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Showing posts with the label ओशो

गुरु का अर्थ होता है 'गु"अंधकार' और 'रु' का अर्थ होता है जो आपके जीवन से उस अंधकार को मिटाता है !

  ओशो ने गुरु पूर्णिमा का बहुत ही अच्छा महत्व बताया है. उन्होंने बताया है गुरु शब्द दो अक्षरों से बना है 'गु' और 'रु'. जी हाँ, उन्होंने बताया ये दोनों अक्षर संस्कृत से लिए गये हैं जिसमें 'गु' का अर्थ होता है 'अंधकार' और 'रु' का अर्थ होता है जो आपके जीवन से उस अंधकार को मिटाता है उसे गुरु कहा गया है. इतना ही नहीं उन्होंने ये भी कहा है कि 'गुरु है ।पूर्णिमा का चांद.' वाकई उन्होंने गुरु के मायने हमारे लिए भी बदले हैं।

मेरी तैयारी है भीतर ले चलने की, तुम्हारी तैयारी हो तो आ जाओ !! Osho !!

मैं आपको कहना चाहता हूं कि जो लोग कहते हैं कि यह आम आदमी ने दुनिया का चरित्र बिगाड़ा है, वे गलत कहते हैं। आम आदमी हमेशा ऐसा रहा है। दुनिया का चरित्र ऊंचा था, कुछ थोड़े-से लोगों के आत्म-अनुभव की वजह से। आम आदमी हमेशा ऐसा था। आम आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ गया है। आम आदमी के बीच कुछ लोग थे जीवंत, और उसकी चेतना को सदा ऊपर उठाते रहे, सदा ऊपर खींचते रहे। उनकी मौजूदगी, उनकी प्रेजेंस, कैटेलेटिक एजेंट का काम करती रही है और आदमी के जीवन को ऊपर खींचती रही है। और अगर आज दुनिया में आदमी का चरित्र इतना नीचा है, तो जिम्मेवार हैं साधु, जिम्मेवार हैं महात्मा, जिम्मेवार हैं धर्म की बातें करने वाले झूठे लोग। आम आदमी जिम्मेवार नहीं है। उसकी कभी कोई रिस्पांसबिलिटी नहीं थी। पहले भी नहीं थी, आज भी नहीं है। तो अगर दुनिया को बदलना हो, तो इस बकवास को छोड़ दें कि हम एक-एक आदमी का चरित्र सुधारेंगे, कि हम एक-एक आदमी को नैतिक शिक्षा का पाठ देंगे। अगर दुनिया को बदलना चाहते हैं, तो कुछ थोड़े-से लोगों को अत्यंत इंटेंस इनर एक्सपेरिमेंट में से गुजरना पड़ेगा। जो लोग बहुत भीतरी प्रयोग से गुजरने को राजी हैं। ज्यादा...

'वकील' शब्द सूफियों का है,बडी बुरी तरह विकृत हुआ। वकील के जो मौलिक अर्थ हैं, वे "जो परमात्मा के सामने तुम्हारा गवाह होगा" !!

वकील तो हम उसी को कहते हैं इस दुनिया में, जो झूठ को सच करे, सच को झूठ करे !! 'वकील' शब्द सूफियों का है,बडी बुरी तरह विकृत हुआ। वकील के जो मौलिक अर्थ हैं, वे हैं. जो परमात्मा के सामने तुम्हारा गवाह होगा कि तुम सच हो। मुहम्मद वकील हैं। वे परमात्मा के सामने गवाही देंगे कि ही, यह आदमी सच है। लेकिन फिर वकील शब्द का तो बड़ा अजीब पतन हुआ। अब तो तुम झूठ हो या सच, तुम्हारे लिए जो गवाही दे सकता है और प्रमाण जुटा सकता है कि तुम सच हो,वस्तुत तुम जितने झूठे हो, उतना ही जो प्रमाण जुटा सके कि तुम सच हो वह उतना ही बड़ा वकील। अगर तुम सच हो और वकील तुम्हें सच सिद्ध करे, तो उसकी वकालत का क्या मूल्य? कौन उसको वकील कहेगा ? वकील तो हम उसी को कहते हैं इस दुनिया में, जो झूठ को सच करे, सच को झूठ करे। सूफियों का शब्द था वकील और वकील का अर्थ था : गुरु तुम्हारा वकील होगा। वह तुम्हें परमात्मा के सामने प्रमाण देगा कि मेरी गवाही सुनो, यह आदमी सच है। जीसस ने कहा है अपने अनुयायियों से कि 'तुम घबड़ाना मत, आखिरी क्षण में मैं तुम्हारा गवाह रहूंगा। मेरी गवाही का भरोसा रखना। 'वह वकालत है। लेकिन साधारणत: ...

अगर दूसरे को धोखा देने निकले, असफल हुए तो भी असफल होओगे !! ओशो !!

