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जीवन का जीने की कला का दूसरा सूत्र हैः प्रामाणिकता। एक ही तुम्हारा व्यक्तित्व होना चाहिए, दोहरा नहीं ! osho !

                          My Photography जीवन का जीने की कला का दूसरा सूत्र हैः प्रामाणिकता। एक ही तुम्हारा व्यक्तित्व होना चाहिए, दोहरा नहीं। पहला सूत्र हैः निजता। अपने ढंग से जीओ, अपने रंग से जीओ, अपनी मौज से जीओ। मैं उसको संन्यास कह रहा हूं। और दूसरा सूत्र हैः प्रामाणिकता। और तीसरा सूत्र हैः भूल कर भी कहीं इस खयाल को मत टिकने देना कि तुम्हारे जीवन में कुछ है जो गलत है। अगर कुछ गलत लग भी रहा हो तो जानना कि इसी के भीतर कहीं सही छिपा हुआ है। यह गलत, सही को अपने में छिपाए हुए है। जैसे बीज की सख्त खोल के भीतर कितने फूल छिपे हैं! करोड़ों फूल छिपे हैं। बीज की सख्त खोल पर ही मत अटक जाना। फूल अभी दिखाई भी नहीं पड़ते। बोओगे जमीन में, पौधा बड़ा होगा, वृक्ष बनेगा, हजारों पक्षी निवास करेंगे, सैकड़ों लोग उसकी छाया में बैठ सकेंगे--तब फूल से भरेगा आकाश। वैज्ञानिक कहते हैं कि एक बीज की इतनी क्षमता है कि सारी पृथ्वी को हरा कर दे, क्योंकि एक बीज से फिर करोड़ों बीज होते हैं। फिर एक-एक बीज से करोड़ों-करोड़ हो जाते हैं। होते-होते सारी पृ...

प्रेम सबसे बड़ी कला है। उससे बड़ा कोई ज्ञान नहीं है। सब ज्ञान उससे छोटे हैं।

प्रेम सबसे बड़ी कला है। उससे बड़ा कोई ज्ञान नहीं है। सब ज्ञान उससे छोटे हैं। क्योंकि और सब ज्ञान से तो तुम जान सकते हो बाहर-बाहर से; प्रेम में ही तुम अंतर्गृह में प्रवेश करते हो। और परमात्मा अगरकहीं छिपा है तो परिधि पर नहीं, केंद्र में छिपा है। और एक बार जब तुम एक व्यक्ति के अंतर्गृह में प्रवेश कर जाते हो तो तुम्हारे हाथ में कला आ जाती है; वही कला सारे अस्तित्व के अंतर्गृह में प्रवेश करने के कामआती है। तुमने अगर एक को प्रेम करना सीख लिया तो तुम उस एक के द्वारा प्रेम करने की कला सीख गए। वही तुम्हें एक दिन परमात्मातक पहुंचा देगी। इसलिए मैं कहता हूं कि प्रेम मंदिर है। लेकिन तैयार मंदिर नहीं है। एक-एक कदम तुम्हें तैयार करना पड़ेगा। रास्ता पहले से पटा-पटाया तैयार नहीं है, कोई राजपथ है नहीं कि तुम चल जाओ। चलोगे एक-एक कदम और चल-चल कर रास्ता बनेगा--पगडंडी जैसा। खुद ही बनाओगे, खुद ही चलोगे। इसलिए मैं प्रेम के विरोध में नहीं हूं,मैं प्रेम के पक्ष में हूं। और तुमसे मैं कहना चाहूंगा कि अगर प्रेम ने तुम्हें दुख में उतार दिया हो तो अपनी भूल स्वीकार करना, प्रेम की नहीं। क्योंकि बड़ा खतरा है अगर तु...

जादू का खेल देखा है! जादू के खेल का मतलब क्या होता है ?

