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Showing posts with the label Osho

Osho calls it the art of the art of listening !!

 ओशो इसे कहते है,उसे श्रवण की कला !! सच बात तो यह है कि जो सुनने की कला सीख जाता है,उसे बोलना भी आ ही जाता है,स्वत:आता है। कोशिश नहीं करनी पड़ती।  उसमे कला की क्या बात है ? सुनते तो हम सब है,लेकिन सच में हम नहीं  सुन रहे है ? अगर हम सुनते समय विचार कर रहे है,  उसका विश्लेषण कर रहे हैं, उनका बोलना ठीक है की नही वह भी सोच रहे है, फिर हम उसका  बोलना हमारे  विचार के साथ तुलना भी कर रहे हैं! अगर प्रतिकूल है, तो मन में विरोध भी कर रहे है, अगर अनुकूल है तो खुश भी हो रहे है । अगर इतनी चीज एक साथ चल रही है, तो फिर सुनना कहां हुआ ?   ऐसा व्यक्ति धीरे धीरे बहेरा हो जाता है। वह अपने ही विचार को सुन रहा है। लोग पहले "बोलने की कला" सीखते हैं।  इसकी क्लासेज भी चलायी जाती हैं।  हाउ टु स्पीक ? अच्छा हो अगर 'कैसे सुना जाय' इसकी कक्षाएं चलायी जायें।पहले कैसे सुनें,बाद में कैसे बोलें ?  सच बात तो यह है कि जो सुनने की कला सीख जाता है,उसे बोलना भी आ ही जाता है,स्वत:आता है। कोशिश नहीं करनी पड़ती।  मैं केवल सुनूंगा,बोलूंगा नहीं" ऐसा निश्चय करते ही ठहराव आन...

Osho प्रेमी "भट स्वामीजी" हमारे साथ सफ़र में हे,तो भूखें रहने की चिंता नही !!

( Swami Prem Amod) आज के इस मतलब की दुनिया मे एक एक रुपये के हिसाब रखने वाले इंसान,अपने मानवता से दिन बे प्रति दिन रोज़ अपनों से दूर होते जा रहे है। आज हम एक ऐसे ओशो प्रेमी संन्यासी के बारे में बताने जा रहे हे,जिनकी ख़ासियत यह हे,की एक छोटे बच्चे की तरह सरल भी है। जब जब ओशो के ध्यान शिबिर का आयोजन होता हे,तो सभी ओशो प्रेमी संन्यासी लोगों के लिये,हम सब के प्यारे "भट स्वामीजी" अपने साथ 10 से 15 संन्यासी के लिये "पूरनपोली" या अपने घर में बने "फ़नस का पकौड़े" भी बना हर बार अपने साथ लेकर आते है।  कभी कभी तो "भट स्वामीजी" अपने साथ "कलीगड" या "हापुस आम"भी संन्यासी लोगों को खाने के लिये लेकर आते है।  यह सब खाने की चीज ओशो संन्यासी को ट्रैन में सफ़र करते समय "भट स्वामीजी" बड़े प्यार से संन्यासी को खाने को देते है। "भट स्वामीजी" अब बैंक से रिटायर्ड होने के बाद पूरे समय ओशो के बताये हुवे मार्ग पर चलने की एक बेहतरीन कोशिश कर रहे है। "भट स्वामीजी"को सदा ईश्वर स्वस्थ रखें ! हम सब को भी उनके साथ मस्...

मनुष्य-जीवन का सारा उपक्रम, सारा श्रम, सारी दौड़, सारा संघर्ष अंतिम रूप से प्रेम पर ही केंद्रित है !! Osho !!

