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Showing posts with the label #osho

जब कोई छल और दगाबाजी करता है, या जब कोई मुझे वस्तु की तरह उपयोग करता है,ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए ?

👉 प्रश्न: भगवान, जब कोई छल और दगाबाजी करता है, या जब कोई मुझे वस्तु की तरह उपयोग करता है,ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए ? मैं उस व्यक्ति को चोट भी नहीं पहुंचाना चाहती। मन की शांति कैसे मिले? मैं टूट-फूट गई हूं। ओशो : जीवन की उलझनों में दूसरे कभी भी उत्तरदायी नहीं होते।  सारा उत्तरदायित्व अपना होता है। जैसे तुम कहा कि जब कोई मुझसे छल और दगा करता है तो मेरे दिल को चोट पहुंचती है।  थोड़ा सोचो, दिल को चोट किसी के छल और दगा करने से नहीं होती। तुमने चाहा था कि कोई छल और दगा न करे इसलिए चोट होती है। यह तुम्हारी चाह का फल है।और सारी दुनिया तुम्हारी चाह को मानकर चले, यह तुम्हारे हाथ में नहीं।  यह किसी के भी हाथ में नहीं। लेकिन हम यूं ही सोचने के आदी हो गए हैं कि हर चीज का दायित्व दूसरे पर थोप दें। इससे आसानी होती है, राहत मिलती है। राहत मिलती है कि मैं जिम्मेवार नहीं हूं। अब कोई छल कर रहा है इसलिए कष्ट हो रहा है। लेकिन तुमने चाहा ही क्यों कि कोई छल न करे ? और यह हमारे हाथ में कहा है कि हम ऐसी दुनिया बना लें जिसमें छल और कपट न हो ? छल भी होगा, कपट भी होगा। हम इतना जरूर कर सकते...

जब तक तुम्हारे सुख दुख का आधार दूसरा है,ऐसा तुम समझते हो वहां तक तुम अधार्मिक हो !! ओशो !!

  अगर मैं दुखी या सुखी हूं तो मेरी ही वजह से हूं । जब तक तुम्हारे सुख दुख का आधार दूसरा है,ऐसा तुम समझते हो वहां तक तुम अधार्मिक हो !! ओशो!! मनुष्य अपने हृदय की प्रतिध्वनि ही अपने जीवन के सारे अनुभवों में सुनता है। जो तुम्हें बाहर मिलता है, वह तुम्हारे भीतर का ही प्रक्षेपण होता है। बाहर तो केवल पर्दे हैं। तुम अपने को ही उन पर्दों पर, अपनी ही छायाओं को उन पर देखा करते हो।  अगर जीवन में दुख मालूम पड़ता है और चारों ओर दुख की छाया दिखाई पड़ती है, तो तुम्हारे हृदय का ही दुख है। तुम्हारे भीतर दुख है, तो दुख बहार आएगा । तुम्हारे भीतर सुख है तो सुख बाहर आएगा.  अगर मैं दुखी या सुखी हूं तो मेरी ही वजह से हूं । अगर ये सत्य तुम स्वीकार कर लो तो धर्म के जगत में तुम्हारा प्रवेश हो गया । जब तक तुम्हारे सुख दुख का आधार दूसरा है,ऐसा तुम समझते हो वहां तक तुम अधार्मिक हो,या दूसरा तुम्हे सुखी या दुखी कर सकता है, ऐसा मानते हो वहां तक तुम धर्म से बहुत दूर हो, और तब तक तुम्हारे पूजा,अर्चना,प्रार्थना,ध्यान, भजन, शास्त्र, कीर्तन, संध्या सब व्यर्थ है ।अगर जीवन में विषाद दिखाई पड़ता है, तो वह विषाद तु...