Skip to main content

Posts

Showing posts with the label CrPc Act

Crpc की धारा 125 के तहत दोनों पक्षों के बीच विवाद के निपटारे के लिए आदेश जारी करने वाले मजिस्ट्रेट को अपना आदेश वापस लेने या निरस्त करने का अधिकार है !!

सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत दोनों पक्षों के बीच विवाद के निपटारे के लिए आदेश जारी करने वाले मजिस्ट्रेट को अपना आदेश वापस लेने या निरस्त करने का अधिकार है, बशर्ते संबंधित आदेश की शर्तों का उल्लंघन हो रहा हो। सीआरपीसी की धारा 362 का प्रतिबंध इस आदेश पर लागू नहीं होता। कानून सीआरपीसी की धारा प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को यह अधिकार प्रदान करती है कि वह किसी व्यक्ति को उसके सामर्थ्य के हिसाब से अपनी पत्नी, बच्चों एवं माता-पिता के लिए मासिक भत्ते के भुगतान का निर्देश दे सकता है। 

आपराधिक कानूनों के तहत बरी के खिलाफ अपील का अधिकार !!

आपराधिक कानूनों के तहत बरी के खिलाफ अपील का अधिकार !! सीआरपीसी के तहत अपील के प्रकार : सीआरपीसी के तहत विभिन्न प्रकार की अपीलें हैं !! 1. 1) सत्र में अपील - सीआरपीसी की धारा 373  2. 2) दोषसिद्धि से अपील - धारा 374 सीआरपीसी  3. 3) धारा 377 और 378 सीआरपीसी . के तहत राज्य की अपील.  4. 4) कुछ मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि के खिलाफ अपील - धारा 379 सीआरपीसी  5. 5) कुछ मामलों में अपील का विशेष अधिकार - धारा 380 सीआरपीसी

आपकी कमाई के ₹50 या इससे अधिक का नुकसान होता है,तो भी उस इंसान पर FIR कर सकते हो !!

क्या आप जानते हैं यदि आरोपित व्यक्ति की किसी भी हरकत के कारण आपकी कमाई में ₹50 या इससे अधिक का नुकसान होता है तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 427 के तहत मामला दर्ज किए जाने का प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति आपके काम में इस प्रकार का व्यवधान डाले कि आपकी कमाई का नुकसान हो जाए तो आप क्या करेंगे, पुलिस या फिर प्रशासन से शिकायत करेंगे और ऐसे व्यक्ति के खिलाफ प्रतिबंधात्मक कार्रवाई का निवेदन कर सकते है।

Cr.P.C. 1973 की धारा के तहत,144 के लिए किया जाता है !!

धारा 144 शब्द का प्रयोग generally Cr.P.C. 1973 की धारा 144 के लिए किया जाता है. इस धारा के अनुसार किसी व्यक्ति को कोई कार्य न करने या अपने कब्जे के अधीन की सम्पत्ति की विशिष्ट व्यवस्था करने का निदेश दिया जाता है. यह निदेश DM, SDM या राज्य सरकार द्वारा सशक्त magistrate शीघ्र आवश्यकता के आधार पर दे सकता है. यह निदेश लोक शांति भंग होने से बचाने, मानव जीवन, सुरक्षा को खतरे से बचाने बलवा, दंगा आदि को रोकने के purpose से दिया जा सकता है. ऐसा आदेश किसी विशिष्ट व्यक्ति को अथवा किसी स्थान में निवास करने वाले व्यक्तियों को अथवा आम जनता को, जब वे किसी विशेष स्थान में जाते हैं, निर्दिष्ट किया जा सकता है. सामान्यतः ऐसे निदेश के अधीन एक जगह पर 5 या अधिक व्यक्तियों को एकत्र होने से रोका जाता है. धारा 144 के अधीन दिया गया आदेश 2 माह तक ही लागू रह सकता है. विशेष दशा में राज्य सरकार इसे 6 माह तक बढ़ा सकती है.

Crpc Act Section 46 के तहत रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार

आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46 के तहत एक महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है. बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है. उसे जमानत से जुड़े उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही गिरफ्तार महिला के नजदीकी रिश्तेदारों को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है.

सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी यानि की एफआईआर दर्ज करने को अनिवार्य बनाने का फैसला दिया है !