जीवन भर प्रयास करते हैं ? सारे प्रयास प्रेम के आसपास ही होते हैं। युद्ध प्रेम के आसपास लड़े जाते हैं। धन प्रेम के आसपास इकट्ठा किया जाता है। यश की सीढ़ियां प्रेम के लिए पार की जाती हैं। संन्यास प्रेम के लिए लिया जाता है। घर-द्वार प्रेम के लिए बसाये जाते हैं और प्रेम के लिए छोड़े जाते हैं। जीवन का समस्त क्रम प्रेम की गंगोत्री से निकलता है। जो लोग महत्वाकांक्षा की यात्रा करते हैं, पदों की यात्रा करते हैं, यश की कामना करते हैं, क्या आपको पता है, वे सारे लोग यश के माध्यम से जो प्रेम से नहीं मिला है, उसे पा लेने की कोशिश करते हैं! जो लोग धन की तिजोरियां भरते चले जाते हैं, अंबार लगाते जाते हैं, क्या आपको पता है, जो प्रेम से नहीं मिला, वह पैसे के संग्रह से पूरा करना चाहते हैं! जो लोग बड़े युद्ध करते हैं और बड़े राज्य जीतते हैं, क्या आपको पता है, जिसे वे प्रेम में नहीं जीत सके, उसे भूमि जीतकर पूरा करना चाहते हैं! शायद आपको खयाल में न हो, लेकिन मनुष्य-जीवन का सारा उपक्रम, सारा श्रम, सारी दौड़, सारा संघर्ष अंतिम रूप से प्रेम पर ही केंद्रित है। लेकिन यह प्रेम की अभीप्सा क्या है? पहले इसे हम समझें...

एक गहन भ्रांति हम भीतर पालते हैं कि सदा कोई और मरता है। मैं थोड़े ही मरता हूं, सदा कोई और मरता है !! Osho !!

सुना है, एक पुरानी तिब्बती कथा है कि दो उल्लू एक वृक्ष पर आ कर बैठे। एक ने सांप अपने मुंह में पकड़ रूखा था। भोजन था उनका, सुबह के नाश्ते की तैयारी थी।  दूसरा एक चूहा पकड़ लाया था। दोनों जैसे ही बैठे वृक्ष पर पास पास आ कर एक के मुंह में सांप, एक के मुंह में चूहा। सांप ने चूहे को देखा तो वह यह भूल ही गया कि वह उल्लू के मुंह में है और मौत के करीब है। चूहे को देख कर उसके मुंह में रसधार बहने लगी। वह भूल ही गया कि मौत के मुंह में है। उसको अपनी जीवेषणा ने पकड़ लिया। और चूहे ने जैसे ही देखा सांप को, वह भयभीत हो गया, वह कंपने लगा। ऐसे मौत के मुंह में बैठा है, मगर सांप को देख कर कंपने लगा। वे दोनों उल्लू बड़े हैरान हुए। एक उल्लू ने दूसरे उल्लू से पूछा कि भाई, इसका कुछ राज समझे? दूसरे ने कहा, बिलकुल समझ में आया।  जीभ की, रस की, स्वाद की इच्छा इतनी प्रबल है कि सामने मृत्यु खड़ी हो तो भी दिखाई नहीं पड़ती। और यह भी समझ में आया कि भय मौत से भी बड़ा भय है।  मौत सामने खड़ी है, उससे यह भयभीत नहीं है चूहा; लेकिन भय से भयभीत है कि कहीं सांप हमला न कर दे।'मौत से हम भयभीत नहीं हैं, हम भय से ज्यादा भयभ...

लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, कुछ आशीर्वाद दें। जीवन में बड़ी निराशा है। आशा का दीया जला दें। मैं उनसे कहता हूं, तुम गलत जगह आ गए। यहां तो आशा के दीये बुझाए जाते हैं!! Osho !!

लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, कुछ आशीर्वाद दें। जीवन में बड़ी निराशा है। आशा का दीया जला दें। मैं उनसे कहता हूं, तुम गलत जगह आ गए। यहां तो आशा के दीये बुझाए जाते हैं। तुम इसे ध्यान रखना, यह सदगुरू की पहचान है-जो तुमसे आशा छीन ले; जो तुमसे संकल्प छीन ले। यह सदगुरु की पहचान है-जो तुम्हें मिटा दे। तुम भला किसी कारण से उसके पास आए हो, वह तुम्हारी चिंता ही न करे। उसके लिए तो आत्यंतिक बात ही महत्वपूर्ण है। वह तो तुम्हारे भीतर मोक्ष को लाना चाहता है। और स्वभावतः तुम कैसे मोक्ष की कामना कर सकते हो ? संसार को ही तुमने जाना है। वहां भी सफलता नहीं जानी। किसने जानी! सिकंदर भी असफल होता है। संसार में असफलता ही हाथ लगती है। तो तुम वही सफलता पाने के लिए आ गए हो अगर, तो केवल असदगुरु  से ही तुम्हारा मेल हो पाएगा, जहां गंडा-ताबीज मिलता हो, मदारीगिरी से भभूत बांटी जाती हो, जहां तुम्हें इस बात का भरोसा मिलता हो कि ठीक, यहां कुछ चमत्कार हो सकता है; जहां तुम्हारा मरता-बुझता अहंकार प्रज्वलित हो उठे; जहां कोई तुम्हारी बुझती ज्योति को उकसा दे। मगर वह ज्योति संसार की है। वही तो नरक की ज्योति है। वही तो...

