19 जून को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा, एस अब्दुल नज़ीर और एम आर शाह की बेंच ने मामले को सुना था. सुनवाई के दौरान जजों ने याचिकाकर्ता से उसके आरोप का आधार पूछा था. इस पर याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड के लिए PIL दाखिल की थी. कोर्ट की रजिस्ट्री ने उसमें कई तकनीकी कमियां निकाल दीं, लेकिन इस याचिका के बाद दाखिल हुई वरिष्ठ पत्रकार अर्णब गोस्वामी की याचिका को तुरंत सुनवाई के लिए लगा दिया गया. उसमें कोई तकनीकी कमी नहीं गिनाई गई, क्योंकि उसे बड़ी लॉ फर्म ने दाखिल किया था. इस पर कोर्ट का कहना था, “दोनों मामलों की कोई तुलना नहीं है. अगर कोई बिना उचित कारण के गिरफ्तार कर लिए जाने का अंदेशा जताता है, तो ऐसी याचिका को तुरंत सुनना जरूरी होता है. आपने एक जनहित याचिका दाखिल की, जिसको तुरंत सुन लेना जरूरी नहीं था. इसमें रजिस्ट्री ने सामान्य प्रक्रिया के तहत काम किया. आप एक वकील होकर इस तरह की तुलना कैसे कर सकते हैं?” सुनवाई करने वाली बेंच ने यह भी कहा कि देश में फैली महामारी के बीच रजिस्ट्री के कर्मचारियों ने दिन-रात मेहनत की ताकि वकीलों को कोई असुविधा न हो. जितना समय सामान्य दिनों में सुनवाई में लगता है, उससे भी कम समय में याचिकाओं को सुनवाई के लिए लगाया गया. रजिस्ट्री के अधिकारियों और कर्मचारियों पर इस तरह का आरोप लगना दुर्भाग्यपूर्ण है.
आज सुप्रीम कोर्ट ने अपनी इस टिप्पणी के मुताबिक ही आदेश दिया. कोर्ट ने याचिका को आधारहीन बताते हुए न सिर्फ खारिज कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ता को सांकेतिक किस्म का दंड भी दिया. जजों ने याचिकाकर्ता दीपक कंसल पर 100 रुपये का जुर्माना लगाया है.
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