                    *“माया क्या है ?” -- ओशो:* यह जो ”माया” है शब्द, बड़ा अर्थपूर्ण है। इसका अर्थ है : जादू। *अंग्रेजी में जो मैजिक शब्द है, वह माया से ही आया है।* माया का अर्थ है : *जहां नहीं है कुछ, वहां कुछ दिखाई पड़ जाना।* जादू का खेल देखा है! जादू के खेल का मतलब क्या होता है? वहां कुछ है नहीं, मगर दिखाई पड़ता है। जादूगर आम की गुठली रोप देता है एक गमले में, कपड़ा ढांक देता है, जमूरे से दो—चार बातें करता है, डमरू बजाता है कि जस्ता आम खाएगा…। बातचीत थोड़ी चली। चांदर उठाता है, आम का पौधा हो गया है! ऐसे आम के पौधे बढ़ते नहीं। फिर कुछ थोड़ी बात चलती है, जमूरे से फिर कुछ वार्तालाप होता है। लोगों को फिर थोड़ी बातचीत में उलझाए रखता है। फिर चांदर उठाता है : आम लग गया! *जादू का अर्थ होता है : जो नहीं होता, जो नहीं हो सकता है, वह दिखाई पड़ रहा है। उसका आभास हो रहा है।* *माया का अर्थ है: जो नहीं है, नहीं हो सकता है, लेकिन जिसका आभास होता है। और आभास का हम रोज—रोज पोषण करते हैं।* एक स्त्री के तुम प्रेम में पड़ गए। फिर विवाह का संयोजन किया। चला...

कामवासना तुम्‍हारा निम्‍नतम चक्र है।

मूलबंध : ब्रह्मचर्य उपलब्धि की सफलतम विधि -- ओशो: जीवन ऊर्जा है, शक्ति है। लेकिन साधारणत: तुम्‍हारी जीवन-ऊर्जा नीचे की और प्रवाहित हो रही है। इसलिए तुम्‍हारी सब जीवन ऊर्जा अनंत वासना बन जाती है। कामवासना तुम्‍हारा निम्‍नतम चक्र है। तुम्‍हारी ऊर्जा नीचे गिर रही है। और सारी ऊर्जा काम केन्‍द्र पर इकट्ठी हो जाती है। इस लिए तुम्‍हारी सारी शक्ति कामवासना बन जाती है। एक छोटा सा प्रयोग, जब भी तुम्‍हारे मनमें कामवासना उठे तो, ड़रो मत शांत होकर बैठ जाओ। जोर से श्‍वास को बहार फेंको—उच्‍छवास। भीतर मत लो श्‍वास को— क्‍योंकि जैसे भी तुम भीतर गहरी श्‍वास को लोगे, भीतर जाती श्‍वास काम ऊर्जा को नीचे की धकाती है। जब सारी श्‍वास बहार फिंक जाती है, तो तुम्‍हारा पेट और नाभि‍ वैक्‍यूम हो जाती है, शून्‍य हो जाती है। और जहां कहीं शून्‍य हो जाता है, वहां आसपास की ऊर्जा शून्‍य की तरफ प्रवाहित होने लगती है। शून्‍य खींचता है, क्‍योंकि प्रकृति शून्‍य को बरदाश्‍त नहीं करती, शून्‍य को भरती है। तुम्‍हारी नाभि के पास शून्‍य हो जाए, तो मूलाधार से ऊर्जा तत्‍क्षण नाभि की तरफ अठ जाती है, और तुम्‍हें बड़ा रस मिलेगा...

बिना कीमत चुकाए जो भी प्राप्त होता है! वह मूल्यवान नही होता !

बिना कीमत चुकाए जो भी प्राप्त होता है! वह मूल्यवान नही होता!!* बुद्ध छह वर्ष तक जो तपश्चर्या किए, उस तपश्चर्या में शिक्षा के द्वारा डाले गए संस्कारों को काटने की ही योजना थी। महावीर बारह वर्ष तक मौन रहे। उस मौन में जो शब्द सीखे थे, सिखाए गए थे उन्हें भुलाने का प्रयास था। बारह वर्षो के सतत मौन के बाद इस योग्य हुए कि शब्द से छुटकारा हो सका। और जहां शब्द से छुटकारा है वहीं निःशब्द से मिलन है। और जहां चित्त शास्त्र के भार से मुक्त है वहीं निर्भार होकर उड़ने में समर्थ है। जब तक छाती पर शास्त्रों का बोझ है, तुम उड़ न सकोगे; तुम्हारे पंख फैल न सकेंगे आकाश में। परमात्मा की तरफ जाना हो तो निर्भार होना जरूरी है। जैसे कोई पहाड़ चढ़ता है तो जैसे—जैसे चढ़ाई बढ़ने लगती है वैसे—वैसे भार भारी मालूम होने लगता है। सारा भार छोड़ देना पड़ता है। अंततः तो आदमी जब पहुंचता है शिखर पर तो बिल्कुल निर्भार हो जाता है। और जितना ऊंचा शिखर हो उतना ही निर्भार होने की शर्त पूरी करनी पड़ती है। महावीर पर बड़ा बोझ रहा होगा। किसी ने भी इस तरह से बात देखी नहीं है। बारह वर्ष मौन होने में लग जाएं, इसका अर्थ क्या होता है? इस...

