नारी तू अबला नहीं तू ही लक्ष्मी तू ही दुर्गा तू ही काली और जगदंबा


नारी तू अबला नहीं 

तू ही लक्ष्मी तू ही दुर्गा 

तू ही काली और जगदंबा 

अपरिमित शक्ति भंडार है तुझ में 

फिर तू क्यों न साबला 

मां बहन बेटी और पत्नी के रूप में 

तू सदा से वंदनीय है। 

धरती जब तू चंडी रूप 

हिल जाते दुष्टों के रुख 

शील है तुम्हारा आभूषण 

विनम्रता ही तुम्हारा सौंदर्य है 

जननी रूप में तुम 

ममता की गहरी सागर है 

बहन रूप में त्याग और समर्पण है 

पुत्री रूप में तू है महालक्ष्मी 

पत्नी रूप में शक्ति का आधार है 

फिर भी हे जननी तू क्यों निराधार है 

उठो जागो और अपनी शक्ति को पहचानो। 

अपने स्वरूप को पुनर्जीवित करो 

तू निराशा और हताश न हो 

अपने भीतर की शक्ति को जगाओ 

दृढ़ निश्चायी बनो

तू ही राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है 

इसलिए अपने को आगे बढ़ाओ 

और देश को समुन्नत बनाओ। 

समस्त शुभकामनाओं के साथ -



    सरिता चौहान 

  गोरखपुर उत्तर प्रदेश

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