मृत्यु का भय !! क्योंकि अब जिंदगी मौत की तरफ चलनी शुरू हो गयी !! Osho !!

मृत्यु का भय !! क्योंकि अब जिंदगी मौत की तरफ चलनी शुरू हो गयी !! जैसे ही व्यक्ति की जिंदगी ढलनी शुरू होती है,पैंतीस साल तक उम्र चढ़ती है , उसके बाद उम्र ढलनी शुरू हो जाती है ।  तो हो सकता है पैंतीस साल तक ध्यान की कोई जरूरत मालूम न पडे़ , क्योंकि आदमी बाडी-ओरिएन्टेड है, अभी चढ़ रहा है शरीर । अभी हो सकता है सब बीमारियां शरीर की हों । लेकिन पैंतीस साल के बाद बीमारियां नया रुख लेंगी क्योंकि अब जिंदगी मौत की तरफ चलनी शुरू हो गयी । और जब जिंदगी बढ़ती है तो बाहर की तरफ फैलती है और जब आदमी मरता है तो भीतर की तरफ सिकुड़ता है । बुढा़पा भीतर की तरफ सिकुड़ जाता है । सच तो यह है कि बूढ़े आदमियों की सारी बीमारियों में बहुत गहरे में मृत्यु होती है । आमतौर पर लोग कहते हैं कि फलां आदमी बीमारी के कारण मर गया। मैं मानता हूं, इस से ज्यादा उचित होगा कि फलां आदमी मरने के कारण बीमार हो गया । असल में मरने की संभावना हजार तरह की बीमारियों के लिए वल्नरेबिलिटी, पैदा कर देती है । जैसा मुझे लगता है कि मैं मर जाऊंगा,मेरे सब द्वार खुल जाते हैं बीमारियों के लिए , मैं उनको पकड़ लेता हूं । अगर एक आदमी को पक्का हो ...

हिंदुस्तान एक हजार साल क्यों गुलाम रहा ? हिंदुस्तान कमजोर था ? हिंदुस्तान की कम संख्या थी ?

हिंदुस्तान एक हजार साल गुलाम रहा। हमने कोई पाठ नहीं सीखा। हमने क्या पाठ सीखा कि हिंदुस्तान क्यों गुलाम रहा? हिंदुस्तान से पूछो कि तुमने एक हजार साल की गुलामी से पाठ क्या सीखा? तो आप हैरान होंगे, जो पाठ सीखना था वह हिंदुस्तान ने सीखा ही नहीं। क्योंकि वह जो बातें कर रहा है, वे बताती हैं कि वह उन्हीं बातों को फिर दोहरा रहा है जिनकी वजह से वह एक हजार साल गुलाम रहा। हिंदुस्तान एक हजार साल क्यों गुलाम रहा? हिंदुस्तान कमजोर था? हिंदुस्तान कम संख्या थी? हिंदुस्तान में जो दुश्मन आए, वे बहुत बड़ी तादाद में थे? हिंदुस्तान की जमीन पर आकर दुश्मनों ने हराया। हम तो कहीं लड़ने नहीं गए। तो हमारे पास तो बड़ी संख्या थी, दुश्मन कितना आ सकता था! लेकिन बात क्या थी? एक बात थी कि हिंदुस्तान टेक्नॉलॉजी में हमेशा पीछे रहा। इसके सिवाय हिंदुस्तान की गुलामी का कोई भी कारण नहीं। अगर कोई कहे तो बेईमान है। जब हिंदुस्तान पर सिकंदर ने हमला किया, तो सिकंदर तो घोड़ों पर सवार आया और पोरस हाथियों पर लड़ने गया। पोरस सिकंदर से जरा भी कमजोर आदमी नहीं था। बल्कि अगर दोनों अकेले सामने मैदान में लड़ते, तो सिकंदर दो कौड़ी का साबित ...

गुरजिएफ निरंतर अपने शिष्यों से कहा करता था कि जिस व्यक्ति ने ध्यान नहीं किया, वह कुत्ते की मौत मरेगा !! Osho !!