यह विडिओ को बताने का मकसद मेरा य ही है,की आप अपने मासुम बच्चे के साथ इस तरह का हरकत ना करे !

यह विडिओ को बताने का मकसद मेरा यही है,की आप अपने मासुम बच्चे के साथ इस तरह का हरकत ना करे ! मेरा मकसद यह विडिओ दिखाकर उन परिवार की बदनामी नहीं करना है। स्मार्ट फ़ोन ने अगर दुरीया को नजदीक किया है,तो कुछ अपनो को पास से दूर किया है। मुझे जो दिखा वह मेंने आप सभी के साथ share करने को मेरे मन मे लगा सो आप सभी के साथ Share कर रहा हूं। आज मे मीडिया के काम से CST मुंबई गया था। जब मेरे सामने लोकल ट्रेन मे एक परिवार भी बैठा था। उनका एक मासुम बच्चा उनके साथ था। जैसे ही ट्रेन चालू हुई,यह फेमली ने अपने गोद मे से उनका बच्चा अपने गोद से नीचे उतार दिया। पती पत्नी अपना अपना स्मार्ट फ़ोन निकाल कर मोबाईल पर बिजी हो गये। वह बच्चा कब से उन दोनो को अपनी त र फ देखने के लिये,बार बार अपना हाथ उनके त रफ बढा रहा था। लेकीन य ह दोनो पती पत्नी अपने अपने मोबाईल पर इतने बिजी थे की उनको पत्ता भी नहीं चल रहा था उनके साथ उनका एक मासुम बच्चा भी है।

अपने डॉक्टर खुद बने !

अपने डॉक्टर खुद बने ============= साभार - डा.सुनील आर्य   1 =  केवल सेंधा नमक प्रयोग करें, थायराईड, बी पी और पेट ठीक होगा। 2 = केवल स्टील का कुकर ही प्रयोग करें, अल्युमिनियम में मिले हुए लेड से होने वाले नुकसानों से बचेंगे 3 = कोई भी रिफाइंड तेल ना खाकर केवल तिल, मूंगफली, सरसों और नारियल का प्रयोग करें। रिफाइंड में बहुत केमिकल होते हैं जो शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं । 4 = सोयाबीन बड़ी को 2 घण्टे भिगो कर, मसल कर ज़हरीली झाग निकल कर ही प्रयोग करें। 5 = रसोई में एग्जास्ट फैन जरूरी है, प्रदूषित हवा बाहर करें। 6 = काम करते समय स्वयं को अच्छा लगने वाला संगीत चलाएं। खाने में भी अच्छा प्रभाव आएगा और थकान कम होगी। 7 = देसी गाय के घी का प्रयोग बढ़ाएं। अनेक रोग दूर होंगे, वजन नहीं बढ़ता। 8 = ज्यादा से ज्यादा मीठा नीम/कढ़ी पत्ता खाने की चीजों में डालें, सभी का स्वास्थ्य ठीक करेगा। 9 = ज्यादा से ज्यादा चीजें लोहे की कढ़ाई में ही बनाएं। आयरन की कमी किसी को नहीं होगी। 10 = भोजन का समय निश्चित करें, पेट ठीक रहेगा। भोजन के बीच बात न करें, भोजन ज्यादा पोषण देग...

