सुकरात जैसे महापुरुष की पत्नी भी सुकरात से नाखुश थी. बहुत नाखुश थी क्यों ? क्योंकि वह दार्शनिक ऊहापोह में ऐसा लीन हो जाता था कि भूल ही जाता था कि पत्नी भी है। एक दिन तो दार्शनिक चर्चा में एसा लीन था कि चाय ही पीना भूल गया सुबह की। पत्नी को तो ऐसा क्रोध आया, चाय बनाकर बैठी है और वह बाहर बैठा चर्चा कर रहा है अपने शिष्यों के साथ उसके क्रोध की सीमा न रही, वह भरी हुई केतली को लाकर उसके सिर पर उंडेल दिया। उसका आधा मुंह जल गया। जीवन- भर उसका मुंह जला रहा। वह आधा हिस्सा काला हो गया। लेकिन सुकरात सिर्फ हंसा। उसके शिष्यों ने पूछा आप हंसते हैं इस पीड़ा में ! उसने कहा नहीं, मैं इसलिए हंसता हूं कि स्त्री का मन हमने कितना छोटा कर दिया है! उसके लिये दर्शन भी, यह दर्शन का ऊहापोह भी ऐसा लगता है जैसे कोई सौतेली पत्नी। उसने मेरे ऊपर नहीं डाली यह चाय, मैं तो सिर्फ निमित्त हूं। अगर दर्शनशास्त्र उसे मिल जाये कहीं तो गर्दन काट ले। दर्शनशास्त्र कहीं मिल नहीं सकता, इसलिए मैं तो सिर्फ बहाना हूं। किसी ने सुकरात से पूछा एक युवक ने कि मैं विवाह करने का सोचता हूं। सोचा ...