         ॥ ध्यान नहीं करोगे तो कुत्ते की मौत मरोगे ॥ हम बड़े बेचैन हो जाते हैं—महामारी फैल जाए, लोग मरने लगें, तो हम बड़े बेचैन हो जाते हैं। और एक बात पर हम कभी ध्यान ही नहीं देते कि सभी को मरना है—महामारी फैले कि न फैले। इस जगत में सौ प्रतिशत लोग मरते हैं। खयाल किया? ऐसा नहीं कि निन्यानबे प्रतिशत लोग मरते हैं, कि अट्ठानबे प्रतिशत लोग मरते हैं, कि अमरीका में कम मरते हैं और भारत में ज्यादा मरते हैं। यहां सौ प्रतिशत लोग मरते हैं—जितने बच्चे पैदा होते हैं उतने ही आदमी यहां मरते हैं। महामारी तो फैली ही हुई है। महामारी का और क्या अर्थ होता है? जहां बचने का किसी का भी कोई उपाय नहीं। जहां कोई औषधि काम न आएगी। साधारण बीमारी को हम कहते हैं—जहां औषधि काम आ जाए, तो उसको कहते हैं बीमारी, रोग। महामारी कहते हैं जहां कोई औषधि काम न आए। जहां हमारे सब उपाय टूट जाएं और मृत्यु अंततः जीते। महामारी तो फैली हुई है, सदा से फैली हुई है। इस पृथ्वी पर हम मरघट में ही खड़े हैं। यहां मरने के अतिरिक्त और कुछ होने वाला नहीं है। देर —अबेर घटना घटेगी। थोड़े समय का अंतर होगा। गुरजिएफ निरंतर ...

होली की दिन कोई कपड़े पर रंग डाले, तो मन में दुःख होता है ! जोकि आप को ख़ुश होना चाहिये आप को किसी ने उस लायक़ समजा !! Osho !!

आज हम भारत के समाज को गरीब कह सकते हैं, हालांकि बिड़ला भी मिलेंगे। लेकिन बिड़ला के कारण भारत का समाज अमीर नहीं हो सकता। सुदामा के कारण उस दिन का समाज गरीब नहीं हो सकता। हिंदुस्तान के इतने गरीब समाज में अमीर तो मिलेगा ही। पश्चिम के, अमरीका के संपन्न समाज में भी गरीब तो मिलेगा ही। यह सवाल नहीं है। सवाल यह है कि बहुजन, समाज का पूरा का पूरा ढांचा संपन्न था। जो उस दिन जीवन की सुविधा थी, वह अधिकतम लोगों को उपलब्ध थी। आज अमरीका में जो जीवन की सुविधा है, वह अधिकतम लोगों को उपलब्ध है। संपन्न समाज में उत्सव प्रवेश कर सकता है, गरीब समाज में उत्सव प्रवेश नहीं कर सकता। गरीब समाज में उत्सव धीरे-धीरे विदा होता जाता है। या कि उत्सव भी फिर एक काम बन जाता है। गरीब समाज उत्सव भी मनाता है, दीवाली भी मनाता है, तो कर्ज लेकर मनाता है। होली भी खेलता है तो पिछले वर्ष के पुराने कपड़े बचाकर रखता है। होली के दिन फटे-पुराने कपड़ों को सिलाकर निकल आता है। अब जब होली ही खेलनी है तो फटे-पुराने कपड़ों से खेली जा सकती है। तो मत ही खेलो। होली का मतलब ही यह है कि कपड़े इतने ज्यादा हैं कि रंग में भिगोए जा सकते हैं...

असली गुरु वह है जो आपकी समस्याएं जरा भी अपने सिर पर नहीं लेता,और आपको इस स्थिति में छोड़ता है कि आप इस योग्य बन जाएं कि अपनी समस्याएं हल कर लें !! Osho !!

