जब राम के बाण से रावण मरा तो उसने कहा कि मेरी जन्मों-जन्मों की आकांक्षा पूरी हुई कि राम के हाथों मारा जाऊं, इससे बड़ी और कोई आकांक्षा हो भी नहीं सकती, क्योंकि जो राम के हाथ मारा गया, वह सीधा मोक्ष चला जाता है।
गुरु के हाथ जो मारा गया, वह और कहां जाएगा ? और जैसे पांडवों को कहा है कृष्ण ने कि मरते हुए भीष्म से जाकर धर्म की शिक्षा ले लो, वैसे ही राम ने लक्ष्मण को भेजा रावण के पास कि वह मर न जाए, वह परम ज्ञानी है।
उससे कुछ ज्ञान के सूत्र ले आ। उस बहती गंगा से थोड़ा तू भी पानी पी ले। लेकिन कठिनाई क्या है? कठिनाई हमारी यह है कि हमारी समझ चुनाव की है। अगर हम राम को चुनते हैं, तो रावण दुश्मन हो गया।
अगर हम रावण को चुनते हैं, तो राम दुश्मन हो गए। और दोनों को तो हम चुन नहीं सकते, क्योंकि हमको लगता है, दोनों तो बड़े विरोधी हैं, इनको हम कैसे चुनें! और जो दोनों को चुन ले, वही रामलीला का सार समझा, क्योंकि रामलीला अकेली राम की लीला नहीं है।
रावण के बिना हो भी नहीं सकती। थोड़ा रावण को हटा लो रामलीला से, फिर रामलीला बिलकुल ठप हो जाएगी, वहीं गिर जाएगी। सब सहारे उखड़ जाएंगे। राम खड़े न हो सकेंगे बिना रावण के।
राम को रावण का सहारा है।
प्रकाश हो नहीं सकता बिना अंधेरे के अंधेरा प्रकाश को बड़ा सहारा है।
जीवन हो नहीं सकता बिना मृत्यु के।
मृत्यु के हाथों पर ही जीवन टिका है।
जीवन विपरीत में से चल रहा है।
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