1760 से पहले भारत में कोई शराब नहीं पीता था !! 1760 के बाद उन्होंने शराब की पहली दुकान का ठेका एक ठेकेदार को दे दिया !!
भारत में शराब कब कैसे कहाँ और क्यों लाई गई और शराब
का भारतीयों से परिचय किसने कराया? (इतिहास)
प्लासी का युद्ध जीतने के बाद अंग्रेजों ने भारत
को अपना गुलाम बनाने की प्रक्रिया और तेज़ कर दी।
इसी युद्ध को जीतने के बाद East India Company का एक अफसर फ्रांसिस ब्रेकन भारत आया जिसने बंगाल
को लूटने में कंपनी की सहायता की वह ब्रिटेन वापिस गया और समय समयपर संसद में होने वाली बहस में
हिस्सा लेता रहता था। एक ऐसी ही बहस में , जिसमें
मुद्दा था कि भारत के चारित्रिक पतन की प्रक्रिया में
कौन कौन से कदम उठाये जा रहे हैं, उसने हिस्सा लिया।
भारत भूमि में जन्मा व्यक्ति कोई श्री कृष्ण तो कोई श्री राम,महाराण प्रताप,छत्रपति शिवाजी,कोई ऋषि मुनि,तो कोई क्रन्तिकारी बन जाता है चूँकि भारत सांस्कृतिक और अध्यात्मिक धरातल पर बेहद शक्तिशाली राष्ट्र है इसलिए वे उसे तोड़ने में कुछ खास तो नहीं कर पाये हैं परंतु इस
विशालकाय मजबूत दीवार में एक छोटे से छेद के तौर पर
उन्होंने बंगाल में एक शराब का ठेका खुलवा दिया है।
उसने आगे कहा कि 1760 से पहले भारत में
कोई शराब नहीं पीता था| 1760 के बाद उन्होंने शराब की पहली दुकान का ठेका एक ठेकेदार को दे दिया। ब्रेकन ने ठेकेदार से पूछा कि क्या भारतीय शराब पीते थे तो उसने जवाब दिया कि नहीं! क्यों नहीं पीते थे? ठेकेदार बोला उसके 3 कारण हैं भारतीयों के लिए शराब पीने का मतलब अपना धर्म भ्रष्ट करना है। भारत की जलवायु उन्हें शराब पीने से
रोकती है। शराब सबसे तुच्छ पेय है जो मनुष्यों के लिए नहीं है।
इस शराब की दुकान की कई अन्य शाखाएं कुछ ही सालों में पूरे बंगाल में खुल गयीं। यह वार्ता है सन् 1832 की जिसमें ब्रेकन ठेकेदार से हुई बातचीत के अंश प्रस्तुत कर रहा है।
ठेकेदार से आगे पूछने पर पता चला कि भारतवासी अब
कितनी शराब पी रहे हैं? जवाब मिला कि इस दुकान
के पिछले मालिक तक यहाँ सिर्फ अंग्रेज़ ही आकर शराब पीते
थे परंतु अब यहाँ भारतीयों की भरमार है। इन्होंने कब से इतनी शराब पीनी शुरू कर दी और क्यों? ठेकेदार बोला कि इनके चरित्र तो ऊंचे थे परंतु ये हमारे बहकावे में फँस गए हमने इन्हें तरह तरह के लालच देकर इनकी वासना को अग्नि दी जिसके
कारण ये ठेकों की तरफ आकर्षित हैं। आरम्भ में भारतीय चोरी छिपे पीते थे और बाद में धीरे धीरे ये खुले आम होता चला गया।आज मंज़र यह है कि शराब न पीने वाला नास्तिक समझा जाता है। हमारा अधिकांश युवा समुदाय इसकी चपेट में है।1832 तक भारत में शराब की 350 दुकानें थीं और जब अंग्रेज़ भारत को छोड़कर गए तब भारत में 1500 शराब के ठेके थे।आज ऐसे 24,400 दुकानें हैं। ये तो वैध दुकानें हैं।अवैध दुकानें इनसे भी ज्यादा हैं। हर मोहल्ले में एक
ठेका आपको मिल जाएगा। दूध मिले न मिले पर शराब आपको मिलही जाएगी।शराब पीकर आदमी बेटी, बहु, बहन
और पत्नी में अंतर भूल जाता है 98 से 100 फीसदी बलात्कार शराब के नशे में होते हैं और इनका licence आज भी सरकार से ही मिलता है।अंग्रेज़ ये बात जानते थे कि शराब देवता को दानव बनाने में देर नहीं लगाती, इसीलिए उन्होंने सबसे
पहला काम हमें तोड़ने की दिशा में जो किया वह था शराब
का हमसे परिचय। गोरे अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाने
की नीति बनाई और सरकार उसी नीति का पूर्ण
निष्ठा से पालन कर रही है। भारत में लगभग 80 करोड़ लीटर शराब पैदा की जाती है। लगभग 5-7 % भारतवासियों में
