महावीर ने बारह वर्षों में केवल तीन सौ पैंसठ दिन भोजन किया। इसका अर्थ हुआ कि ग्यारह वर्ष भोजन नहीं किया।
महावीर के संबंध में कहा जाता है, पच्चीस सौ साल में महावीर के पीछे चलनेवाला कोई भी व्यक्ति नहीं समझा पाया कि इसका राज क्या है। महावीर ने बारह वर्षों में केवल तीन सौ पैंसठ दिन भोजन किया। इसका अर्थ हुआ कि ग्यारह वर्ष भोजन नहीं किया।
कभी तीन महीने बाद एक दिन किया, कभी महीने बाद एक दिन किया। बारह वर्ष के लंबे समय में सब मिलाकर तीन सौ पैंसठ दिन, एक वर्ष भोजन किया। अनुपात अगर लें तो बारह दिन में एक दिन भोजन किया और ग्यारह दिन भूखे रहे।
लेकिन महावीर से ज्यादा स्वस्थ शरीर खोजना मुश्किल है, शक्तिशाली शरीर खोजना मुश्किल है। बुद्ध या क्राइस्ट या कृष्ण या राम, सारे स्वास्थ्य की दृष्टि से महावीर के सामने कोई भी नहीं टिकते।
हैरानी की बात है! बहुत हैरानी की बात है! और महावीर के शरीर के साथ जैसे जैसे नियम बाह्य काम कर रहे हैं, उसका कोई हिसाब लगाना मुश्किल है।
बारह साल तक यह आदमी तीन सौ पैंसठ दिन भोजन करता है। इसके शरीर को तो गिर जाना चाहिए कभी का। लेकिन क्या हुआ है कि शरीर गिरता नहीं।
अभी मैंने नाम लिया है,राबर्ट पावलिटा का कि इसकी प्रयोगशाला में बहुत अनूठे प्रयोग किये जा रहे हैं। उनमें एक प्रयोग भोजन के बाहर सम्मोहन के द्वारा हो जाने का भी है। जो व्यक्ति इस प्रयोगशाला में काम कर रहा है उसने चकित कर दिया है।
पावलिटा की प्रयोगशाला में कुछ लोगों को दस दस साल के लिए सम्मोहित किया गया। वह दस साल तक सम्मोहन में रहेंगे.
उठेंगे, बैठेंगे, काम करेंगे, खाएंगे, पिएंगे, लेकिन उनका सम्मोहन नहीं तोड़ा जाएगा। वह गहरी सम्मोहन की अवस्था बनी रहेगी। और कुछ लोगों ने तो अपना पूरा जीवन सम्मोहन के लिए दिया है जो पूरे जीवन के लिए सम्मोहित किये गये हैं, उनका सम्मोहन जीवन भर नहीं तोड़ा जाएगा।
उनमें एक व्यक्ति है बरफिलाव। उसको तीन सप्ताह के लिए पिछले वर्ष सम्मोहित किया गया और तीन सप्ताह पूरे समय उसे बेहोश, सम्मोहित रखा गया। और उसे तीन सप्ताह में बार बार सम्मोहन में झूठा भोजन दिया गया।
जैसे उसे बेहोशी में कहा गया कि तुझे एक बगीचे में ले जाया जा रहा है। देख, कितने सुगंधित फूल हैं और कितने फल लगे हैं, सुगंध आ रही है ?
उस व्यक्ति ने जोर से श्वास खींची और कहा अदभुत सुगंध है! प्रतीत होता है, सेव पक गये। पावलिटा ने उन झूठे, काल्पनिक, फैंटेसी के बगीचे से फल तोड़े; उस आदमी को दिये और कहा कि लो बहुत स्वादिष्ट हैं।
उस आदमी ने शून्य में, शून्य से लिए गये, शून्य सेवों को खाया। कुछ था नहीं वहां। स्वाद लिया, आनंदित हुआ।
पंद्रह दिन तक उसे इसी तरह का भोजन दिया गया पानी भी नहीं, भोजन भी नहीं झूठा पानी कहें, झूठा भोजन कहें। दस डाक्टर उसका अध्ययन करते थे। उन्होंने कहा है.