हाउ टु ग्रो रिच, कैसे अमीर हो जाएं।

हेनरी फोर्ड एक दुकान में गया, एक किताब खरीदी। जब वह किताब देख रहा था, तो किताब थी: हाउ टु ग्रो रिच, कैसे अमीर हो जाएं। हेनरी फोर्ड तो अमीर हो चुका था, फिर भी उसने सोचा कि शायद कोई और बातें इसमें हों। और तभी दुकानदार ने कहा कि फोर्ड महोदय, आप बड़े आनंदित होंगे, इस किताब का लेखक भी दुकान में भीतर है। वह कुछ काम से आया हुआ है, हम आपको उससे मिला देते हैं। उससे सारी बात बिगड़ गई। वह लेखक बाहर आया। हेनरी फोर्ड ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा और कहा कि यह किताब वापस ले लो, यह मुझे खरीदनी नहीं है। वह दुकानदार हैरान हुआ कि आप क्या कह रहे हैं! इस किताब की लाखों कापियां बिक चुकी हैं। वह कितनी ही बिक चुकी हों, लेकिन लेखक को देख लिया, अब किताब को क्या करें! कोट फटा था; हाउ टु ग्रो रिच किताब लिखी है उन्होंने! हेनरी फोर्ड ने पूछा कि अपनी ही कार से आए हो कि बस में आए हो? लेखक ने कहा, आया तो बस में ही हूं। तो हेनरी फोर्ड ने कहा कि मैं फोर्ड हूं, और कभी कार की जरूरत पड़े तो मेरे पास आना, सस्ते में निपटा दूंगा। लेकिन अभी ये किताबें मत लिखो। क्योंकि जिस सलाह से तुम नहीं कुछ पा सके, उससे कोई और क्...

मरने के बाद यह 5 बातो के लिये, 90 % पछतावा मनुष्य को होता है !

                              *पछतावा* आस्ट्रेलिया की ब्रोनी वेयर कई वर्षों तक कोई meaningful काम तलाशती रहीं, लेकिन कोई शैक्षणिक योग्यता एवं अनुभव न होने के कारण बात नहीं बनी। फिर उन्होंने एक हॉस्पिटल की Palliative Care Unit में काम करना शुरू किया। यह वो Unit होती है जिसमें Terminally ill या last stage वाले मरीजों को admit किया जाता है। यहाँ मृत्यु से जूझ रहे लाईलाज बीमारियों व असहनीय दर्द से पीड़ित मरीजों के मेडिकल डोज़ को धीरे-धीरे कम किया जाता है और काऊँसिलिंग के माध्यम से उनकी spiritual and faith healing की जाती है ताकि वे एक शांतिपूर्ण मृत्यु की ओर उन्मुख हो सकें। ब्रोनी वेयर ने ब्रिटेन और मिडिल ईस्ट में कई वर्षों तक मरीजों की counselling करते हुए पाया कि मरते हुए लोगों को कोई न कोई पछतावा ज़रूर था। कई सालों तक सैकड़ों मरीजों की काउंसलिंग करने के बाद ब्रोनी वेयर  ने मरते हुए मरीजों के सबसे बड़े 'पछतावे' या 'regret' में एक कॉमन पैटर्न पाया। जैसा कि हम सब इस universal truth से वाकिफ़ हैं कि मरता हुआ व...

परमात्मा का नंबर आने तक बचता नहीं !

जब तुम कहते हो कि समय नहीं है,तो तुम असल में यह कह रहे हो कि समय तो है , लेकिन परमात्मा का नंबर आने तक बचता नहीं । वह क्यू में आखिरी खड़ा है । हम करें क्या....? सिनेमा देखने जाना , होटल में बैठना , क्लब में जाना पड़ता है, तो समय है ! मित्रों से मिलना है , शादी-विवाह में जाना है , तो समय है ! और ये ही लोग हैं , जो तुम्हें कभी कहते मिल जाएंगे...ताश खेल रहे हैं ; पूछो : क्या कर रहे हो ? वे कहते हैं,समय काट रहे हैं । समय काटे नहीं कटता , ऐसी घड़ी भी आ जाती है । जब कट-कट कर भी समय न कटे , जब कोई उपाय ही न रह जाए , जब सारा संसार समाप्त हो जाए , क्यू बिलकुल समाप्त ही हो जाए , तब मजबूरी में वे कहते हैं , चलो अब मंदिर चले चलें......!!* ● *ओशो* ●

