आईपीसी की धारा 153 ए के तहत पत्रकारों पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो सकती है !! चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'वे अपना दृष्टिकोण रखने के हकदार हैं !!
आईपीसी की धारा 153ए के तहत पत्रकारों पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो सकती है !!
"फ्रीडम ऑफ़ स्पीच" सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या कहें 'फ्री स्पीच' पर अहम टिप्पणी की है !!
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'वे अपना दृष्टिकोण रखने के हकदार हैं !!
पत्रकारों कहना है कि भले ही तथ्यों के आधार पर कोई रिपोर्ट गलत ही क्यों नहीं हो,फिर भी उसे लिखने वाले के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए के तहत दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो सकती है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'वे अपना दृष्टिकोण रखने के हकदार हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहाँ कि 'फ्री स्पीच' का मतलब मुकदमे के डर के बिना अपना दृष्टिकोण रखना है.
देश की शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि पत्रकारों को उनके जरिए लिखे गए आर्टिकल को लेकर विभिन्न समुदायों या समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ावा देने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. पिछले कुछ सालों में फ्री स्पीच एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है. मीडिया संस्थानों से लेकर राजनीतिक नेताओं तक के ऊपर उनके बयानों और रिपोर्ट्स को लेकर केस दर्ज हुए हैं, जिन्हें उन्होंने सीधे तौर पर फ्री स्पीच का उल्लंघन बताया है.
धारा 153 के तहत कैसे कैसे बनाया जा सकता है ? वे सही हो सकते हैं. वे गलत हो सकते हैं. लेकिन फ्री स्पीच का मतलब तो यही है.
पीठ ने कहा हर रोज सैकड़ों की संख्या में रिपोर्ट्स पब्लिश होती हैं, जो तथ्यों के आधार पर गलत हैं,क्या सभी पत्रकारों पर धारा 153ए के तहत केस होगा. किसी आर्टिकल में गलत बयान देना धारा 153ए के तहत अपराध नहीं है.
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