                         तीन सूत्र खयाल रख लें। एक, अगर दूसरे को धोखा देने निकले-असफल हुए तो भी असफल होओगे; अगर पूरे सफल हुए तो भी असफल होओगे। दूसरा, बुद्धिमानी का उपयोग दूसरे को गङ्ढे में गिराने के लिये मत करना। दूसरे के लिये गङ्ढा मत खोदना। क्योंकि आखिर में पाओगे कि अपनी ही कब्र खुद गई। और तीसरी बात, संपदा जो दूसरे के विनाश से मिलती हो, दूसरे की मृत्यु से आती हो, या दूसरे के जीवन से आती हो, दूसरे पर निर्भर हो, उसे संपदा मत मानना। अन्यथा जिस दिन तुम सफल होओगे, उस दिन आत्महत्या के अतिरिक्त कोई मार्ग न बचेगा। उसको खोजना जो तुम्हारा है और सदा तुम्हारा है; स्वतंत्र है; किसी पर निर्भर नहीं है, ताकि तुम मालिक हो सको। तुम उसी दिन आत्मवान बनोगे, जिस दिन तुम्हारा दीया बिन बाती बिन तेल जलेगा। न तुम तेल मांगने जाओगे, न तुम बाती मांगने जाओगे। सब खो जाये--थोड़ा सोचना--सब खो जाये, तो भी तुम्हारे होने में रत्ती भर फर्क न पड़े--बस, तुम जिन हो गये। तुम बुद्ध हो गये। वह जो बुद्ध बोधिवृक्ष के नीचे बैठे हैं, उनको हमने परमात्मा कहा है,...

कृष्ण तीन शब्दों का प्रयोग करते हैं-अकर्म, कर्म और विकर्म !

कृष्ण तीन शब्दों का प्रयोग करते हैं-अकर्म, कर्म और विकर्म। कर्म वे उसे कहते हैं, सिर्फ़ करने को ही कर्म नहीं कहते। अगर करने को ही कर्म कहें, तब तो अकर्म में कोई जा ही नहीं सकता। फिर तो अकर्म हो ही नहीं सकता। करने को कृष्ण ऐसा कर्म करते हैं जिसमें कर्ता का भाव है। जिसमें करने वाले को यह ख़याल है कि मैं कर रहा हूँ। मैं कर्ता हूँ। ‘इगोसेंट्रिक’ कर्म को वे कर्म कहते हैं। ऐसे कर्म को, जिसमें कर्त्ता मौजूद है। जिसमें कर्त्ता यह ख़याल करके ही कर रहा है कि करनेवाला मैं हूँ, जब तक मैं करनेवाला हूँ तब तक हम जो भी करेंगे, वह कर्म है। अगर मैं संन्यास ले रहा हूँ, तो संन्यास एक कर्म हो गया। अगर मैं त्याग कर रहा हूँ, तो त्याग एक कर्म हो गया। अकर्म का मतलब ठीक उलटा है। अकर्म का मतलब है ऐसा कर्म जिसमें कर्ता नहीं है। अकर्म का अर्थ, ऐसा कर्म, जिसमें कर्त्ता नहीं है।  जिसमें मैं कर रहा हूँ, ऐसा कोई बिंदु नहीं है। ऐसा कोई केंद्र नहीं है, जहाँ से यह भाव उठता है कि मैं कर रहा हूँ। अगर मैं कर रहा हूँ, यह खो जाए, तो सभी कर्म अकर्म है। कर्त्ता खो जाए तो सभी कर्म अकर्म है। इसलिए कृष्ण का कोई कर्म कर्म ...

तुम क्या सांस लोगे? सांस लेना तुम्हारे हाथ में होता, तो तुम मरोगे ही नहीं कभी फिर, तुम सांस लेते ही चले जाओगे। मौत दरवाजे पर आकर खड़ी रहेगी, यमदूत बैठे रहेंगे और तुम श्वास लेते रहोगे।

प्रसाद का अर्थ है,तुम्हारे कारण नहीं, प्रभु के कारण। भेंट है, उसकी तरफ से है। तुम्हारे लिए सौगात है। एक पक्षी तुम्हारे कमरे में घुस आता है। जिस द्वार से आया है, वह खुला है--इसीलिए भीतर आ सका है; द्वार बंद होता तो भीतर न आ सकता। और फिर खिड़की से टकराता है, बंद खिड़की के कांच से टकराता है। चोंचें मारता है, पर फड़फड़ाता है। जितना फड़फड़ाता है, जीतना घबड़ाता है, उतना बेचैन हुआ जाता है। और खिड़की बंद है, और टकराता है। लहूलुहान भी हो सकता है। पंख भी तोड़ ले सकता है। कभी तुमने बैठकर सोचा, यह पक्षी कैसा मूढ़ है। अभी दरवाजे से आया है और दरवाजा खुला है, अभी उसी दरवाजे से वापस भी जा सकता है, मगर बंद खिड़की से टकरा रहा है। प्रकरणात्च्च। वहां खोजना प्रकरण। वहां तुम्हें शांडिल्य का सूत्र याद करना चाहिए। ऐसा ही आदमी है। तुम इस जगत में आए हो, तुम अपने को जगत में लाए नहीं हो, आए हो--वहीं प्रसाद का सूत्र है। तुमने अपने को निर्मित नहीं किया है। यह जीवन तुम्हारा कर्तृत्व नहीं है, तुम्हारा कृत्य नहीं है, यह दान है, यह परमात्मा का प्रसाद है। यह द्वार खुला है, जहां से तुम आए। तुमसे किस ने पूछा था जन्म से पहले कि म...