इलाज के लिए मरीज को सिर्फ 10 रुपये खर्च करने होंगे। आपको बता दें कि मौजूदा समय में ESIC के देशभर में 150 से अधिक अस्पताल और करीब 17,000 बेड हैं।

आम लोगों के स्वास्थ्य को लेकर मोदी सरकार ने एक और बड़ा फैसला किया है। इसके तहत अब आम आदमी को भी इम्प्लाई स्टेट इन्श्योरेंस कॉरपोरेशन यानी ESIC के अस्पतालों में इलाज कराने की अनुमति मिल गई है। यानी अब कोई भी व्यक्ति ईएसआईसी अस्पतालों में इलाज करा सकेगा। अहम बात ये है कि इलाज के लिए मरीज को सिर्फ 10 रुपये खर्च करने होंगे। आपको बता दें कि मौजूदा समय में ESIC के देशभर में 150 से अधिक अस्पताल और करीब 17,000 बेड हैं। इन अस्पतालों में समान्य से लेकर लेकर गंभीर बीमारियों के इलाज की सुविधा उपलब्ध है। अभी तक इन अस्पतालों में ईएसआईसी के कवरेज में शामिल लोगों को ही इलाज की सुविधा मिलती थी लेकिन अब सरकार ने इसे आम लोगों के लिए भी खोल दिया है। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक, हालांकि मरीज के अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में केंद्र सरकार की स्वास्थ्य सेवा पैकेज दर का 25 प्रतिशत बतौर शुल्क देना होगा। राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका "राष्ट्रबोध", मुख्य संपादक- पवन केसवानी इसके अलावा मरीज को दवाएं वास्तविक कीमत पर उपलब्ध कराई जाएंगी। इससे आम लोगों को सस्ती दर पर उच्च स्तरीय इलाज ...

साक्षी मंदिर में बैठा हो कि वेश्यालय में, कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि साक्षी का काम सिर्फ देखने का है।

                     साक्षी की साधना - भाग - 12 साक्षी मंदिर में बैठा हो कि वेश्यालय में, कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि साक्षी का काम सिर्फ देखने का है।  मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मात्र अनुभव से आप मुक्त हो जाएंगे। अनुभव और साक्षी का भाव संयुक्त हो, तो आप मुक्त हो जाएंगे। अकेला अनुभव हो, तो आपकी आदत और गहरी होती जाएगी। और फिर आदत के वश आप दौड़ते रहेंगे। और अकेला साक्षी— भाव हो और अनुभव से बचने का डर हो, तो वह साक्षी— भाव कमजोर और झूठा है। क्योंकि साक्षी— भाव को कोई भय नहीं है। न किसी चीज के करने का भय है, और न न करने का भय है। साक्षी— भाव को कर्म का प्रयोजन ही नहीं है। जो भी हो रहा है, उसे देखता रहेगा। तो साक्षी मंदिर में बैठा हो कि वेश्यालय में, कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि साक्षी का काम सिर्फ देखने का है। कथा है बौद्ध साहित्य में, आनंद एक गांव से गुजर रहा है—बुद्ध का शिष्य। और कथा है कि एक वेश्या ने आनंद को देखा। आनंद सुंदर था। संन्यस्त व्यक्ति अक्सर सुंदर हो जाते हैं। और संन्यस्त व्यक्तियों में अक्सर एक आकर्षण आ जाता है...

वैज्ञानिकों ने बताया कितना दिलचस्प है इंसान का शरीर अद्भुत है इंसान का शरीर !