स्वभाव को उपलब्ध व्यक्ति किसी को अनुयायी बनाने के लिए उत्सुक नहीं होता; कोई पीछे चले, इसमें भी उत्सुक नहीं होता। कोई उसकी माने, इसमें भी उत्सुक नहीं होता। स्वभाव को उपलब्ध व्यक्ति तो अपने आनंद में लीन होता है।* 🔥 सब नेता अनुयायियों की बुद्धि को नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं। क्योंकि जब भी कोई नेता बुरी तरह छा जाता है आपके भय और लोभ का शोषण करके तो वह आपकी चेतना को नुकसान पहुंचाता है। वह आपको सचेत नहीं करता; वह आपको बेहोश करता है। वह असल में आपसे यह कहता है कि फिक्र मत करो, तुम्हें करने की कोई जरूरत नहीं; तुम सब मुझ पर छोड़ दो, मैं कर लूंगा। और आप डरे हुए होते हैं, इसलिए लगता है कि ठीक है, कोई और सम्हाल ले सारी जिम्मेवारी तो अच्छा है। नेता जिम्मेवारी सम्हाल लेता है। कोई नेता जिम्मेवारी पूरी नहीं कर पाता; लेकिन सम्हाल लेता है। सम्हालने से वह बड़ा हो जाता है; उसके अहंकार की तृप्ति हो जाती है। लेकिन वह हानि पहुंचाता है। क्योंकि लोगों का चैतन्य बढ़ना चाहिए, घटना नहीं चाहिए। उनका दायित्व बढ़ना चाहिए, घटना नहीं चाहिए। उनका होश बढ़ना चाहिए, घटना नहीं चाहिए। और अपनी समस्याओं को खुद हल करने की ...

जब क्रोध आ जाये तो उस आदमी को धन्यवाद दें, जिसने क्रोध पैदा करवा दिया, क्योंकि उसकी कृपा, उसने आत्म-निरीक्षण का एक मौका दिया !! Osho !!

बुद्ध ने कहा है कि जब मैंने जाना तो मैंने पाया है कि अदभुत हैं वे लोग, जो दूसरों की भूल पर क्रोध करते हैं! क्यों? तो बुद्ध ने कहा कि अदभुत इसलिए कि भूल दूसरा करता है, दंड वह अपने को देता है। गाली मैं आपको दूं और क्रोधित आप होंगे। दंड कौन भोग रहा है ? दंड आप भोग रहे हैं, गाली मैंने दी! क्रोध में जलते हम हैं, राख हम होते हैं, लेकिन ध्यान वहां नहीं होता! जब क्रोध आ जाये तो उस आदमी को धन्यवाद दें, जिसने क्रोध पैदा करवा दिया, क्योंकि उसकी कृपा, उसने आत्म-निरीक्षण का एक मौका दिया; भीतर आपको जानने का एक अवसर दिया। उसको फौरन धन्यवाद दें कि मित्र धन्यवाद, और अब मैं जाता हूं, थोड़ा इस पर ध्यान करके वापस आकर बात करूंगा। द्वार बंद कर लें और देखें कि भीतर क्रोध उठ गया है। हाथ-पैर कसते हों, कसने दें; क्योंकि हाथ-पैर कसेंगे। हो सकता है कि क्रोध में, अंधेरे में, हवा में, घूंसे चलें; चलने दें। द्वार बंद कर दें और देखें कि क्या-क्या होता है। अपनी पूरी पागल स्थिति को जानें और पागलपन को पूरा प्रकट हो जाने दें अपने सामने। तब आप पहली बार अनुभव करेंगे कि क्या है यह क्रोध।  जब आप इस पागलपन की स्थ...

ध्यानी का गुस्सा अलग ही किस्म का होता है, वो किसी को हानि पहुँचाने के लिये, किसी को चोट करने या अपमान करने के लिये नहीं होता !! Osho !!

किसने कहा कि ध्यानी को गुस्सा नहीं करना चाहिये ? भगवान् राम भी समुद्र की हरकत पर गुस्से में आकर धनुष बाण उठा लेते हैं और हमेशा मुस्कराते रहने वाले भगवान् कृष्ण भी महाभारत के युद्ध में रथ का पहिया लेकर दौड़ पड़ते हैं ध्यानी का गुस्सा अलग ही किस्म का होता है, वो किसी को हानि पहुँचाने के लिये, किसी को चोट करने या अपमान करने के लिये नहीं होता. ध्यानी एक बहुत जीवंत व्यक्ति है तो उसका गुस्सा भी जीवंत होता है ध्यानी व्यक्ति कोई घोंघा नहीं होता जो बिना आवाज के रेंगता रहे और जो चाहे उसे कुचल कर चला जाये ध्यानी व्यक्ति सिंह की तरह होता है। अकेला, अपने में मगन, दूसरों से बेपरवाह, लेकिन जरूरत हो तो वो दहाड़ता भी है और प्रतिक्रिया भी करता है...। वो किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता, किसी को परेशान नहीं करता, लेकिन यदि कोई उसकी निजता पर आक्रमण करे तो ध्यानी सिंह की तरह व्यवहार कर सकता है...।                                                         ...

