मीरा को तर्क और बुद्धि से मत सुनना। मीरा का कुछ तर्क और बुद्धि से लेना-देना नहीं है। मीरा को भाव से सुनना, भक्ति से सुनना,श्रद्धा की आंख से देखना !! ओशो !!
मीरा को तर्क और बुद्धि से मत सुनना। मीरा का कुछ तर्क और बुद्धि से लेना-देना नहीं है। मीरा को भाव से सुनना, भक्ति से सुनना,श्रद्धा की आंख से देखना।
मीरा को तर्क और बुद्धि से मत सुनना। मीरा का कुछ तर्क और बुद्धि से लेना-देना नहीं है। मीरा को भाव से सुनना, भक्ति से सुनना,श्रद्धा की आंख से देखना। हटा दो तर्क इत्यादि को, किनारे सरका कर रख दो।
थोड़ी देर के लिए मीरा के साथ पागल हो जाओ। यह मस्तों की दुनिया है। यह प्रेमियों की दुनिया है। तो ही तुम समझ पाओगे, अन्यथा चूक जाओगे।
पहली बात मीरा का कृष्ण से प्रेम मीरा की तरह शुरू नहीं हुआ! प्रेम का इतना अपूर्व भाव इस तरह शुरू हो भी नहीं सकता। यह कहानी पुरानी है। यह मीरा कृष्ण की पुरानी गोपियों में से एक है। मीरा ने खुद भी इसकी घोषणा की है, लेकिन पंडित तो मानते नहीं।
क्योंकि इसके लिए इतिहास का कोई प्रमाण नहीं है। मीरा ने खुद भी कहा है कि कृष्ण के समय में मैं उनकी एक गोपी थी, ललिता मेरा नाम था। मगर पंडित तो इसको टाल जाते हैं; यह बात को ही कह देते हैं कि किंवदंती है, कथा-कहानी है। मैं ऐसा न कर सकूंगा।
मैं पंडित नहीं हूं। और हजार पंडित कहते हों तो उनकी मैं दो कौड़ी की मानता हूं। मीरा खुद कहती है, उसे मैं स्वीकार करता हूं। सच-झूठ का मुझे हिसाब भी नहीं लगाना है।
बात के इतिहास होने न होने से कोई प्रयोजन भी नहीं है। मीरा का वक्तव्य, मैं राजी हूं। मीरा जब खुद कहती है तो बात खतम हो गई। फिर किसी और को इसमें और प्रश्न उठाने का प्रश्न नहीं उठना चाहिए। और जो इस तरह के प्रश्न उठाते हैं वे मीरा को समझ भी न पाएंगे।
मीरा स्वयं भक्ति है। इसलिए तुम रेखाबद्ध तर्क न पाओगे। रेखाबद्ध तर्क वहां नहीं है। वहां तो हृदय में कौंधती हुई बिजली है। जो अपने आशियाने जलाने को तैयार होंगे, उनका ही संबंध जुड़ पाएगा।
प्रेम से संबंध उन्हीं का जुड़ता है, जो सोच-विचार खोने को तैयार हों; जो सिर गंवाने को उत्सुक हों। उस मूल्य को जो नहीं चुका सकता, वह सोचे भक्ति के संबंध में, विचारे; लेकिन भक्त नहीं हो सकता।
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