वास दिलाना चाहते हैं।
मैं राजी हूं, उससे राजी हूं। आपको प्रभावित करके, मैं अपने को कोई विश्वास नहीं दिलाना चाहता कि मैं कौन हूं? मैं जो हूं, उससे मैं राजी हूं और छोटे और बड़े दोनों की परिभाषा के बाहर खड़ा हूं, क्योंकि छोटे और बड़े की परिभाषा, दूसरों से तुलना करने से पैदा होती है, कंपेरिजन करने से पैदा होती है और मेरी ऐसी समझ है कि एक-एक आदमी इतना अपने जैसा है कि कंपेरिजन असंभव है। तुलना हो नहीं सकती। आप मुझसे बड़े हैं या छोटे, यह सवाल असंगत है, क्योंकि मैं मैं हूं, आप आप हैं। इसमें कोई तुलना का उपाय नहीं है।
ओशो
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