!! प्रेम क्या है !!

                             !! प्रेम क्या है !! एक "शब्द" अगर इसे लोगो से पूछा जाता तो जबाब क्या होता... 👇 "प्रेम क्या है..?" लओत्सो---------- प्रेम एक ध्यान है जिस में केन्द्रित हो जाओ.! ● "प्रेम क्या है...?" गौतम बुध--------- प्रेम एक साक्षी भाव है दर्पण है..! ● "प्रेम क्या है...?" सुकरात----------- प्रेम द्वार है नए जीवन में जाने का.! ● "प्रेम क्या है...?" हिटलर------------ प्रेम एक एसा युद्ध है जो भाव से जीता जाये.! ● "प्रेम क्या है...?" कृष्ण------------- प्रेम तो समर्पण है भक्ति है रम जाओ..! ● "प्रेम क्या है...?" ज़ीज़स------------ प्रेम एक रास्ता है जो सुख की अनुभूति देता है..! ● "प्रेम क्या है...?" नीत्से------------- प्रेम वो रस है जो नीरस है पर मीठा लगता है..! ● "प्रेम क्या है...?" मीरा ------------- प्रेम तो गीत है मधुर आत्मा से गाये जाओ.! ● "प्रेम क्या है...?" फ्रायड------------ प्रेम वो स्थति है जिस में अहम् मिट ज...

Happy Birthday My Dear Osho !! 11 Decmber !!

"केवल वो लोग जो कुछ भी नहीं बनने के लिए तैयार हैं प्रेम कर सकते हैं।" "यहां कोई भी आपका सपना पूरा करने के लिए नहीं है। हर कोई अपनी तकदीर और अपनी हकीकत बनाने में लगा है।" "अगर आप सच देखना चाहते हैं तो ना सहमती में और ना असहमति में राय रखिए।" "कोई चुनाव मत करिए, जीवन को ऐसे अपनाइए जैसे वो अपनी समग्रता में है।" "जब प्यार और नफरत दोनों ही ना हो तो हर चीज साफ और स्पष्ट हो जाती है।" "जीवन ठहराव और गति के बीच का संतुलन है।"

अंधेरा कितना भी हो उसकी चिंता मत करो !! Osho !!

अंधेरा कितना ही हो, चिंता न करो। अंधेरे का कोई अस्तित्व ही नहीं होता। अंधेरा कम और ज्यादा थोड़े ही होता है; पुराना-नया थोड़े ही होता है। हजार साल पुराना अंधेरा भी, अभी दीया जलाओ और मिट जाएगा। और घड़ी भर पुराना अंधेरा भी, अभी दीया जलाओ और मिट जाएगा। अंधेरा अमावस की रात का हो तो मिट जाएगा। और अंधेरा साधारण हो तो मिट जाएगा। अंधेरे का कोई बल नहीं होता अंधेरा दिखाई बहुत पड़ता है, मगर बहुत निर्बल है, बहुत नपुंसक है। ज्योति बड़ी छोटी होती है, लेकिन बड़ी शक्तिशाली है। क्योंकि ज्योति परमात्मा का अंश है; ज्योति में परमात्मा स्थित है। अंधेरा तो सिर्फ नकार है, अभाव है। अंधेरा है नहीं। इसीलिए तो अंधेरे के साथ तुम सीधा कुछ करना चाहो तो नहीं कर सकते। न तो अंधेरा ला सकते हो, न हटा सकते हो। दीया जला लो, अंधेरा चला गया। दीया बुझा दो, अंधेरा आ गया। सच तो यह है कहना कि अंधेरा आ गया, चला गया-ठीक नहीं; भाषा की भूल है। अंधेरा न तो है, न आ सकता, न जा सकता। जब रोशनी नहीं होती है तो उसके अभाव का नाम अंधेरा है। जब रोशनी होती है तो उसके भाव का नाम अंधेरे का न होना है। अंधेरा कितना ही हो और कितना ही पुराना ह...

अगर जीतना है मन को, तो पहला नियम यह है कि लड़ना मत !! Osho !!

