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जनता के लिए, जनता द्वारा,खुद पर लगाए कर्फ्यू नियम को कौन पालन करेंगा !!

जनता द्वारा खुद पर लगाया गया  कर्फ्यू अर्थात “जनता कर्फ्यू ” शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के दौरान गुरूवार 19 मार्च 2020 को रात 8 बजे हिंदुस्तान की जनता को किए गए संबोधन में किया । रविवार 22 मार्च 2020 को सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक ”जनता के लिए, जनता द्वारा , खुद पर लगाए कर्फ्यू “ में जरूरी सेवाओं से संबधित लोगों के अलावा कोई भी नागरिक घरों से बाहर नही निकला ।
इधर कोरोना से निपटने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सबसे पहले सक्रिय हुए। प्रधानमंत्री ने देशभर में लाॅक डाउन 24 मार्च से किया लेकिन गहलोत ने राजस्थान में 22 मार्च को ही राज्य भर में लाॅक डाउन कर दिया । प्रधानमंत्री मोदी ने भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यो की तारीफ अन्य मुख्यमंत्रियों के साथ की गई वीसी में की ।
कोरोना महामारी ने राजनीतिक दलों को एक जाजम पर लाने का कार्य भी किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात कर आम राय से निर्णय ले रहे है वहीं मुख्यमंत्री गहलोत ने राजस्थान में लाॅक डाउन के दौरान आ रही परेशानियों पर फीड बैक लेने के लिए सभी को एक मंच पर बुला लिया। प्रदेश में कोरोना संकट के बाद यह पहला मौका था जब सरकार और विपक्ष एक मंच पर आए और आम राय कायम करने का प्रयास किया गया । देर रात तक चली इस वीडियो कांफ्रेंसिंग में करीब 157 विधायक और 24 सांसद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित शामिल हुए । भाजपा ने भी मुख्यमंत्री गहलोत की इस पहल की तारीफ की ।
सवाल यह है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री राजनीति से परे हटकर कार्य कर रहे है तो नीचे स्तर पर राजनीतिक लोग इस संकटकाल में भी राजनीति करने से बाज क्यों नही आ रहें है ? कोरोना संकटकाल में कई सामाजिक संस्थाएं और भामाशाह अपने स्तर पर मुख्य रूप से जरूरतमंदो की मदद कर रहे है । इस बीच राजस्थान के कई हिस्सों से सरकारी मदद में भेदभाव की शिकायतें निरन्तर आ रही है । स्थिति यह है कि शहरी क्षेत्रों में पार्षद चुनाव हारे हुए कांग्रेसी नेता वार्ड में अपने लोगों को खोज कर सरकारी मदद दिला रहे है और दूसरे जरूरतमंद परेशान हो रहें है। इस संकटकाल में यह राजनीति क्यों ? क्यों आज भी वोटों को ढूंढा जा रहा है ?

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सामाजिक संस्थाओं , युवाओं और भामाशाहों से मदद करने का आहवान कर रहे है और प्रशासन इन सभी से सहयोग ले भी रहा है। एक पत्रकार फोन पर बतातें है कि सरकारी आदमी जो भी इस संकट काल में कार्य कर रहें है, उनका देश आभारी है। सबसे अच्छी बात यह है कि सभी सरकारी विभाग अपना-अपना काम कर रहे है और वे सभी इस काम का वेतन भी ले रहें है लेकिन सामाजिक संस्था और भामाशाह  अपने स्तर पर इस संकटकाल में कार्य कर रहे है, जिसका इन लोगों को कोई वेतन भी नही मिल रहा है और वे अपने स्तर पर ही इस महामारी के बीच जान जोखिम में डाल कार्य कर लोगों की मदद कर रहें है। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार ने सरकारी कोरोना योद्वाओं का तो बीमा भी करा दिया । भामाशाहों को बीमा कवरेज की जरूरत नही है लेकिन सामाजिक संस्थाओं में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता और जागरूक करने वाले पत्रकार तो इस सरकारी बीमा से भी वंचित रह कर इस महामारी के बीच कार्य कर रहें है।

एक विद्वान कहते है कि कोरोना काल में निम्न वर्ग और उच्च वर्ग को सरकार मदद कर रही है लेकिन निम्न मध्यमवर्ग और मध्यमवर्ग की सुनने वाला कोई नही है। सरकारी मदद की कई घोषणाएं की जा रही है, अच्छे वादे है लेकिन ये लाखों करोड़ो की मदद धरातल पर कब क्रियान्वित होगी। आम आदमी को इन योजनाओं का क्या लाभ होगा और लाभ होगा भी या नही । इस तरह के कई सवाल आम आदमी के दिमाग में चल रहे है। जनता की परेशानियां कई है लेकिन इन समस्याओं के बीच अब हिंदुस्तान हर मोड़ पर कोरोना को हराने के लिए कटिबद्व नजर आ रहा है।
”जनता के लिए, जनता द्वारा , खुद पर लगाए कर्फ्यू “ से शुरू हुए संकट काल से अब हर मोड़ पर कोरोना को हराने के साथ ही लाॅकडाउन से उपजे रोजगार के संकट को भी “जनता को अपनी मेहनत और हौसले” से ही दूर करना होगा


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