कचहरी, अस्पताल और पुलिस स्टेशन, ये तीन ऐसे स्थान हैं जहाँ जीवन में एक बार ही सही हर आदमी का पाला कभी ना कभी जरूर पड़ता है। पुलिस थाने का नाम सुनते ही पुलिस का खौफनाक चेहरा लोगों के सामने आने लगता है। अमूमन आपने सुना होगा कि पुलिस ने दबाव बनाकर FIR ( first information report) बदल दी है। पुलिस आम नागरिकों द्वारा कानून की कम जानकारी होने का फायदा उठाती है। किसी भी अपराध की रिपोर्ट पुलिस को दर्ज करवाने के लिए जैसे ही आप थाने में जाते हैं, तो आपको अपने साथ घटे अपराध की जानकारी देने को कहा जाता है। इसमें अपराध का समय, स्थान, मौके की स्थिति इत्यादि की जानकारी पूछी जाती है। यह सारी जानकारी डेली डायरी में लिखी जाती है जिसे रोजनामचा भी कहा जाता है। बहुत से अनजान लोग इसे ही एफआईआर समझ लेते हैं और अपनी तरफ से संतुष्ट हो जाते हैं। इसलिए जब भी अपराध की रिपोर्ट दर्ज करवाएं एफआईआर लिखवाएं और इसकी कॉपी लें, यह आपका अधिकार है। एफआईआर दर्ज करने में लापरवाही और देरी के लिए भी आप जिम्मेदार अधिकारी की शिकायत कर सकते हैं। एफआईआर की पहचान के लिए इस पर एफआईआर नंबर भी दर्ज होते हैं जिससे आगे इस नंबर से माम...

Bail and Bonds

एक बार जब कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में होता है और उसे कथित अपराध के लिए आरोपित किया जाता है, तो वह जमानत पोस्ट करके या बांड प्राप्त करके जेल से बाहर निकलने में सक्षम हो सकता है। एक न्यायाधीश कथित अपराध की गंभीरता जैसे कारकों के आधार पर जमानत की मात्रा निर्धारित करता है, संभावना है कि रिहा होने के बाद अपराधी अतिरिक्त अपराध करेगा, और संभावना है कि प्रतिवादी परीक्षण से पहले क्षेत्राधिकार से भाग जाएगा। एक न्यायाधीश किसी भी राशि पर जमानत निर्धारित कर सकता है जो उद्देश्यपूर्ण रूप से अनुचित या अस्वीकार्य जमानत नहीं है। अमेरिकी संविधान में आठवां संशोधन "अत्यधिक जमानत" को प्रतिबंधित करता है, लेकिन यह नहीं कहता है कि अदालतों को जमानत देने की आवश्यकता है। जमानत बनाम बॉन्ड "जमानत" और "बांड" शब्दों का उपयोग अक्सर जेल रिहाई पर चर्चा करते समय लगभग एक दूसरे के लिए किया जाता है, और जब वे एक-दूसरे के साथ निकटता से संबंधित होते हैं, तो वे एक ही चीज नहीं होते हैं। जमानत वह धन है जो एक प्रतिवादी को जेल से बाहर निकलने के लिए भुगतान करना चाहिए। एक बांड प्रतिवादी की ओर से प...

संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त संवैधानिक अधिकार है क्योंकि जेल में रहने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है ! उच्च न्यायालय !

उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि मुख्य आवेदन के निपटारा होने तक कोई व्यक्ति अंतरिम जमानत का हकदार है जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त संवैधानिक अधिकार है क्योंकि जेल में रहने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है। न्यायमूर्ति मार्कंडेय काट्जू और न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की पीठ ने एक आदेश में कहा कि हम यह बात दोहराना चाहते हैं कि जमानत देने की शक्ति में जमानत याचिका के अंतिम निपटारे तक अंतरिम जमानत देने की शक्ति अंतर्निहित है। पीठ ने कहा कि ऐसा संविधान के अनुच्छेद 21 के मद्देनजर है जो हर व्यक्ति को प्रतिष्ठा के अधिकार की गारंटी देता है। शीर्ष अदालत ने यह आदेश आरोपी बलबीरसिंह की जमानत याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। उसने आपराधिक मामले में सत्र अदालत और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देने से इनकार करने के फैसले को चुनौती दी थी

जिला मजिस्ट्रेट कुमार पाल गौतम ने जिले में चाइनीज मांझा के बिक्री एवं उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है !