ध्यान के समय मन एकाग्र नहीं होता, तो क्या करूं? नहीं; पहली तो यह बात आपके खयाल में नहीं आयी कि एकाग्रता ध्यान नहीं है। मैंने कभी एकाग्रता करने को नहीं कहा। ध्यान बहुत अलग बात है। साधारणत: तो यही समझा जाता है कि एकाग्रता ध्यान है। एकाग्रता ध्यान नहीं है। क्योंकि एकाग्रता में तनाव है। एकाग्रता का मतलब यह है कि सब जगह से छोड्कर एक जगह मन को जबरदस्ती रोकना। एकाग्रता सदा जबरदस्ती है; इसमें कोएर्सन है। क्योंकि मन तो भागता है, और आप कहते हैं : 'नहीं भागने देंगे ' तो आप और मन के बीच एक लडाई शुरू हो जाती है। और जहां लडाई है, वहां ध्यान कभी नहीं होगा। क्योंकि लडाई ही तो उपद्रव है, हमारे पूरे व्यक्तित्व की। कि वह पूरे वक्त कॉनफ्लिक्ट है, द्वंद्व है, संघर्ष है। और मन को ऐसी अवस्था में छोडना है, जहां कोई कॉनफ्लिक्ट ही नहीं है, तब ध्यान में आप जा सकते हैं। मन को छोडना है निद्वंद्व। अगर द्वंद्व किया, तो कभी ध्यान में नहीं जा सकते। और अगर द्वंद्व किया, तो परेशानी बढ़  जाने वाली है। क्योंकि हारेंगे, दुखी होंगे। जोर से दमन करेंगे; हारेंगे, दुखी होंगे और चित्त विक्षिप्त होता चला जायेगा। बजाय...

न तो प्रेयसी दगाबाज है, न प्रेमी दगाबाज है, प्रेम दगाबाज है !! Osho !!

तुम एक प्रेम में पड़ गए।  तुमने एक स्त्री को चाहा,  एक पुरुष को चाहा, खूब चाहा। जब भी तुम किसी को चाहते हो, तुम चाहते हो तुम्हारी चाह शाश्वत हो जाए। जिसे तुमने प्रेम किया वह प्रेम शाश्वत हो जाए। यह हो नहीं सकता। यह वस्तुओं का स्वभाव नहीं।  तुम भटकोगे। तुम रोओगे। तुम तड़पोगे । तुमने अपने विषाद के बीज बो लिए। तुमने अपनी आकांक्षा में ही अपने जीवन में जहर डाल लिया। यह टिकने वाला नहीं है। कुछ भी नहीं टिकता यहां। यहां सब बह जाता है। आया और गया। अब तुमने यह जो आकांक्षा की है कि शाश्वत हो जाए, सदासदा के लिए हो जाए; यह प्रेम जो हुआ, कभी न टूटे, अटूट हो; यह श्रृंखला बनी ही रहे, यह धार कभी क्षीण न हो, यह सरिता बहती ही रहे—बस, अब तुम अड़चन में पड़े। आकांक्षा शाश्वत की और प्रेम क्षणभंगुर का; अब बेचैनी होगी, अब संताप होगा। या तो  प्रेम मर जाएगा  या प्रेमी मरेगा। कुछ न कुछ होगा। कुछ न कुछ विध्‍न पड़ेगा। कुछ न कुछ बाधा आएगी। ऐसा ही समझो,  हवा का एक झोंका  आया और तुमने कहा, सदा आता रहे। तुम्हारी आकांक्षा से तो हवा के झोंके नहीं चलते। वसंत में फूल खिले तो तुमने कहा...

कुछ और करने की जरूरत नहीं है। इस संसार में प्रतीक्षा से शांत होकर बैठ जाना काफी है। सब स्वच्छ हो जाता है अपने से !! Osho !!

