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हस्ताक्षर की गई कार्बन कॉपी जो मूल दस्तावेज़ की तरह उसी प्रक्रिया से बनाई गई है, साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य !! सुप्रीम कोर्ट !!

साक्ष्य का सामान्य नियम यह है कि दस्तावेज को स्वयं को साबित करने के लिए परीक्षण में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। धारा 62 के अनुसार, प्राथमिक साक्ष्य का मतलब है कि न्यायालय के निरीक्षण के लिए दस्तावेज खुद प्रस्तुत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हस्ताक्षर की गई कार्बन कॉपी जो मूल दस्तावेज़ की तरह उसी प्रक्रिया से बनाई गई है, उसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 62 के अनुसार मूल दस्तावेज की तरह साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य किया जाएगा।  साक्ष्य अधिनियम की धारा 62 में दिए गए स्पष्टीकरण 2 में कहा गया है: "जहां सभी दस्तावेजों को एक समान प्रक्रिया द्वारा बनाया गया है, जैसे कि मुद्रण, लिथोग्राफी, या फोटोग्राफी के मामले में, प्रत्येक अन्य शेष की सामग्री का प्राथमिक प्रमाण है, लेकिन, जहां वे सभी एक ही मूल दस्तावेज़ की प्रतियां हैं, वे मूल दस्तावेज़ की सामग्री का प्राथमिक प्रमाण नहीं हैं।

लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसियों को ऐसे दुर्भावनापूर्ण हमलों से प्रभावी ढंग से निपटने की जरूरत है !! SC !!

सीजेआई ने कहा कि लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसियों को ऐसे दुर्भावनापूर्ण हमलों से प्रभावी ढंग से निपटने की जरूरत है। अब सुप्रीम कोर्ट में पहली बार चार महिला जज हैं। उन्होंने पुलिस और कार्यपालिका को अदालती कार्यवाही में सहयोग करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया.

"यूपी में चलता होगा, यहां नहीं"!! दिल्ली हाईकोर्ट !!

विवाह के बाद पति के पिता और भाई को गिरफ्तार करने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस को कड़ी फटकार लगाई, कहा- "यूपी में चलता होगा, यहां नहीं"!! अदालत ने निर्देश दिया कि एसएचओ द्वारा एक विस्तृत हलफनामा दायर किया जाए कि यूपी पुलिस ने महिला का पता लगाने के लिए क्या प्रयास किए और यदि वे दिल्ली आए,तो क्या कोई कार्यवाई करने से पहले उनके आने की सूचना स्थानीय पुलिस स्टेशन को दी गई थी। आगे इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि पुलिस पहले ही याचिकाकर्ताओं के बयान को सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज कर चुकी है।  दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक मामले में यूपी पुलिस को कड़ी फटकार लगाई और कहा, "यूपी में चलता होगा, यहां नहीं।" दरअसल उत्तर प्रदेश पुलिस को एक महिला से, उसके परिजनों की इच्छा के खिलाफ,विवाह करने के कारण एक पुरुष के पिता और भाई को ग‌िरफ्तार कर लिया था।  विवाहित जोड़े वयस्‍क थे और गिरफ्तारी के संबंध में दिल्ली पुलिस को सूच‌ित भी नहीं किया गया। मामले की सुनवाई करत‌े हुए जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा, "यहां दिल्ली में इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी। आप यहां अवैध काम नहीं कर सकते।...