कलक्टर के आदेश…. अक्षय तृतीया पर ये खरीदा-बेचा तो जिला मजिस्ट्रेट कुमार पाल गौतम ने जिले में चाइनीज मांझा के बिक्री एवं उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है। गौतम ने बताया कि ये आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे तथा एक माह तक या अगले आदेश तक प्रभावी रहेंगे। गौतम ने बताया कि अक्षय तृतीया के अवसर पर पतंगबाजी में प्रयोग होने वाले चाइनीज मांझा पर धातुओं का मिश्रण लगा होता है। इस मांझे के बिजली के तारों को छूने से करंट आने से मानव जीवन तथा लोक सम्पति को भी नुकसान का गंभीर खतरा रहता है। उन्होंने बताया कि जिले में आमजन एवं पशु-पक्षियों के जानमाल एवं लोक सम्पति की सुरक्षा हेतु तत्काल निवारक कार्यवाही की गई है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत यह प्रतिबंध लगाए गए हैं। उन्होंने कहा कि आदेश का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत अभियोग चलाया जा सकेगा।

अनुच्छेद 21- प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण

किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। अनुच्छेद 21- प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण भारत का संविधान अपने दृष्टिकोण और प्रस्तुति में उपन्यास है। भारत के विशाल और विविध देश होने के नाते, कई पहलुओं और मुद्दों पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य में इसके नागरिक सबसे महत्वपूर्ण हैं और यह कानून बनाने वालों का कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि कानून किसी भी वर्गीकरण जैसे जाति, रंग या पंथ के प्रत्येक व्यक्ति की समान रूप से रक्षा करता है। भारत का संविधान भाग III में जीवन का अधिकार (राइट टू लाइफ) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दिया गया है। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिए उपलब्ध है। 'राइट टू लाइफ' क्या है? अनुच्छेद 21, जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का प्रतीक है, वह अधिकार है जिससे अन्य सभी अधिकार निकलते ...

CrPC Section 41A !

Section Title : 41 ए पुलिस अधिकारी के सामने उपस्थित होने की सूचना - Section Detail : 41 ए पुलिस अधिकारी के सामने उपस्थित होने की सूचना - (1) पुलिस अधिकारी, सभी मामलों में जहां धारा 41 के उप-धारा (1) के प्रावधानों के तहत किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है, उस व्यक्ति को निर्देश देने का नोटिस जारी करेगा जिसके खिलाफ उचित शिकायत की गई है, या विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हो गई है, या उचित संदेह मौजूद है कि उसने एक संज्ञेय अपराध किया है, उसके पहले या ऐसे अन्य जगह पर उपस्थित होने के लिए, जो नोटिस में निर्दिष्ट किया जा सकता है। (2) जहां किसी भी व्यक्ति को ऐसा नोटिस जारी किया जाता है, नोटिस की शर्तों का पालन करने के लिए उस व्यक्ति का कर्तव्य होगा। (3) जहां कोई व्यक्ति नोटिस का अनुपालन करता है और जारी रखता है, उसे नोटिस में निर्दिष्ट अपराध के संबंध में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जब तक कि कारणों को दर्ज नहीं किया जाए, पुलिस अधिकारी का मानना ​​है कि उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए। (4) ऐसे व्यक्ति, किसी भी समय, नोटिस की शर्तों का अनुपालन करने में विफल रहता है या खुद को पहचानने के लि...

जमानती और गैर जमानती अपराध जमानती अपराध !

जमानती अपराधों में मारपीट, धमकी, लापरवाही से मौत , लापरवाही से गाड़ी चलाना, जैसे मामले आते हैं। दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में एक पूरी सूची बनाई गई है। ये वैसे मामले हैं जिसमें तीन साल या उससे कम की सजा हो। सीआरपीसी की धारा 436 के तहत जमानती अपराध में कोर्ट द्वारा जमानत दे दी जाती है। कुछ परिस्थितियों में सीआरपीसी की धारा 169 के तहत थाने से ही जमानत दिए जाने का भी प्रावधान है। गिरफ्तारी होने पर थाने का इंचार्ज बेल बॉन्ड भरवाने के बाद आरोपी को जमानत दे सकता है। देश जानिए क्या है जमानत? कब और किसे मिलेगी ? कितने हैं इसके प्रकार ? नई दिल्ली।  कई बार जीवन में इंसान से कोई अपराध हो जाता है या फिर रंजिश के चलते कोई किसी को झूठे मामले में फंसाता है और पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है। तो ऐसे में उस शख्स को कानून में जमानत लेने का अधिकार दिया गया है। लेकिन ये बात याद रखनी होगी कि कई मामले ऐसे होते हैं जिनमें जमानत मिल सकती है और कई ऐसे जिनमें नहीं मिल सकती। जब कोई इंसान किसी अपराध के कारण जेल जाता है तो उस शख्स को जेल से छुड़वाने के लिए कोर्ट या पुलिस से जो आदेश मिलता है उस आदेश को जमान...

