लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, कुछ आशीर्वाद दें। जीवन में बड़ी निराशा है। आशा का दीया जला दें। मैं उनसे कहता हूं, तुम गलत जगह आ गए। यहां तो आशा के दीये बुझाए जाते हैं!! Osho !!
लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, कुछ आशीर्वाद दें। जीवन में बड़ी निराशा है। आशा का दीया जला दें। मैं उनसे कहता हूं, तुम गलत जगह आ गए। यहां तो आशा के दीये बुझाए जाते हैं।
तुम इसे ध्यान रखना, यह सदगुरू की पहचान है-जो तुमसे आशा छीन ले; जो तुमसे संकल्प छीन ले। यह सदगुरु की पहचान है-जो तुम्हें मिटा दे। तुम भला किसी कारण से उसके पास आए हो, वह तुम्हारी चिंता ही न करे। उसके लिए तो आत्यंतिक बात ही महत्वपूर्ण है। वह तो तुम्हारे भीतर मोक्ष को लाना चाहता है।
और स्वभावतः तुम कैसे मोक्ष की कामना कर सकते हो ? संसार को ही तुमने जाना है। वहां भी सफलता नहीं जानी। किसने जानी! सिकंदर भी असफल होता है। संसार में असफलता ही हाथ लगती है।
तो तुम वही सफलता पाने के लिए आ गए हो अगर, तो केवल असदगुरु से ही तुम्हारा मेल हो पाएगा, जहां गंडा-ताबीज मिलता हो, मदारीगिरी से भभूत बांटी जाती हो, जहां तुम्हें इस बात का भरोसा मिलता हो कि ठीक, यहां कुछ चमत्कार हो सकता है; जहां तुम्हारा मरता-बुझता अहंकार प्रज्वलित हो उठे; जहां कोई तुम्हारी बुझती ज्योति को उकसा दे।
मगर वह ज्योति संसार की है। वही तो नरक की ज्योति है। वही तो अंधकार है। उसी ने तो तुम्हें पीड़ा दी है, सताया है। उसी से बधे तो तुम पड़े हो। वही तो तुम्हारी छाती में लगा विषाक्त तीर है। सदगुरु उसे खींचेगा। उसके खींचने में ही तुम मरोगे। सदगुरु तो मृत्यु है तुम्हारी; जैसे तुम हो। यद्यपि उसी मृत्यु के बाद तुम्हें पहली दफा उसका दर्शन होता है, जो वस्तुतः तुम हो।
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