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तलाक के बिना लिव इन रिलेशनशिप में रहना आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध हो सकता है !!


तलाक के बिना लिव इन रिलेशनशिप में रहना आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध हो सकता है !! 

!! पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट !!

पिछले महीने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक लिव-इन जोड़े द्वारा दायर एक संरक्षण याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि वे दोनों अपने-अपने जीवनसाथी से तलाक लिए बिना एक-दूसरे के साथ वासनापूर्ण और व्यभिचारी जीवन जी रहे हैं। जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान की बेंच एक लिव-इन कपल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि वे दोनों पिछले कई सालों से एक-दूसरे से प्यार करते हैं और पिछले एक महीने से लिव-इन रिलेशनशिप में हैं। 

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि कोई विवाहित व्यक्ति अपने जीवनसाथी (पति या पत्नी) से तलाक लिए बिना लिव-इन-रिलेशनशिप में है तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत अपराध हो सकता है। न्यायमूर्ति अशोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने अपने पति से तलाक लिए बिना लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए इस प्रकार देखा। अनिवार्य रूप से याचिकाकर्ताओं (महिला और उसके साथी) ने यह प्रस्तुत करते हुए कि वे लिव-इन-रिलेशनशिप में हैं, निजी उत्तरदाताओं के हाथों अपने जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उत्तरदाताओं नंबर 1 से 3 को निर्देश जारी करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया।

अदालत ने मामले के रिकॉर्ड पर गौर करते हुए पाया कि याचिकाकर्ता नंबर 1 (हरप्रीत कौर) की उम्र 23 साल है और वह प्रतिवादी नंबर 4 (गुर्जंत सिंह) की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है और अपने पति से तलाक के बिना, वह याचिकाकर्ता नंबर 2 के साथ व्यभिचारीऔर वासनापूर्ण जीवन जी रही है। इस बात पर बल देते हुए कि इस तरह के संबंध विवाह की प्रकृति में "लिव-इन रिलेशनशिप" या "रिलेशनशिप" वाक्यांश के अंतर्गत नहीं आते हैं,

कोर्ट ने इस प्रकार देखा: 

याचिकाकर्ता नंबर 1 एक विवाहित महिला है जो प्रतिवादी संख्या 4-गुर्जंत सिंह की पत्नी है, याचिकाकर्ताओं का कार्य विशेष रूप से याचिकाकर्ता नंबर 1 आईपीसी की धारा 494/465 के तहत अपराध का गठन कर सकता है। " न्यायालय ने देखा कि वर्तमान याचिका उनके तथाकथित लिव-इन-रिलेशनशिप पर न्यायालय की मुहर प्राप्त करने के लिए दायर की गई थी। इस प्रकार कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ताओं को वर्तमान मामले के तथ्यों पर सुरक्षा का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, क्योंकि मांगा जा रहा संरक्षण आईपीसी की धारा 494/495 के तहत अपराध के खिलाफ सुरक्षा के बराबर हो सकता है।" 

इसी प्रकार के एक मामले में एक विवाहित व्यक्ति के साथ रह रही एक विधवा को पुलिस सुरक्षा से वंचित करते हुए, राजस्थान उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा था कि याचिकाकर्ताओं के बीच ऐसा संबंध कानूनी लिव-इन संबंध के दायरे में नहीं आता है, बल्कि, ऐसे रिश्ते 'विशुद्ध रूप से अवैध' और 'असामाजिक' हैं।

केस का शीर्षक - हरप्रीत कौर और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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