प्रसाद का अर्थ है,तुम्हारे कारण नहीं, प्रभु के कारण। भेंट है, उसकी तरफ से है। तुम्हारे लिए सौगात है। एक पक्षी तुम्हारे कमरे में घुस आता है। जिस द्वार से आया है, वह खुला है--इसीलिए भीतर आ सका है; द्वार बंद होता तो भीतर न आ सकता। और फिर खिड़की से टकराता है, बंद खिड़की के कांच से टकराता है। चोंचें मारता है, पर फड़फड़ाता है। जितना फड़फड़ाता है, जीतना घबड़ाता है, उतना बेचैन हुआ जाता है। और खिड़की बंद है, और टकराता है। लहूलुहान भी हो सकता है। पंख भी तोड़ ले सकता है। कभी तुमने बैठकर सोचा, यह पक्षी कैसा मूढ़ है। अभी दरवाजे से आया है और दरवाजा खुला है, अभी उसी दरवाजे से वापस भी जा सकता है, मगर बंद खिड़की से टकरा रहा है। प्रकरणात्च्च। वहां खोजना प्रकरण। वहां तुम्हें शांडिल्य का सूत्र याद करना चाहिए। ऐसा ही आदमी है। तुम इस जगत में आए हो, तुम अपने को जगत में लाए नहीं हो, आए हो--वहीं प्रसाद का सूत्र है। तुमने अपने को निर्मित नहीं किया है। यह जीवन तुम्हारा कर्तृत्व नहीं है, तुम्हारा कृत्य नहीं है, यह दान है, यह परमात्मा का प्रसाद है। यह द्वार खुला है, जहां से तुम आए। तुमसे किस ने पूछा था जन्म से पहले कि म...