शराब की ऐसी बुरी लत है कि वे उसके बिना जी नहीं सकते|
का भारतीयों से परिचय किसने कराया? (इतिहास)
प्लासी का युद्ध जीतने के बाद अंग्रेजों ने भारत
को अपना गुलाम बनाने की प्रक्रिया और तेज़ कर दी।
इसी युद्ध को जीतने के बाद East India Company का एक अफसर फ्रांसिस ब्रेकन भारत आया जिसने बंगाल
को लूटने में कंपनी की सहायता की वह ब्रिटेन वापिस गया और समय समयपर संसद में होने वाली बहस में
हिस्सा लेता रहता था। एक ऐसी ही बहस में , जिसमें
मुद्दा था कि भारत के चारित्रिक पतन की प्रक्रिया में
कौन कौन से कदम उठाये जा रहे हैं, उसने हिस्सा लिया।
भारत भूमि में जन्मा व्यक्ति कोई श्री कृष्ण तो कोई श्री राम,महाराण प्रताप,छत्रपति शिवाजी,कोई ऋषि मुनि,तो कोई क्रन्तिकारी बन जाता है चूँकि भारत सांस्कृतिक और अध्यात्मिक धरातल पर बेहद शक्तिशाली राष्ट्र है इसलिए वे उसे तोड़ने में कुछ खास तो नहीं कर पाये हैं परंतु इस
विशालकाय मजबूत दीवार में एक छोटे से छेद के तौर पर
उन्होंने बंगाल में एक शराब का ठेका खुलवा दिया है।
उसने आगे कहा कि 1760 से पहले भारत में
कोई शराब नहीं पीता था| 1760 के बाद उन्होंने शराब की पहली दुकान का ठेका एक ठेकेदार को दे दिया। ब्रेकन ने ठेकेदार से पूछा कि क्या भारतीय शराब पीते थे तो उसने जवाब दिया कि नहीं! क्यों नहीं पीते थे? ठेकेदार बोला उसके 3 कारण हैं भारतीयों के लिए शराब पीने का मतलब अपना धर्म भ्रष्ट करना है। भारत की जलवायु उन्हें शराब पीने से
रोकती है। शराब सबसे तुच्छ पेय है जो मनुष्यों के लिए नहीं है।
इस शराब की दुकान की कई अन्य शाखाएं कुछ ही सालों में पूरे बंगाल में खुल गयीं। यह वार्ता है सन् 1832 की जिसमें ब्रेकन ठेकेदार से हुई बातचीत के अंश प्रस्तुत कर रहा है।
ठेकेदार से आगे पूछने पर पता चला कि भारतवासी अब
कितनी शराब पी रहे हैं? जवाब मिला कि इस दुकान
के पिछले मालिक तक यहाँ सिर्फ अंग्रेज़ ही आकर शराब पीते
थे परंतु अब यहाँ भारतीयों की भरमार है। इन्होंने कब से इतनी शराब पीनी शुरू कर दी और क्यों? ठेकेदार बोला कि इनके चरित्र तो ऊंचे थे परंतु ये हमारे बहकावे में फँस गए हमने इन्हें तरह तरह के लालच देकर इनकी वासना को अग्नि दी जिसके
कारण ये ठेकों की तरफ आकर्षित हैं। आरम्भ में भारतीय चोरी छिपे पीते थे और बाद में धीरे धीरे ये खुले आम होता चला गया।आज मंज़र यह है कि शराब न पीने वाला नास्तिक समझा जाता है। हमारा अधिकांश युवा समुदाय इसकी चपेट में है।1832 तक भारत में शराब की 350 दुकानें थीं और जब अंग्रेज़ भारत को छोड़कर गए तब भारत में 1500 शराब के ठेके थे।आज ऐसे 24,400 दुकानें हैं। ये तो वैध दुकानें हैं।अवैध दुकानें इनसे भी ज्यादा हैं। हर मोहल्ले में एक
ठेका आपको मिल जाएगा। दूध मिले न मिले पर शराब आपको मिलही जाएगी।शराब पीकर आदमी बेटी, बहु, बहन
और पत्नी में अंतर भूल जाता है 98 से 100 फीसदी बलात्कार शराब के नशे में होते हैं और इनका licence आज भी सरकार से ही मिलता है।अंग्रेज़ ये बात जानते थे कि शराब देवता को दानव बनाने में देर नहीं लगाती, इसीलिए उन्होंने सबसे
पहला काम हमें तोड़ने की दिशा में जो किया वह था शराब
का हमसे परिचय। गोरे अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाने
की नीति बनाई और सरकार उसी नीति का पूर्ण
निष्ठा से पालन कर रही है। भारत में लगभग 80 करोड़ लीटर शराब पैदा की जाती है। लगभग 5-7 % भारतवासियों में
शराब की ऐसी बुरी लत है कि वे उसके बिना जी नहीं सकते|
Comments