वैज्ञानिकों ने बताया कितना दिलचस्प है इंसान का शरीर )* *अद्भुत है इंसान का शरीर* *जबरदस्त फेफड़े* हमारे फेफड़े हर दिन 20 लाख लीटर हवा को फिल्टर करते हैं. हमें इस बात की भनक भी नहीं लगती. फेफड़ों को अगर खींचा जाए तो यह टेनिस कोर्ट के एक हिस्से को ढंक देंगे. *ऐसी और कोई फैक्ट्री नहीं* हमारा शरीर हर सेकंड 2.5 करोड़ नई कोशिकाएं बनाता है. साथ ही, हर दिन 200 अरब से ज्यादा रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है. हर वक्त शरीर में 2500 अरब रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं. एक बूंद खून में 25 करोड़ कोशिकाएं होती हैं. *लाखों किलोमीटर की यात्रा* इंसान का खून हर दिन शरीर में 1,92,000 किलोमीटर का सफर करता है. हमारे शरीर में औसतन 5.6 लीटर खून होता है जो हर 20 सेकेंड में एक बार पूरे शरीर में चक्कर काट लेता है. *धड़कन, धड़कन* एक स्वस्थ इंसान का हृदय हर दिन 1,00,000 बार धड़कता है. साल भर में यह 3 करोड़ से ज्यादा बार धड़क चुका होता है. दिल का पम्पिंग प्रेशर इतना तेज होता है कि वह खून को 30 फुट ऊपर उछाल सकता है. *सारे कैमरे और दूरबीनें फेल* इंसान की आंख एक करोड़ रंगों में बारीक से बारीक अंत...

दुख से भागो मत, जागो और दुख को देखो !

चौथा प्रश्न : हम दुख से तो सदा बचना चाहते हैं, पर जीवन की शैली निषेधात्मक क्यों कर बन जाती है?  बचना चाहते हो, तो जीवन की शैली निषेधात्मक बन ही जाएगी। वह बचने में ही तो निषेध है। भागना चाहते हो। किसी भी चीज को आमने—सामने साक्षात्कार नहीं करना चाहते। दुख है तो भागोगे कहां? और दुख है तो परिस्थिति के कारण अगर होता, तो भाग भी जाते। दुख तो तुम्हारे ही कारण है। यही तो सभी ज्ञानियों का विश्लेषण है। दुख परिस्थिति के कारण नहीं है। परिस्थिति बदली जा सकती है। पूना में दुख है, भाग जाओ कलकत्ता। शायद दो—चार दिन पाओ कि परिस्थिति के बदलने से दुख नहीं है। लेकिन जैसे ही व्यवस्थित हो जाओगे, पाओगे कि फिर दुख पैदा हो गया। क्योंकि तुम तो अपने साथ ही पहुंच जाओगे। तुम अपने को पीछे कहां छोड़ जाओगे। तुम अपने दुख की सारी व्यवस्था अपने साथ लिए जा रहे हो। अगर यहां तुम्हारी लोगों से कलह हो जाती थी, क्रोध हो जाता था, कलकत्ते में नहीं होगा? फिर होगा। हिमालय पर जाओगे, क्या होगा? वहां भी वही होगा। अगर तुम यहां उदास होते थे, दुखी होते थे, तो हिमालय पर बैठकर दुखी और उदास होओगे। तुम्हारा होना तुम्हारे दुख का ...

जीवन में होश की हमें कोई आदत नहीं है। जीवन में हमें बेहोशी की आदत है !

जीवन जिने की कला जीवन में होश की हमें कोई आदत नहीं है। जीवन में हमें बेहोशी की आदत है। और बेहोशी को हम प्रेम भी करने लगते हैं, क्योंकि बेहोशी का एक सुख है, जागने का एक कष्ट है; बेहोशी का एक सुख है इसलिए सारी दुनिया में शराब पी जाती है, और नशे किए जाते हैं। बेहोशी का सुख यह है कि जीवन भूल जाता है। बेहोशी का सुख यह है कि जीवन भूल जाता है। हम जीवन को भूलने के सब तरह के उपाय करते हैं। नाटक देखते हैं, संगीत सुनते हैं, फिल्में देखते हैं, शराब पीते हैं; यह सब का सब भूलने का उपाय है। किसी भांति हम अपने जीवन को भूल जाएं सो जाएं, हमें नींद पूरी आ जाए, तो जीवन में कोई तकलीफ नहीं है। अधिकतम लोग सोना पसंद करते हैं, जागने की बजाय। अधिकतम लोग भूलना पसंद करते हैं, होश की बजाय; असल में अधिकतम लोग मरना पसंद करते हैं जीने की बजाय। अगर आप बहुत गहरे में देखेंगे, तो आपके सोने की जो प्रवृत्ति है कि सोए रहें, कोई तकलीफ न हो; कोई बेचैनी न हो, क्योंकि बेचैनी जगाती है, तकलीफ जगाती है, दुख जगाता है। इसलिए आप सुख को खोजते हैं, क्योंकि सुख में नींद हो सकती है। कम्फर्ट की जो खोज है, सुख की जो खोज है, वह नींद ...