रोज उसका शरीर और भी स्वस्थ होता चला गया। उसको जो शारीरिक तकलीफें थीं वे पांच दिन के बाद विलीन हो गयीं। उसका शरीर अपने मैक्विमम स्वास्थ्य की हालत में आ गया, सातवें दिन के बाद। शरीर की सामान्य क्रियायें बंद हो गयीं।
पेशाब या पाखाना, मलमूत्र विसर्जन सब विदा हो गया, क्योंकि उसके शरीर में कुछ जा ही नहीं रहा है। तीन सप्ताह के बाद जो सबसे बड़े चमत्कार की बात थी, वह यह कि वह परिपूर्ण स्वस्थ अपनी बेहोशी के बाहर आया। बड़े आश्रर्य की बात जो आप कल्पना भी नहीं कर सकते, वह यह कि उसका वजन बढ़ गया।
यह असंभव है। जो वैज्ञानिक वहां अध्ययन कर रहा था, डा. रेजलिव, उसने वक्तव्य दिया है.
दिस इज साइटिफिकली इंपासिबल। पर उसने कहा इंपासिबल हो या न हो, असंभव हो या न हो, लेकिन यह हुआ है, मैं मौजूद था। और दस रात और दस दिन पूरे वक्त पहरा था कि उस आदमी को कुछ खिला न दिया जाए कोई तरकीब से कोई इंजेक्तान न लगा दिया जाए कोई दवा न डाल दी जाए. कुछ भी उसके शरीर में नहीं डाला गया।
वजन बढ़ गया। तो रेजलिव उस पर साल भर से काम कर रहा है और रेजलिव का कहना है कि यह मानना पड़ेगा कि देयर इज समथिंग लाइक ऐन अननोन एक्स फोर्स।
कोई एक शक्ति है अज्ञात एक्स नाम की, जो हमारी वैज्ञानिक रूप से जानी गयी किन्हीं शक्तियों में समाविष्ट नहीं होती.
वही काम कर रही है। उसे हम भारत में प्राण कहते रहे हैं।
इस प्रयोग के बाद महावीर को समझना आसान हो जाएगा। और इसलिए मैं कहता हूं कि जिन लोगों को भी उपवास करना हो वे तथाकथित जैन साधुओं को सुन समझकर उपवास करने के पागलपन में न पड़े। उन्हें कुछ भी पता नहीं है। वे सिर्फ भूखा मरवा रहे हैं। अनशन को उपवास कह रहे हैं।
उपवास की तो पूरी, और ही वैज्ञानिक प्रक्रिया है। और अगर उस भांति प्रयोग किया जाए तो वजन नहीं गिरेगा, वजन बढ़ भी सकता है।
पर महावीर का वह सूत्र खो गया। संभव है, रेजलिव उस सूत्र को चेकोस्लावाकिया में फिर से पुन: पैदा करे कर लेगा। यहां भी हो सकता है.
लेकिन हम अभागे लोग हैं। हम व्यर्थ की बातों में और विवादों में इतना समय को नष्ट करते हैं और करवाते हैं कि सार्थक को करने के लिए समय और सुविधा भी नहीं बचती।
और हम ऐसी ही मूढ़ताओं में लीन होते हैं, जिन्होंने विद्वता का आवरण ओढ़ रखा है। और हम बंधी हुई अंधी गलियों में भटकते रहते हैं जहां रोशनी की कोई किरण भी नहीं है।
यह प्रकृति के नियम के बाहर जाने की महावीर की तरकीब क्या होगी? क्योंकि महावीर तो सम्मोहित या बेहोश नहीं थे।
यह पावलिटा और रेजलिव का जो प्रयोग है, यह तो एक बेहोश और सम्मोहित आदमी पर है। महावीर तो पूर्ण जाग्रत पुरुष थे, वह तो बेहोश नहीं थे। वह तो उन जाग्रत लोगों में से थे जो कि निद्रा में भी जाग्रत रहते, जो कि नींद में भी सोते नहीं। जिन्हें नींद में भी पूरा होश रहता है कि यह रही नींद। नींद भी जिनके आसपास ही होती है.
अराउंड द कार्नर कभी भीतर नहीं होती। वह उसे जांचते हैं, जानते हैं कि यह रही नींद और. और वह सदा बीच में जागे हुए होते हैं।
OSHO
महावीर वाणी (भाग–1) प्रवचन–3
Comments