पुलिस को इस मामले में संज्ञान लेने और FIR दर्ज करने का अधिकार नहीं है लगाई रोक ! हायकोर्ट

जबलपुर। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट के जस्टिस जेपी गुप्ता की एकलपीठ ने संबित पात्रा के खिलाफ भोपाल की सीजेएम कोर्ट में दर्ज आपराधिक प्रकरण पर किसी भी तरह की कार्रवाई करने पर बुधवार को रोक लगा दी। दरअसल, संबित पात्रा ने विधानसभा चुनाव के दौरान अक्टूबर 2018 में नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग के संबंध में एक प्रेस कांफ्रेंस की थी। भोपाल के एमपी नगर पुलिस ने इस मामले में संज्ञान लेकर इसे आचार संहिता का उल्लंघन माना और संबित के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। पुलिस ने भादंवि की धारा 188 के तहत भोपाल के चीफ जुडीशियल मेजिस्टे्रट की कोर्ट में चालान पेश किया। कोर्ट ने संबित पात्रा की हाजिरी के लिए उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया। पुलिस को अधिकार नहीं है की संबित पात्रा पर एफआईआर और कोर्ट की प्रक्रिया को हाईकोर्ट में चुनौती दी। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव और नम्रता अग्रवाल ने दलील दी कि पुलिस को इस मामले में संज्ञान लेने और एफआईआर दर्ज करने का अधिकार नहीं है। भारतीय दंड विधान की धारा 188 के...

Thane Police Zone -1 के Dcp, Acp, Sr. PI, & IO पर हो शकती है,लीगल कारवाही !

ठाणे पोलीस झोन 1 के  सभी पोलीस अधिकारी ने FIR मे नगरसेवक शैलेश पाटील का नाम दर्ज करने से अब तक लाहपरवाही दिखाई थी ! पोलीस वाले कुछ पैसे के खातीर,अपनी ड्युटी दाव पर आये दिन रोज लागते ही रहते है।आम जनता को पता ही नहीं रहता की इन लाहपरवाह पोलीस अधिकारी के खिलाफ शिकायत कहा करनी है। शिकायत करने का तरीका भी कुछ ही लोगो को पता होता है। पोलीस वालो के खिलाफ शिकायत कोंन से विभाग मे करना यह भी बडी समस्या आज आम जनता को आये दिन झेलने पढता है। लेकीन मेरे इस लेख के माध्यम से जनता को कुछ बातो का खुलासा हमारी मीडिया के माध्यम से जनता के सामने रखना चाहता हूं। मेरे घर पर हुवे,हमले के खिलाफ आज 7 महिने से जादा दिन गुजर जाने के बाद भी कुछ उम्मीद की किरण मुझे आज दिखाई दे रही है।इन चारो पोलीस अधिकारी पर हो शकती है,लीगल कारवाही !                 1) Dcp zone 1 thane. डी.एस.स्वामी.          2) Acp zone 1 thane. रमेश धुमाल          ...

CrPc Section " 374 " Appeals from convictions

Any person convicted on a trial held by a High Court in its extraordinary original criminal jurisdiction may appeal to the Supreme Court. Any person convicted on a trial held by a Sessions Judge or an Additional Sessions Judge or on a trial held by any other Court in which a sentence of imprisonment for more than seven years 1 [has been passed against him or against any other person convicted at the same trial; may appeal to the High Court. Save as otherwise provided in Sub-Section (2), any person,- convicted on a trial held by a Metropolitan Magistrate or Assistant Sessions Judge or Magistrate of the first class or of the second class, or sentenced under section 325, or in respect of whom an order has been made or a sentence has been passed under section 360 by any Magistrate, may appeal to the Court of Session. When an appeal has been filed against a sentence passed under section 376, section 376A, section 376AB, section 376B, section 376C, section 376D, section 376DA, sect...