तुम चाहे लाख दिये और मोमबत्तीया जलाओ इनसे तुम्हारे जीवन में रोशनी होने वाली नही। osho

  तुम चाहे लाख दिये और मोमबत्तीया जलाओ इनसे तुम्हारे जीवन में रोशनी होने वाली नही। असली दिवाली तो उस दिन ही समझना जिस दिन तुम्हारे भीतर का दिया जले। उससे पहले तो सब अंधकार ही समझो । और राम के घर लौटने से तुम्हारा क्या लेना देना, बात तो उस दिन बनेगी जब तुम अपने भीतर लौटोगे...........💃 ❣ _*ओशो*_  ❣ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 💝 _*दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं*_  💝 ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤

Happy birthday to you "Dinesh Sir"

उस दिन से आपका जन्म शुरू हुआ जिस दिन से यह जिंदगी व्यर्थ दिखाई पड़नी शुरू हो जाए, उस दिन मैं कहूंगा आपकी असली जिंदगी शुरू हुई। आपका असली जन्म शुरू हुआ। और इस तरह के आदमी को ही द्विज, ट्वाइस बॉर्न। जनेऊ डालने वाले को नहीं। क्योंकि जनेऊ तो किसी को भी डाला जा सकता है। द्विज हम कहते रहे हैं उस आदमी को जो इस दूसरी जिंदगी में प्रवेश कर जाता है। एक जन्म है जो मां-बाप से मिलता है वह शरीर का ही हो सकता है। कि और जन्म है जो स्वयं की खोज से मिलता है वही जीवन की शुरुआत है। इस जन्मदिन पर, मेरे तो नहीं कह सकता। क्योंकि मैं तो जीसस, बुद्ध और लाओत्से से राजी हूं। लेकिन इस जन्मदिन पर जो कि अ, ब, स, द किसी का भी हो सकता है। आपसे इतना ही कहना चाहता हूं कि एक और सत्य भी है। उसे खोजें। एक और जीवन भी है यहीं पास, जरा मुड़ें तो शायद मिल जाए। बस किनारे पर, कोने पर ही। और जब तक वह जीवन न मिल जाए, तब तक जन्मदिन मत मनाएं। तब तक सोचें मत जन्म की बात। क्योंकि जिसको आप जन्म कह रहे हैं, वह सिर्फ मृत्यु का छिपा हुआ चेहरा है। हां, जिस दिन जिसको मैं जन्म कह रहा हूं, उसकी आपको झलक मिल जाए, उस दिन मनाएं। उस दिन फिर प...

मन से कुछ विचार निकाल डालना है, किंतु वह विचार बारंबार हृदय में जबरदस्ती उठता है। उसको कैसे निकाल डालें?*

*मन से कुछ विचार निकाल डालना है, किंतु वह विचार बारंबार हृदय में जबरदस्ती उठता है। उसको कैसे निकाल डालें?* होता है, किसी विचार को हम अपने मन से बाहर निकालना चाहते हैं। हो सकता है विचार प्रीतिकर न हो, दुखद हो, चिंता लाता हो,उदासी लाता हो, घृणा का विचार हो, हिंसा का विचार हो। कोई ऐसा विचार हो जिसे हम अपने मन से बाहर कर देना चाहते हैं,कोई ऐसी स्मृति हो पीड़ा से भरी हुई, अपमान की कोई स्थिति हो,दुख की कोई घटना हो, हम उसे भूल जाना चाहते हैं, विस्मरण करना चाहते हैं, मन से हटाना चाहते हैं। लेकिन जितना उसे हटाते हैं, वह और हमारे पास आती है। जितना हम उसे दूर फेंकते हैं, वह और लौट-लौट कर हमारे पास आ जाती है। तो यह पूछा है कि यह कैसे हो? कैसे उसे अलग किया जाए? मन की प्रकृति को समझना जरूरी है, तभी कुछ किया जा सकता है। मन की प्रकृति का पहला नियम यह है कि अगर किसी चीज को भूल जाना है तो उसे भूलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। क्योंकि भूलने की कोशिश के ही कारण बार-बार उसकी याद बनी रहती है। तुम जब भी उसे भूलना चाहो तभी उसको फिर याद करना पड़ता है। और भूलने की तो कोशिश होती है, लेकिन पीछे उसकी याद वापस खड़...

