Today, in this new modern society, why is love ending like breaking it into pieces!! What are the secrets behind this, let us know from Osho !!
आज इस नया मॉडर्न समाज मे इतना टुकड़े टुकड़े क़र देने जैसा प्यार का अंत क्यों हो रहा हैं !!
क्यों शाहिल और मनोज प्यार का टुकड़े टुकड़े क़र के कुकर मे बाईल करने के हद तक जा रहे हैं !!
क्यो इस तरह का अपराध शाहिल और मनोज क़र के अपना और परिवार वालों का जीवन बर्बाद क़र रहे हैं !!
ओशो का कहना है, 'घृणा हमें समाज में हिंसा की ओर ले जाती है'। स्वामी विवेकानंद का कहना है, हर एक चीज़ से प्यार करो ।
घृणा किसी से नहीं । जब हम किसी से घृणा करते हैं, तो हम या तो उस व्यक्ति से दूर रहने की कोशिश करते हैं, या उस के बारे मैं बुरा सोचते रहतें है और कभी कभी लोगों से भी शेयर करते है ।
इन सभी नकारात्मक चीज़ों की वजह से हमें कभी कभी बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।
हमारा बहुत सारा कीमती समय नष्ट होने लगता है ।
घृणा केवल और केवल हमारी मानसिक और शारीरिक ऊर्जा को समाप्त करने की कोशिश करती है ।
इसलिए घृणा का सिद्धांत नकारात्मक ऊर्जा को प्रेरित करता है ।
घृणा और प्रेम की समझ?
प्रेम और घृणा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
जीवन संसारी इच्छाओं से प्रभावित होता रहता है। वह हमें विभिन्न महत्वाकांक्षाओं और सपनों के बारे में और अधिक सोचने के लिए मज़बूर करता है।
कभी-कभी हम उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न साधनों को अपनाते हैं।
साधन और साध्य के बीच में हम बहुत सारी परिस्थितियों मैं फंस जाते हैं। इससे हमारे अंदर प्रेम और घृणा दोनों ही पैदा होती है।
प्रतियोगिता
प्रतियोगिता भी हमारे अंदर कहीं न कहीं घृणा पैदा करती है । यह इसलिए होता है क्योंकि जब हम अपने भीतर को समझते नहीं है, और दूसरों से प्रेरित होकर उनके मार्ग पर चले जाते हैं ।
जहाँ प्रतियोगिता खुद से होनी चाहिए,वहीं हम दूसरों से करने लग जातें हैं । इसी जदोजहद में हम अपना हुनर खो देते है और घृणा के रास्ते पे चले जातें हैं ।
इसलिए जब हम किसी भी कार्य को हासिल करने के लिए मेहनत करते है, अपना तन, मन उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लगा देतें है, यह सब भावनाएँ प्यार को इशारा करती हैं ।
लेकिन यही कार्य घृणा से किया जाए तो हम मेहनत की जगह पर तरह तरह के रास्ते खोजते हैं, जो उस कार्य और समाज के नियमों के विरुद्ध हो जातें हैं ।
यही सब प्रतियोगिता से जुडी परिस्थितियां हमें घृणा और प्यार में बाँट देती हैं ।
जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने प्यार को बहुत बेहतरीन तरीके से समझाया है । कार्ल मार्क्स कहतें है, प्यार एक आदमी को दुनिया पर विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है, क्योंकि प्यार ही आपस में विश्वास पैदा करता है ।
यह न केवल वस्तु को वस्तु बनाता है बल्कि वस्तु को मनुष्य बनाता है। प्यार एक प्रेमी को शारीरिक प्रेम से आध्यात्मिक प्रेम की ओर ले जाता है (हौली फैमिली, कार्ल मार्क्स, 1845) ।
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