लाओत्से के  इस सूत्र को हम समझने की कोशिश करें। "इस अशुद्धि से भरे संसार में कौन विश्रांति को उपलब्ध होता है? जो ठहर कर अशुद्धियों को बह जाने देता है।" इस संबंध में बुद्ध की एक कहानी मुझे सदा प्रिय रही है, वह मैं आपसे कहूं। यह सूत्र उस पूरी कथा का शीर्षक है। "हू कैन फाइंड रिपोज इन ए मडी वर्ल्ड? बाई लाइंग स्टिल इट बिकम्स क्लियर।' बुद्ध एक पहाड़ के पास से गुजरते हैं। धूप है तेज। गर्मी के दिन। उन्हें प्यास लगी। आनंद से उन्होंने कहा, आनंद, तू पीछे लौट कर जा; अभी-अभी हमने एक नाला पार किया है, तू पानी भर ला! आनंद भिक्षा-पात्र लेकर पीछे गया। कोई दो फर्लांग दूर वह नाला था। जब बुद्ध और आनंद वहां से निकले थे, तो नाला बड़ा स्वच्छ था। जलधार धूप में मोतियों जैसी चमकती थी। छिछला था नाला; कंकड़-पत्थरों पर शोर-गुल की आवाज करता बहता था। पहाड़ी नाला था; स्वच्छ, ताजा जल उसमें था। लेकिन जब आनंद वापस पहुंचा, तो देखा कि कुछ बैलगाड़ियां उसके सामने ही उसमें से गुजर रही हैं और नाला गंदा हो गया। धूल और कीचड़ ऊपर उठ आई। सूखे पत्ते दबे जो जमीन में पड़े थे, वे फैल गए। सारा पानी गंदा हो गया;...

एक सिंह को एक गधे ने चुनौती दे दी कि मुझसे निपट ले। सिंह चुपचाप सरक गया !! Osho !!

                          "अशरण हो जाओ" एक सिंह को एक गधे ने चुनौती दे दी कि मुझसे निपट ले। सिंह चुपचाप सरक गया। एक लोमड़ी छुपी देखती थी, उसने कहा कि बात क्या है? एक गधे ने चुनौती दी और आप जा रहे हैं? सिंह ने कहा, मामला ऐसा है, गधे की चुनौती स्वीकार करने का मतलब मैं भी गधा। वह तो गधा है ही। उसकी चुनौती से ही जाहिर हो रहा है। किसको चुनौती दे रहा है? पागल हुआ है, मरने फिर रहा है। फिर दूसरी बात भी है कि गधे की चुनौती मान कर उससे लड़ना अपने को नीचे गिराना है। गधे की चुनौती को मानने का मतलब ही यह होता है कि मैं भी उसी तल का हूं। जीत तो जाऊंगा निश्चित ही, इसमें कोई मामला ही नहीं है। जीतने में कोई अड़चन नहीं है। एक झपट्टे में इसका सफाया हो जाएगा।  मैं जीत जाऊंगा तो भी प्रशंसा थोड़े ही होगी कुछ! लोग यही कहेंगे क्या जीते, गधे से जीते! और कहीं भूल चूक यह गधा जीत गया तो सदा सदा के लिए बदनामी हो जाएगी, इसलिए भागा जा रहा हूं। इसलिए चुपचाप सरका जा रहा हूं कि इस.. .यह चुनौती स्वीकार करने जैसी नहीं है। मैं सिंह हूं यह स्मरण रख...

मित्रता के संबंध नाभि के संबंध हैं, तीन तरह के संबंध मनुष्य के जीवन में होते हैं !! Osho !!

मित्रता के संबंध नाभि के संबंध हैं, तीन तरह के संबंध मनुष्य के जीवन में होते हैं। बुद्धि के संबंध, जो बहुत गहरे नहीं हो सकते। गुरु और शिष्य में ऐसी बुद्धि के संबंध होते हैं। प्रेम के संबंध, जो बुद्धि से ज्यादा गहरे होते हैं। हृदय के संबंध, मां—बेटे में, भाई— भाई में, पति—पत्नी में इसी तरह के संबंध होते हैं, जो हृदय से उठते हैं। और इनसे भी गहरे संबंध होते हैं, जो नाभि से उठते हैं नाभि से जो संबंध उठते हैं, उन्हीं को मैं मित्रता कहता हूं। वे प्रेम से भी ज्यादा गहरे होते हैं। प्रेम टूट सकता है, मित्रता कभी भी नहीं टूटती है। जिसे हम प्रेम करते हैं, उसे कल हम घृणा भी कर सकते हैं। लेकिन जो मित्र है, वह कभी भी शत्रु नहीं हो सकता है। और हो जाए, तो जानना चाहिए कि मित्रता नहीं थी। मित्रता के संबंध नाभि के संबंध हैं, जो और भी अपरिचित गहरे लोक से संबंधित हैं। इसीलिए बुद्ध ने नहीं कहा लोगों से कि तुम एक—दूसरे को प्रेम करो। बुद्ध ने कहा मैत्री। यह अकारण नहीं था। बुद्ध ने कहा कि तुम्हारे जीवन में मैत्री होनी चाहिए। किसी ने बुद्ध को पूछा भी कि आप प्रेम क्यों नहीं...