सुंदर स्त्रियां बाहर से जितनी सुंदर होती हैं, उतनी भीतर से कुरूप हो जाती हैं।

अब मैं कोई प्‍लास्‍टिक सर्जन थोड़े हूं। अगर पत्‍नी कुरूप है, तो ध्‍यान करो पत्‍नी पर—लाभ होगा। सुंदर स्‍त्री खतरे में ले जाए; कुरूप न कभी खतरे में नहीं ले जाए। इस मौके को चूको मत सुकरात से किसी ने पूछा.। एक युवक आया। उसने कहा : मैं विवाह करना चाहता हूं। मैं करूं या न करूं? आपसे इसलिए पूछने आया हूं कि आप भुक्तभोगी हैं। सुकरात को इस दुनिया की खतरनाक से खतरनाक औरत मिली थी, झेनथेप्पे उसका नाम था। मगरमच्छ कहना चाहिए स्त्री नहीं। मारती थी सुकरात को! सुकरात जैसा प्यारा आदमी! मगर परमात्मा अक्सर ऐसे प्यारे आदमियों की बड़ी परीक्षाएं लेता है। भेजी होगी झेनथेप्पे को—कि लग जा इसके पीछे! मारती थी। डांटती थी। बीच—बीच में आ जाती। सुकरात अपने शिष्यों को समझा रहे हैं, वह बीच में खड़ी हो जाती—कि बंद करो बकवास! एक बार तो उसने लाकर पूरी की पूरी केतली गरम पानी कीं—चाय बना रही थी, क्रोध आ गया—सुकरात समझा रहा होगा कुछ लोगों को, उसने पूरी केतली उसके सिर पर आकर उंडेल दी। सुकरात का चेहरा सदा के लिए जल गया। आधा चेहरा काला पड़ गया। तो उस युवक ने पूछा इसीलिए आपसे पूछने आया हूं कि आप भुक्तभोगी हैं; आप क्या कहते ...

एक मनोवैज्ञानिक छोटा सा प्रयोग कर रहा था।

 उसने अपनी कक्षा में आकर बड़े ब्लैकबोर्ड पर एक छोटा सा सफेद बिंदु रखा—जरा सा—कि मुश्किल से दिखायी पड़े। फिर उसने पूछा विद्यार्थियों को कि क्या दिखायी पड़ता है? किसी को भी उतना बड़ा ब्लैकबोर्ड दिखायी न पड़ा, सभी को वह छोटा सा बिंदु दिखायी पड़ा—जो कि मुश्किल से दिखायी पड़ता था। उसने कहा, यह चकित करने वाली बात है।  इतना बड़ा तख्ता कोई नहीं कहता कि दिखायी पड़ रहा है; सभी यह कहते हैं, वह छोटा सा बिंदु दिखायी पड़ रहा है। तुम जो देखना चाहते हो, वह छोटा हो तो भी दिखायी पड़ता है। तुम जो देखना नहीं चाहते, वह बड़ा हो तो भी दिखायी नहीं पड़ता। तुम्हारी चाह पर सब कुछ निर्भर है। तुम्हारा चुनाव निर्णायक है। तो मैं तुमसे कहता हूं—इस जीवन में तुम कहते हो दुख पाया बहुत, अब अगले जन्म में और हमें नर्क न भेजा जाए—कोई भेजने वाला नहीं है।  लेकिन इस जीवन में अगर तुमने दुख की आदत बनायी, तो तुम नर्क चले जाओगे। नर्क तुम्हारा जीवन कोण है।  यह कोई स्थान नहीं है कहीं। यह तुम्हारे देखने का ढंग है।  तुम जहां जाओगे, नर्क खोज लोगे। तुम्हारा नर्क तुम्हारे साथ चलता है। तुम्हारा स्वर्...