सामान्य आशय संयुक्त दायित्व के सिद्धांत पर कार्य करता है इसके तत्व निम्नानुसार हैं –
- दो व्यक्तियों के बीच किसी पूर्व नियोजित योजना के रूप में सामान्य आशय का विद्यमान होना।
- सामान्य आशय के अग्रसरण में कोई अपराध गठित करने वाले कार्य में व्यक्ति का योगदान
इस प्रकार सामान्य आशय का अर्थ किसी आपराधिक कार्य करने को किये जाने की एक से अधिक व्यक्तियों की इच्छा और उस को उन सभी व्यक्तियों को ज्ञात होना और इस इच्छा के अनुसरण में उन व्यक्तियों द्वारा मिलकर कोई आपराधिक कार्य किया जाना होता है । इसके लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह आपराधिक कार्य सभी के द्वारा किया जाये उस अपराध को करने में विभिन्न-विभिन्न कार्य करना भी शामिल है।
भा.द.स. की धारा 34 में प्रयुक्त सामान्य आशय पदावली को अनेक अर्थ प्रदान किये गये है –
- सामान्य आशय का अर्थ है, परिणाम की कल्पना किये बिना एक आपराधिक कृत्य कारित करने की इच्छा या घटित अपराध को निर्मित करने हेतु आवश्यक दुराशय।
- ऐसा आशय जो एक से अधिक व्यक्तियों का होना, सामान्य आशय होता है।
- ऐसी पूर्व निर्धारित योजना अंतर्निहित है जो विचारों का पूर्व मिलन, सभी व्यक्तियों के बीच विचार-विमर्श जो एक गुट को निर्मित करते है।
- इसका तात्पर्य कोई आपराधिक कृत्य करने से भी है, परंतु यह आवश्यक नहीं है कि वह वही अपराध है जो घटित हुआ है।
- सामान्य आशय के अग्रसरण से तात्पर्य भागीदारी से है जिसमें यह आवश्यक नहीं है कि वे सभी एक ही भूमिका का निर्वाह कर रहें हो, छोटी या बडी कोई भी भमिका जो सामान्य आशय से समबन्ध हो,पर्याप्तहोगी।
- सामान्य आशय के लिए अभियुक्त घटनास्थल पर होना चाहिये किंतु यह सभी स्थितियों में आवश्यक नहीं है। कुछ मामलों में घटनास्थल से दूर रहकर भी भागीदारी की जा सकती है।
- सामान्यआशय घटनास्थल पर भी उत्पन्न हो सकता है (ऋषिदेव पाण्डे बनाम् उ.प्र. राज्य)
- सामान्य आशय के लिये यह भी आवश्यक नहीं कि वह घटनास्थल पर उत्पन्न हो वह कार्य करने के दौरान भी उत्पन्न हो सकता है। (भूपसिंह बनाम् पंजाब राज्य, 1997)
- सामान्यआशय का अनुमान भी लगा लिया जाता है तो यह माना जायेगा कि सामान्य आशय था।
- सामान्य आशय उनका भी रहता है जो खड़े रहते है और मात्र प्रतीक्षा करते है ( वारेन्द्र कुमार घोष बनाम् एम्परर)
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