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भारतीय चरित्र दमित चरित्र है। इसमें गालियां तो भरी हैं भीतर लबालब, निकलने का मौका नहीं मिलता। शराब पी ली, निकल पड़ती हैं। शराब नहीं पीते, सम्हली रहती हैं !

यह हमारे देश में एक बड़ी अजीब विक्षिप्तता है। सारी दुनिया में शराब पी जाती है, कहीं कोई अड़चन नहीं है। अड़चन यहीं है सिर्फ! क्योंकि सारी दुनिया में लोग शराब पीने का सलीका समझ गए हैं। शराब पीने का एक ढंग होता है, एक सलीका होता है। तुम यहां पीने नहीं देते तो लोग गैर-सलीके से पीते हैं, ज्यादा पी जाते हैं। 

ऐसा ही समझो न कि तुम्हें कोई खाना न खाने दे दिन भर, फिर एकदम से मौका मिल जाए, तो ज्यादा खा जाओगे। दो तीन दिन उपवास करवा दे कोई जबरदस्ती और फिर खाने का मौका मिल जाए, तो बीमार पड़ोगे। जो भी खाओगे, कै-दस्त हो जाएगा।

सारी दुनिया में लोग शराब पीते हैं, सिर्फ कोई भारत में ही नहीं। भारत में क्या कोई शराब पीता है! लेकिन सारी दुनिया में यूं पीते हैं जैसे पानी पीते हैं। लेकिन कोई झगड़ा-फसाद नहीं, कोई दंगा खड़ा नहीं होता, कोई मार-पीट नहीं होती, कोई नालियों में पड़ा हुआ गालियां नहीं बकता। ये सब खूबियां भारतीय चरित्र में ही प्रकट होती हैं। 

यह थोड़ा सोचने जैसा है। इसके दो मतलब हैं। एक मतलब तो यह कि भारतीय चरित्र दमित चरित्र है। इसमें गालियां तो भरी हैं भीतर लबालब, निकलने का मौका नहीं मिलता। शराब पी ली, निकल पड़ती हैं। शराब नहीं पीते, सम्हली रहती हैं।

दुनिया का चरित्र इतना दमित नहीं है। लोग ज्यादा प्रामाणिक हैं। लोगों ने नाहक अपने को सता-सता कर, अपने को परेशान कर-कर के, ठूंस-ठूंस कर भीतर चीजों को नहीं भर रखा है। इसलिए निकलने को कुछ है नहीं। शराब पीकर आराम से सो जाते हैं। शराब पीना साधारण पेय है, जैसे कोकाकोला, फैंटा, इस तरह की चीजों में गिनती है। कौन फिक्र करता है शराब की! 

छोटे-छोटे बच्चों को घर में मां-बाप पिलाना सिखाते हैं, सलीका सिखाते हैं। और शराब अगर मात्रा में पी जाए तो स्वास्थ्यपूर्ण है, कोई नुकसान पहुंचाती नहीं। गैर-मात्रा में तो कोई भी चीज नुकसान पहुंचाएगी; पानी ही पी जाओ गैर-मात्रा में...। तो इसका मतलब क्या है कि पानी पर प्रॉहिबिशन करना पड़ेगा? पी जाओ दस-पांच बाल्टी पानी, पड़े हैं चारों खाने चित्त फिर। फिर अल्ल-बल्ल बकोगे--पानी ही पीकर बकोगे, शराब वगैरह पीने की जरूरत नहीं है। कुछ का कुछ दिखाई पड़ेगा, वश खो जाएगा। कोई भी चीज मात्रा में...।

छोटे-छोटे बच्चों को भी पश्चिम में शराब पिलाना सिखाते हैं, घर में मां-बाप सिखाते हैं। तो उससे सलीका बनता है, एक संस्कार बनता है। वे सीख लेते हैं कि कैसे शराब पीना, कब पीना, किस समय पीना, कितनी पीना, पीकर कैसे सो जाना। तो शराब स्वास्थ्यवर्धक हो जाती है। सभी शराबें हानिकर नहीं हैं। और जब कोई सिखाने वाला न हो, कोई बताने वाला न हो, तो तुम न मालूम क्या पी लोगे! 

अब यहां तो क्या-क्या पी लेते हैं! प्रॉहिबिशन हो जाता है, बंदी हो जाती है शराब पर, तो कोई स्प्रिट पी लेता है, कोई पेट्रोल पी लेता है, कोई कुछ पी लेता है, कोई तारपीन का तेल पी लेता है। और फिर मरते हैं। ऐसा दुनिया में कहीं नहीं होता। यह सिर्फ ऋषि-मुनियों के इस देश में ही होता है। कौन पागल है इतना कि स्प्रिट पीए! कि पेट्रोल पीए! और यहां देशी शराब के नाम से जो चलता है, उसका कोई भरोसा है कि उसमें क्या हो? कोई भरोसा नहीं है। न बनाने वालों को पता है, न पीने वालों को पता है।

मैं शराब-विरोधी नहीं हूं। शराब का पक्षपाती भी नहीं हूं। मैं यह नहीं कहता कि जो नहीं पीते, उनको पीना चाहिए। मैं यह भी नहीं कहता कि जो पीते हैं, उनको पीना बंद करना चाहिए। मैं कहता हूं: जो पीते हैं, उनको पीने का सलीका सीखना चाहिए। और जो नहीं पीते हैं, उन्हें इतना शिशटाचार सीखना चाहिए कि जो पीते हों उनके जीवन में दखलंदाजी न करें।

 ओशो$$✍🏻

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